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ट्रांसजेंडर ट्रैफिक मार्शल पहल: समावेशी समाज की दिशा में एक कदम

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन)

संदर्भ

गुजरात पुलिस ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को ट्रैफिक मार्शल के रूप में भर्ती करने की योजना बना रही है। यह पायलट प्रोजेक्ट अहमदाबाद में शुरू होगा, जिसका उद्देश्य समुदाय को ट्रैफिक प्रबंधन में शामिल करना और सार्वजनिक सेवा में रोजगार के अवसर प्रदान करना है।

ट्रैफिक मार्शल पहल के बारे में

  • गुजरात पुलिस की यह पहल ट्रांसजेंडर समुदाय को ट्रैफिक मार्शल के रूप में नियुक्त करने पर केंद्रित है। 
  • मार्शल शहर के व्यस्त चौराहों पर वाहनों की आवाजाही को नियंत्रित करने में ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की सहायता करेंगे। 
  • यह प्रोजेक्ट ट्रांसजेंडर समुदाय को भिक्षावृत्ति से दूर रखते हुए सम्मानजनक रोजगार प्रदान करने का प्रयास है।
  • यह पहल सामाजिक कलंक को कम करने और सामान्य जनता के सहयोग से समाजिक जीत सुनिश्चित करने की उम्मीद रखती है।

भारत में ट्रांसजेंडर की स्थिति

  • भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय को तीसरे लिंग के रूप में आधिकारिक मान्यता प्राप्त है। 
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में लगभग 4.88 लाख ट्रांसजेंडर व्यक्ति हैं। 
  • वैश्विक अनुमानों के अनुसार, 1-3% आबादी ट्रांसजेंडर या जेंडर-फ्लूइड हो सकती है, जो भारत की विशाल जनसंख्या को देखते हुए लाखों की संख्या दर्शाती है। 
  • ऐतिहासिक रूप से हिजड़ा, जोगता, जोगप्पा जैसे उप-समुदाय भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहे हैं, लेकिन औपनिवेशिक काल से सामाजिक बहिष्कार का शिकार हुए हैं। 
  • वर्ष 2014 के NALSA फैसले ने उन्हें नागरिक अधिकार प्रदान किए, जिससे शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य में आरक्षण का मार्ग प्रशस्त हुआ। 
  • फिर भी, वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से हाशिए पर हैं, और वर्ष 2025 तक उनकी संख्या में वृद्धि का अनुमान है।

NALSA बनाम भारत संघ वाद (2014)

  • इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पुरुष, महिला या तीसरे लिंग के रूप में अपनी पहचान स्वयं बनाने का अधिकार है। 
  • इसने हिजड़ों, किन्नरों और पुरुष-महिला द्विआधारी व्यवस्था से बाहर के अन्य लोगों को कानून के तहत "तीसरे लिंग" के रूप में मान्यता दी और संविधान के भाग III के तहत उनके मौलिक अधिकारों की पुष्टि की। 
  • अदालत ने कहा कि किसी को भी कानूनी मान्यता के लिए लिंग परिवर्तन सर्जरी जैसी चिकित्सा प्रक्रियाओं से गुजरने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
  • इसने अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), अनुच्छेद 15 और 16 (भेदभाव से सुरक्षा), अनुच्छेद 21 (सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार), और अनुच्छेद 19(1) (ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का हवाला देते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि लैंगिक पहचान सम्मान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का केंद्रबिंदु है। 
  • अदालत ने सरकार को ट्रांसजेंडर लोगों के लिए कल्याणकारी उपाय और आरक्षण लाभ सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया, और उन्हें सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा माना। 

कल्याण योजनाएं

  • स्माइल योजना (सपोर्ट फॉर मार्जिनलाइज्ड इंडिविजुअल्स फॉर लाइवलीहुड एंड एंटरप्राइज): सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा संचालित, यह योजना चिकित्सा, परामर्श, शिक्षा, कौशल विकास और आर्थिक सहायता प्रदान करती है। यह भिक्षावृत्ति रोकने और मुख्यधारा में एकीकरण पर जोर देती है।
  • ट्रांसजेंडर पेंशन योजना: पात्र ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मासिक पेंशन, जिसमें स्वास्थ्य बीमा शामिल है।
  • आयुष्मान भारत टीजी प्लस: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा, जिसमें जेंडर रीअफर्मेशन सर्जरी शामिल है।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019: पहचान प्रमाणपत्र जारी करने, आरक्षण और अपराधों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
  • राज्य-स्तरीय पहल: तमिलनाडु में ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड, केरल में मुफ्त सर्जरी और जी-टैक्सी जैसी योजनाएं। गुजरात में भी स्थानीय स्तर पर कौशल प्रशिक्षण और आईडी कार्ड वितरण हो रहा है।

चुनौतियां

ट्रांसजेंडर समुदाय को भारत में बहुआयामी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:

  • सामाजिक भेदभाव: ट्रांसफोबिया के कारण उत्पीड़न, यौन हिंसा, असम्मानजनक टिप्पणियां और सामाजिक बहिष्कार आम हैं।
  • रोजगार और शिक्षा: नौकरी और शिक्षा में भेदभाव, जिससे बेरोजगारी दर 80% से अधिक है। कई परिवारों से अलग हो जाते हैं।
  • स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य: जेंडर डिस्फोरिया, एचआईवी/एड्स का उच्च जोखिम, और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी। मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जैसे चिंता, अवसाद और आत्महत्या के प्रयास बढ़े हैं।
  • कानूनी बाधाएं: पहचान दस्तावेज प्राप्त करने में कठिनाई, जो योजनाओं का लाभ लेने और कानूनी सुरक्षा में बाधा डालती है।
  • कार्यान्वयन की कमी: योजनाओं का जागरूकता अभाव और ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच न होना।

आगे की राह

ट्रांसजेंडर समुदाय के सशक्तिकरण के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है:

  • जागरूकता अभियान: स्कूलों और कार्यस्थलों में संवेदनशीलता कार्यक्रम चलाकर ट्रांसफोबिया को कम करना।
  • रोजगार अवसर: गुजरात जैसी पहलों को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तारित करना, जिसमें कौशल प्रशिक्षण और आरक्षण शामिल हो।
  • स्वास्थ्य और कानूनी सहायता: मुफ्त जेंडर रीअफर्मेशन सर्जरी, काउंसलिंग और आसान आईडी कार्ड प्रक्रिया सुनिश्चित करना।
  • सहयोग: एनजीओ, सरकार और समुदाय के बीच साझेदारी बढ़ाना, जैसे यूएनडीपी के साथ ट्रांसजेंडर पोर्टल पर पंजीकरण अभियान।
  • मॉनिटरिंग: योजनाओं के प्रभाव का मूल्यांकन और राज्य-स्तरीय बोर्डों को मजबूत करना।
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