New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM Diwali Special Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 22nd Oct., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM Diwali Special Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 22nd Oct. 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM

भारत में शिक्षा पर व्यय के रुझान

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (National Sample Survey: NSS) के तहत एकत्र किए गए आँकड़ों के अनुसार भारतीय परिवार शिक्षा के लिए अपनी पुत्रियों एवं पुत्रों पर अलग-अलग राशि व्यय करते हैं।

भारत में बालिकाओं की शैक्षिक स्थिति 

  • विश्व आर्थिक मंच की लैंगिक असमानता रैंकिंग में हाल ही में आई गिरावट के बावजूद भारत ने हाल के वर्षों में स्कूल में बालिकाओं के नामांकन में लगातार प्रगति की है। 
  • सरकारी आँकड़ों के अनुसार स्कूली विद्यार्थियों की संख्या में 48% बालिकाएँ हैं। उच्च शिक्षा में भी महिलाओं का सकल नामांकन अनुपात पुरुषों की तुलना में थोड़ा अधिक है।

शैक्षिक व्यय में व्याप्त लैंगिक अंतराल 

एन.एस.एस. के तहत शिक्षा पर व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण की हालिया रिपोर्ट दर्शाती है कि स्कूली शिक्षा के सभी चरणों, यथा- ‘पूर्व-प्राथमिक’ से लेकर ‘उच्चतर माध्यमिक’ तक और ग्रामीण-शहरी विभाजन के दौरान बालिकाओं पर प्रति छात्र व्यय बालकों की तुलना में कम है।

ग्रामीण एवं शहरी  क्षेत्रों की स्थिति 

  • ग्रामीण भारत में परिवार कोर्स फीस, पाठ्यपुस्तकों, स्टेशनरी, यूनिफॉर्म व स्कूल आने-जाने के मामले में बालिकाओं की तुलना में बालकों पर 18% अधिक व्यय करते हैं।
  • शहरी भारत में बालिकाओं पर प्रति छात्र व्यय बालकों की तुलना में 2,791 कम था। शहरी भारत में जब तक छात्र उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पहुँचते हैं तब तक बालिकाओं की तुलना में बालकों की शिक्षा पर लगभग 30% अधिक व्यय हो रहा होता है। 

विभिन्न घटकों पर व्यय की स्थिति 

  • देश भर में परिवार बालिकाओं की तुलना में बालकों की फीस पर औसतन 21.5% अधिक भुगतान करते हैं।
  • बालकों की शिक्षा को प्राथमिकता देने का यह तरीका भारतीय परिवारों द्वारा अपने बच्चों के लिए चुने जाने वाले स्कूलों के प्रकार में भी स्पष्ट है। 
    • लगभग 58.4% बालिकाएँ सरकारी स्कूलों में नामांकित हैं, जहाँ कोर्स फीस प्राय: नि:शुल्क होती है और उनमें से केवल 29.5% के पास ही अधिक महंगी निजी स्कूली शिक्षा तक पहुँच है।
    •  हालाँकि, 34% बालक निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में नामांकित हैं। 
  • यह अंतर स्कूल की कक्षाओं से आगे बढ़कर निजी ट्यूशन तक भी पहुँच गया है, जिन्हें कई परिवार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए ज़रूरी मानते हैं।
    • कुल मिलाकर 26% बालिकाएँ, जबकि 27.8% बालक ऐसी कक्षाओं में नामांकित हैं। 
    • उच्चतर माध्यमिक स्तर तक परिवार बालिकाओं की तुलना में बालकों पर ट्यूशन फीस के मामले में औसतन 22% अधिक व्यय कर रहे हैं।

राज्यवार स्थिति 

  • शिक्षा में लैंगिक अंतर के मामले में राज्यों में व्यापक अंतर है। उदाहरण के लिए, सरकारी स्कूलों बनाम निजी स्कूलों में बालिकाओं और बालकों के नामांकन में सर्वाधिक अंतर दिल्ली जैसे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में देखा जा सकता है। 
    • जहाँ लगभग 54% बालक सरकारी स्कूलों में जाते हैं जबकि 65% से अधिक बालिकाएँ सरकारी स्कूलों में जाती हैं। 
    • दूसरी ओर, लगभग 38.8% बालक अधिक महंगे निजी स्कूलों में जाते हैं जबकि 26.6% बालिकाएँ ही इसमें सक्षम हैं। 
  • मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं पंजाब में भी लैंगिक अंतर 10% से अधिक है। गुजरात में शहरी क्षेत्रों में लैंगिक अंतर उल्लेखनीय है किंतु ग्रामीण क्षेत्रों में कम है।

दक्षिण एवं पूर्वोत्तर राज्यों का विशेष प्रदर्शन 

  • तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में बालक एवं बालिकाएँ लगभग समान अनुपात में सरकारी व निजी स्कूलों में जाते हैं। 
  • कई पूर्वोत्तर राज्यों में यह परिदृश्य उलटा है और अधिक बालिकाएँ निजी स्कूलों में जाती हैं। 

व्यय में भिन्नता 

  • उच्चतर माध्यमिक शिक्षा में तेलंगाना, तमिलनाडु एवं पश्चिम बंगाल में परिवार बालिकाओं की तुलना में बालकों पर बहुत अधिक व्यय करते हैं। हालाँकि, वे माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं पर अधिक व्यय करते हैं। 
  • आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और केरल जैसे राज्य भी उच्चतर माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं पर अधिक व्यय करते हैं। आँकड़ों के अनुसार यह स्थिति विशेषकर शहरी भारत में अधिक है क्योंकि परिवहन लागत एक प्रमुख कारक बन जाती है। 
  • बिहार, झारखंड, राजस्थान एवं तमिलनाडु उन अन्य राज्यों में शामिल हैं जहाँ इस संबंध में लैंगिक अंतराल काफी अधिक है।

चुनौतियाँ

  • सरकारी स्कूलों के लिए कम धन उपलब्ध होने से अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, शिक्षकों की कमी और खराब शिक्षण परिणाम सामने आते हैं।
  • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों तथा सरकारी एवं निजी स्कूलों के बीच असमानताएँ व्याप्त हैं।
  • निजी व्यय के लिए परिवारों पर अधिक निर्भरता से शिक्षा में बाधा आती है।

प्रभाव

  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, पोषण (मध्याह्न भोजन के माध्यम से) और सीखने के स्तर तक पहुँच पर नकारात्मक प्रभाव
  • सतत विकास लक्ष्य- 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) और सतत विकास लक्ष्य- 5 (लैंगिक समानता) की प्राप्ति में बाधा
  • मानव पूँजी निर्माण और भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश से सीधा संबंध

आगे की राह

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के लक्ष्य के अनुसार शिक्षा पर व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 6% तक बढ़ाना
  • पारदर्शिता एवं जवाबदेही के साथ निधि का कुशल उपयोग सुनिश्चित करना
  • स्कूल के बुनियादी ढाँचे, डिजिटल शिक्षा, शिक्षक क्षमता एवं समानता पर ध्यान केंद्रित करना
  • दीर्घकालिक प्रभाव के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा (आँगनवाड़ी + पूर्व-प्राथमिक) को सुदृढ़ करना
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X