|
(GS III- Environment and Ecology)
|

हाल ही में कर्नाटक सरकार ने पश्चिमी घाट के पर्यावरणीय संरक्षण हेतु कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। राज्य सरकार का तर्क है कि इस रिपोर्ट में पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Area – ESA) के दायरे को अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया है, जिससे विकासात्मक परियोजनाएं बाधित हो सकती हैं। इस निर्णय ने एक बार फिर विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण की बहस को जीवित कर दिया है।
कस्तूरीरंगन समिति: प्रमुख सिफारिशें
|
बिंदु
|
विवरण
|
|
गठन
|
2012 में, गडकिल समिति की रिपोर्ट पर राज्यों की आपत्तियों के बाद केंद्र सरकार द्वारा गठित।
|
|
अध्यक्ष
|
डॉ. के. कस्तूरीरंगन
|
|
उद्देश्य
|
पश्चिमी घाट क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिति का अध्ययन और संरक्षण हेतु नीतिगत सुझाव देना।
|
|
प्रमुख सिफारिशें
|
- पश्चिमी घाट के लगभग 37% क्षेत्र (≈60,000 वर्ग किमी) को ESA घोषित किया जाए। - खनन, थर्मल पावर, बड़े निर्माण एवं रेड कैटेगरी उद्योगों पर प्रतिबंध। - स्थानीय समुदायों की भागीदारी से सतत विकास।
|
पश्चिमी घाट का भौगोलिक एवं पारिस्थितिक महत्व
- पश्चिमी घाट भारत के 6 राज्यों — गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु — में फैला हुआ है।
- इसकी कुल लंबाई लगभग 1600 किलोमीटर है, जो भारत के पश्चिमी तट के समानांतर चलती है।
- यह भारत के मुख्य जल विभाजक क्षेत्र (Watershed Region) के रूप में कार्य करता है।
पारिस्थितिक एवं जैव विविधता महत्व
- जैव विविधता हॉटस्पॉट: पश्चिमी घाट को विश्व के आठ "हॉटेस्ट हॉटस्पॉट्स ऑफ बायोडायवर्सिटी" में से एक माना गया है।
- यूनेस्को विश्व धरोहर: 2012 में पश्चिमी घाट के 39 स्थानों को UNESCO World Heritage Site के रूप में मान्यता मिली।
- स्थानिक प्रजातियाँ:
- भारत की 50% उभयचर (amphibians) और 67% मछलियों की प्रजातियाँ यहां की स्थानिक हैं।
- उदाहरण: नीलगिरि तहर, मलाबार सिवेट, लायन-टेल्ड मकाक।
- जल संसाधन योगदान:
- लगभग 245 मिलियन लोगों की जल आवश्यकताएँ पश्चिमी घाट की नदियाँ पूरी करती हैं।
- गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, पेरियार जैसी प्रमुख नदियाँ यहीं से निकलती हैं।
- वन संपदा:
- भारत की 63% सदाबहार काष्ठीय प्रजातियाँ इसी क्षेत्र में पाई जाती हैं।
- औषधीय पौधों का प्रमुख केंद्र।
पश्चिमी घाट के समक्ष प्रमुख खतरे
|
खतरा
|
विवरण
|
|
मानव गतिविधियाँ
|
तीव्र शहरीकरण, अनियंत्रित पर्यटन, कृषि भूमि का विस्तार एवं खनन ने पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाया है।
|
|
खनन और उद्योग
|
लौह अयस्क, बॉक्साइट, मैंगनीज आदि के दोहन से भूमि क्षरण और जल प्रदूषण बढ़ा।
|
|
जलवायु परिवर्तन
|
वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन, सूखा एवं भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ीं।
|
|
वन कटाई
|
अवैध कटाई से वन्यजीव गलियारों का खंडन (fragmentation) हो रहा है।
|
|
नीतिगत असहमति
|
प्रभावित राज्यों का विरोध – विशेषकर कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा – के चलते ESA की अधिसूचना अटकी हुई है।
|
विकास बनाम संरक्षण विवाद
- राज्य सरकारों का तर्क है कि ESA की सीमाएं बढ़ाने से खनन, बांध, सड़क और बुनियादी ढांचा परियोजनाएँ प्रभावित होंगी।
- जबकि पर्यावरणविदों का कहना है कि दीर्घकालिक रूप से आर्थिक समृद्धि तभी संभव है जब पारिस्थितिकीय स्थिरता बनी रहे।
आगे की राह
- संस्थागत सुधार:
- पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी तंत्र प्राधिकरण (Western Ghats Ecology Authority) की स्थापना की जानी चाहिए।
- यह निगरानी, नीति क्रियान्वयन और समन्वय का कार्य करे।
- वित्तीय प्रोत्साहन:
- पश्चिमी घाट सतत विकास निधि (Western Ghats Sustainable Development Fund) बनाकर हरित विकास परियोजनाओं को वित्तीय सहायता दी जाए।
- जन भागीदारी:
- स्थानीय समुदायों और ग्राम सभाओं को संरक्षण निर्णयों में शामिल किया जाए।
- Eco-Tourism को बढ़ावा देकर पर्यावरण-अनुकूल रोजगार सृजन किया जा सकता है।
- नीतिगत समन्वय:
- केंद्र और राज्यों के बीच संतुलित नीति निर्माण आवश्यक है।
- Environmental Impact Assessment (EIA) को सख्ती से लागू किया जाए।
निष्कर्ष
- पश्चिमी घाट केवल भारत की जैव विविधता का भंडार नहीं, बल्कि "भारत की जल जीवन रेखा" भी है।
- यहाँ का पारिस्थितिकी तंत्र अत्यंत नाजुक है, जहाँ अनेक वन्यजीव गलियारे (wildlife corridors) विद्यमान हैं।
- ऐसे में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी, पर्यावरणीय शिक्षा और सतत विकास दृष्टिकोण अपनाकर ही इस क्षेत्र का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सकता है।
“विकास तभी सार्थक है जब वह पर्यावरण के साथ संतुलित हो।”