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संपूर्ण क्रांति के अग्रदूत लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर श्रद्धांजलि

  • लोकनायक जयप्रकाश नारायण (1902–1979) भारत के उन महान नेताओं में से एक थे जिन्होंने न केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष किया बल्कि स्वतंत्र भारत में भी लोकतंत्र, नैतिकता, और जनशक्ति के लिए आवाज़ बुलंद की। 
  • वे राजनीति में नैतिकता के प्रतीक, जनता की आकांक्षाओं के दूत और लोकतांत्रिक पुनर्जागरण के शिल्पी थे। उनका नाम भारतीय राजनीति में सत्य, साहस और समर्पण का पर्याय है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

  • जन्म: 11 अक्टूबर 1902
  • स्थान: सिताबदियारा गाँव, सारण जिला (अब बिहार में)
  • माता-पिता: श्री हरसुदेव नारायण सिंह और श्रीमती फूलरानी देवी
  • जयप्रकाश बचपन से ही मेधावी और जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे।
  • प्रारंभिक शिक्षा गाँव में, फिर पटना कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
  • आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने अमेरिका जाकर शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्होंने राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और दर्शन का अध्ययन किया।
  • अमेरिका में उन्होंने आत्मनिर्भरता, श्रम के सम्मान, समाजवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों का गहरा प्रभाव ग्रहण किया।

भारत लौटकर राजनीतिक सक्रियता

  • 1929 में भारत लौटने के बाद वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए और उनके विचारों से अत्यंत प्रभावित हुए।
  • वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और जल्द ही समाजवादी धड़े के प्रमुख नेता बने।
  • उन्होंने डॉ. राममनोहर लोहिया और अन्य समाजवादी साथियों के साथ मिलकर 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP) की स्थापना की।
  • CSP का उद्देश्य था — कांग्रेस के भीतर समाजवादी विचारधारा और किसानों-मजदूरों के अधिकारों को मजबूत करना।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

  1. भारत छोड़ो आंदोलन (1942):
    • जयप्रकाश नारायण इस आंदोलन के अग्रणी नेताओं में थे।
    • उन्हें गिरफ्तार कर अहमदनगर किला जेल में रखा गया, जहाँ उन्होंने गांधीवादी और समाजवादी दर्शन का गहन अध्ययन किया।
    • जेल में रहते हुए उन्होंने "प्रिजन डायरी" जैसी प्रसिद्ध रचना लिखी।
  2. भूमिगत आंदोलन:
    • ब्रिटिश शासन के दौरान उन्होंने कई बार भूमिगत रहकर स्वतंत्रता संग्राम का संचालन किया।
    • उन्होंने जनता को अहिंसक विद्रोह और संगठन के लिए प्रेरित किया।

स्वतंत्रता के बाद का जीवन और समाजवादी आंदोलन

  • स्वतंत्रता के बाद उन्होंने सत्ता की राजनीति से दूरी बनाई।
  • उनका मानना था कि सच्ची आज़ादी केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक न्याय में निहित है।
  • उन्होंने किसानों, मजदूरों और युवाओं को संगठित करने के लिए अनेक जन आंदोलनों का नेतृत्व किया।
  • उन्होंने समाजवाद को भारतीय संदर्भ में नैतिक और मानवतावादी समाजवाद के रूप में परिभाषित किया।

‘संपूर्ण क्रांति’ का दर्शन

1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण ने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, राजनीतिक अधःपतन और अन्याय के विरुद्ध आंदोलन छेड़ा।
उन्होंने इसका नाम दिया — “संपूर्ण क्रांति” (Total Revolution)

संपूर्ण क्रांति के प्रमुख आयाम:

  1. राजनीतिक क्रांति भ्रष्ट राजनीति से मुक्ति और लोकतंत्र की पुनर्स्थापना।
  2. आर्थिक क्रांति असमानता को समाप्त कर न्यायपूर्ण आर्थिक व्यवस्था की स्थापना।
  3. सामाजिक क्रांतिजाति, धर्म, और लिंग आधारित भेदभाव का अंत।
  4. शैक्षणिक क्रांतिशिक्षा को मानव विकास का साधन बनाना।
  5. सांस्कृतिक क्रांतिनैतिकता और मूल्यों पर आधारित समाज का निर्माण।
  6. आध्यात्मिक क्रांति व्यक्ति के भीतर परिवर्तन और आत्मानुशासन।

उन्होंने कहा था: “संपूर्ण क्रांति का अर्थ है – व्यक्ति से लेकर समाज तक, सबका नवीनीकरण।”

1974 का बिहार आंदोलन और आपातकाल

  • 1974 में बिहार के छात्रों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया, जिसे जयप्रकाश नारायण ने लोक आंदोलन का रूप दे दिया।
  • उन्होंने नारा दिया — “भ्रष्टाचार मिटाओ, देश बचाओ।”
  • यह आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर फैल गया और इसे “संपूर्ण क्रांति आंदोलन” कहा गया।
  • 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के समय, जयप्रकाश नारायण को गिरफ्तार किया गया।
  • जेल में उनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया, परंतु उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया।
  • आपातकाल के विरोध में उनका नेतृत्व भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का स्वर्णिम अध्याय बन गया।

लोकनायक की उपाधि और जनता पार्टी का उदय

  • जनता ने उन्हें “लोकनायक” (जनता का नायक) की उपाधि दी।
  • 1977 के आम चुनाव में आपातकाल की समाप्ति के बाद, जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर विभिन्न विपक्षी दल एकजुट हुए और जनता पार्टी का गठन हुआ।
  • जनता पार्टी ने ऐतिहासिक विजय प्राप्त की और इंदिरा गांधी की पराजय के साथ भारत में लोकतंत्र की नई शुरुआत हुई।

विचारधारा और दार्शनिक दृष्टिकोण

  • जयप्रकाश नारायण गांधीवादी समाजवाद के समर्थक थे।
  • वे सत्ता से अधिक जनशक्ति और नैतिकता को महत्व देते थे।
  • उन्होंने कहा: “राजनीति का उद्देश्य केवल शासन नहीं, बल्कि समाज की सेवा है।”
  • वे मानते थे कि भारत की असली ताकत गाँवों में है, इसलिए ग्राम स्वराज को उन्होंने स्वतंत्रता का वास्तविक आधार बताया।
  • वे व्यक्ति की स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और नैतिक मूल्यों के संतुलन को समाज के विकास का मूल मानते थे।

निधन और विरासत

  • निधन: 8 अक्टूबर 1979, पटना (बिहार)
  • निधन के बाद भी उनकी विचारधारा भारतीय लोकतंत्र की आत्मा में जीवित है।
  • 1999 में उन्हें भारत रत्न (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया।
  • लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल (नई दिल्ली), जेपी विश्वविद्यालय (छपरा, बिहार), और कई संस्थान उनके नाम से संचालित हैं।

आज के भारत में जयप्रकाश नारायण की प्रासंगिकता

  1. राजनीति में नैतिकता की आवश्यकता: आज की राजनीति में जिस प्रकार भ्रष्टाचार और अवसरवाद बढ़ा है, उसमें जयप्रकाश नारायण के आदर्श एक मार्गदर्शक दीपक हैं।
  2. लोकशक्ति का पुनर्जागरण: उन्होंने दिखाया कि जनता संगठित होकर किसी भी अन्याय का मुकाबला कर सकती है।
  3. ग्राम स्वराज और आत्मनिर्भरता: उनके विचार आज आत्मनिर्भर भारत अभियान की वैचारिक जड़ बन सकते हैं।
  4. लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा: आपातकाल के दौरान उनकी भूमिका यह सिखाती है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए सजग नागरिकता आवश्यक है।
  5. युवाओं की भागीदारी: जयप्रकाश नारायण ने युवाओं को देश परिवर्तन का प्रमुख साधन बताया — आज भी यह संदेश उतना ही प्रासंगिक है।

उद्धरण (Quotes)

  • “संपूर्ण क्रांति केवल शासन परिवर्तन नहीं, मनुष्य के विचार और व्यवहार का परिवर्तन है।”
  • “सत्ता जनता की होनी चाहिए, नेताओं की नहीं।”
  • “लोकशक्ति सबसे बड़ी शक्ति है — किसी भी सरकार से बड़ी।”
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