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परिसीमन आयोग क्या है ? संवैधानिक एवं विधिक प्रावधान, संरचना, कार्य व अधिकार, चुनौतियाँ,समाधान

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री ने आश्वासन दिया कि परिसीमन (Delimitation) के परिणामस्वरूप लोकसभा सीटों में होने वाली किसी भी वृद्धि में दक्षिणी राज्यों के साथ न्याय किया जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आनुपातिक आधार पर दक्षिणी राज्यों की कोई भी लोकसभा सीट कम नहीं होगी। इस बयान ने उत्तर-दक्षिण प्रतिनिधित्व असमानता पर चल रही बहस को और तेज कर दिया है।

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission of India)

परिसीमन क्या है ?

  • परिसीमन आयोग भारत सरकार द्वारा गठित अर्ध-न्यायिक निकाय (Quasi-Judicial Body) है।
  • परिसीमन वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से लोकसभा और विधानसभाओं के लिए प्रत्येक राज्य में सीटों की संख्या एवं निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण किया जाता है।
  • इसका उद्देश्य है कि जनसंख्या के अनुपात में सभी क्षेत्रों को न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व मिले।
  • यह कार्य एक स्वतंत्र और उच्च अधिकार प्राप्त संस्था – परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) को सौंपा जाता है।
  • इसका प्रमुख कार्य है:
    • निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण करना।
    • न्यायसंगत जनप्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
    • निर्वाचन क्षेत्रों में जनसंख्या के आधार पर समानता बनाए रखना।
  • सरल शब्दों में, यह आयोग तय करता है कि किस भौगोलिक क्षेत्र से कितने विधायक या सांसद चुने जाएंगे।

संवैधानिक एवं विधिक प्रावधान

  1. अनुच्छेद 82प्रत्येक जनगणना के बाद संसद द्वारा नया परिसीमन अधिनियम (Delimitation Act) पारित किया जाएगा।
  2. अनुच्छेद 170राज्यों की विधानसभाओं के परिसीमन का प्रावधान।
  3. संविधान संशोधन:
    • 42वाँ संशोधन, 19762001 तक सीटों की संख्या फ्रीज़।
    • 84वाँ संशोधन, 2001 2026 तक लोकसभा और विधानसभा सीटें फ्रीज़ (सीटें बढ़ाई नहीं जा सकतीं, केवल SC/ST आरक्षण का पुनर्निर्धारण होगा)।
    • 87वाँ संशोधन, 2003 परिसीमन हेतु जनगणना 2001 के आँकड़े आधार बने। 

संरचना (Composition)

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission)

  • गठन: राष्ट्रपति द्वारा, निर्वाचन आयोग (ECI) के सहयोग से।
  • संरचना:
    • सुप्रीम कोर्ट का वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश (अध्यक्ष)
    • मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) या उनके द्वारा नामित कोई अन्य चुनाव आयुक्त
    • संबंधित राज्य का राज्य चुनाव आयुक्त
  • विशेषताएँ:
    • इसकी सिफारिशें अंतिम और बाध्यकारी होती हैं।
    • इन्हें किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • हालांकि, किशोरचंद्र छगनलाल राठौड़ मामला (Supreme Court) में कहा गया कि यदि परिसीमन आयोग की सिफारिशें स्पष्ट रूप से मनमानी और संवैधानिक मूल्यों के विपरीत हैं, तो न्यायालय उनकी समीक्षा कर सकता है।

कार्य व अधिकार (Functions & Powers)

  • लोकसभा और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएँ तय करना
  • जनसंख्या के आधार पर प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की आबादी और प्रतिनिधि का अनुपात समान रखना।
  • SC और ST के लिए आरक्षित सीटों का निर्धारण करना।
  • परिसीमन प्रक्रिया में सार्वजनिक सुझाव और आपत्तियों को सुनना
  • एक बार परिसीमन आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित होने पर, उसके आदेश अंतिम और बाध्यकारी होते हैं।
  • इनके आदेशों को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती

 इसीलिए इसे “शक्तिशाली आयोग” कहा जाता है।

भारत में परिसीमन आयोगों का इतिहास

क्रमांक

गठन का वर्ष

अध्यक्ष (सेवानिवृत्त जज)

प्रमुख विशेषताएँ

1.

1952

न्यायमूर्ति फज़ल अली

पहली बार परिसीमन हुआ।

2.

1963

न्यायमूर्ति के. एन. वांचू

1961 की जनगणना के आधार पर।

3.

1973

न्यायमूर्ति जे. एल. कपूर

1971 की जनगणना पर आधारित।

4.

2002

न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह

2001 की जनगणना पर आधारित। जम्मू-कश्मीर को इसमें शामिल नहीं किया गया।

विशेष

2020

न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई

जम्मू-कश्मीर, असम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के लिए परिसीमन।

हाल की स्थिति

  • जम्मू और कश्मीर (2019 के बाद) – अनुच्छेद 370 हटने के बाद विशेष परिसीमन आयोग (2020) का गठन।
  • रिपोर्ट मई 2022 में आई:
    • विधानसभा सीटें 107 से बढ़ाकर 114 की गईं।
    • इनमें 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के लिए आरक्षित।
    • शेष 90 में से 43 जम्मू और 47 कश्मीर को मिलीं।
    • SC/ST को आरक्षण दिया गया।

परिसीमन क्यों महत्वपूर्ण है ?

  • ताकि किसी निर्वाचन क्षेत्र में अत्यधिक या अत्यल्प जनसंख्या का असमान प्रतिनिधित्व न हो।
  • लोकतांत्रिक व्यवस्था में ‘एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य’ (One Person, One Vote, One Value) सुनिश्चित करने के लिए।
  • जनसंख्या परिवर्तन, शहरीकरण, पलायन जैसे कारकों के अनुसार निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएँ बदलनी आवश्यक।

चुनौतियाँ

  • जनसंख्या वृद्धि और सीटों की फ्रीज़ नीति (2026 तक) के कारण प्रतिनिधित्व असंतुलित हो सकता है।
  • राजनीतिक दल अक्सर अपने हित के अनुसार परिसीमन चाहते हैं।
  • उत्तर-दक्षिण असंतुलन – दक्षिण भारत की जनसंख्या वृद्धि दर कम है, जबकि उत्तर भारत में अधिक। 2026 के बाद जब सीटें बढ़ेंगी तो दक्षिण को प्रतिनिधित्व में हानि हो सकती है।

प्रतिनिधित्व से जुड़ी चुनौतियाँ

1. उत्तर बनाम दक्षिण विवाद

  • दक्षिणी राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण में उल्लेखनीय सफलता पाई है।
  • जबकि उत्तर भारत में अधिक जनसंख्या वृद्धि हुई।
  • यदि परिसीमन केवल जनसंख्या पर आधारित होगा, तो दक्षिणी राज्यों की सीटें कम हो सकती हैं, और उत्तरी राज्यों की सीटें बढ़ सकती हैं।
  • इससे यह आरोप लगता है कि जनसंख्या नियंत्रण करने वाले राज्यों को दंडित किया जा रहा है

2. संघवाद और स्वायत्तता पर असर

  • लोकसभा में व्यापक बदलाव से नीतियाँ उत्तरी राज्यों की प्राथमिकताओं के अनुरूप बनने का खतरा है।
  • इससे संघीय ढांचे और क्षेत्रीय संतुलन को नुकसान हो सकता है।

3. "एक नागरिक एक वोट" सिद्धांत का उल्लंघन

  • उदाहरण:
    • उत्तर प्रदेश में एक सांसद लगभग 25.3 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है।
    • तमिलनाडु में एक सांसद औसतन 18.4 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है।
  • इसका अर्थ है कि मतदाताओं के मत का मूल्य समान नहीं है। 

संभावित समाधान

  1. सीटों की संख्या बढ़ाना दक्षिण और उत्तर दोनों राज्यों का प्रतिनिधित्व आनुपातिक तरीके से बढ़ाया जा सकता है।
  2. दोहरी मानक प्रणाली केवल जनसंख्या के बजाय विकास, क्षेत्रीय संतुलन और शासन दक्षता को भी आधार बनाया जाए।
  3. आम सहमतिइस जटिल मुद्दे पर केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच संवाद और सहमति आवश्यक है।
  4. निरंतर परिसीमन प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन होना चाहिए, ताकि प्रतिनिधित्व में असमानता न बढ़े। 

निष्कर्ष

  • परिसीमन भारतीय लोकतंत्र का एक संवेदनशील और जटिल पहलू है।
  • इसका उद्देश्य है कि हर नागरिक का मत समान मूल्य रखे और सभी क्षेत्रों को न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व मिले। 
  • लेकिन जनसंख्या आधारित परिसीमन से दक्षिणी राज्यों की चिंता और संघीय ढांचे की मजबूती दोनों को ध्यान में रखना होगा।
  • 2026 के बाद होने वाले परिसीमन में भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वह जनसंख्या नियंत्रण करने वाले राज्यों को दंडित किए बिना लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को संतुलित और न्यायपूर्ण बनाए रखे।
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