चर्चा में क्यों ?
हाल ही में कर्नाटक राज्य मंत्रिमंडल ने “कर्नाटक राज्य उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों को रोजगार विधेयक, 2024” को मंजूरी दी।

- विधेयक के तहत:
- प्रबंधन पदों पर स्थानीय उम्मीदवारों के लिए 50% आरक्षण।
- गैर-प्रबंधन पदों पर स्थानीय उम्मीदवारों के लिए 75% आरक्षण।
- इससे पहले हरियाणा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने भी निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने हेतु इसी तरह के कानून बनाए थे।
मूल अधिवास आधारित आरक्षण (Domicile-Based Reservation) का न्यायिक दृष्टिकोण (Judicial Decisions)
(क) पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का निर्णय
- हरियाणा के अधिनियम को उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित किया।
- तर्क:
- यह संविधान के भाग III (मौलिक अधिकारों) का उल्लंघन करता है।
- यह संवैधानिक नैतिकता (Constitutional Morality) के विरुद्ध है।
(ख) सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में PG मेडिकल सीटों में अधिवास-आधारित आरक्षण को असंवैधानिक ठहराया।
- आधार: यह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।
- अदालत का मत: आरक्षण का आधार सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ापन होना चाहिए, न कि केवल निवास या अधिवास।
राज्य सरकारें निजी क्षेत्र में आरक्षण क्यों लागू करना चाहती हैं ?
- रोज़गार सृजन और सामाजिक न्याय
- निजी क्षेत्र में सबसे अधिक नौकरियाँ उत्पन्न होती हैं।
- स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देकर सामाजिक न्याय की अवधारणा को सशक्त किया जा सकता है।
- राज्य की अपेक्षाएँ
- किसी राज्य में सृजित नौकरियाँ सबसे पहले उसी राज्य के निवासियों को मिलनी चाहिए।
- सरकारी लाभों का आधार
- निजी कंपनियों को सरकार से कर रियायतें, सब्सिडी और कम ब्याज दर पर ऋण मिलता है।
- बदले में सरकार यह अपेक्षा कर सकती है कि कंपनियाँ स्थानीय लोगों को अधिक अवसर दें।
संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 16 (2): किसी भी नागरिक को केवल धर्म, जाति, जन्मस्थान, निवास आदि के आधार पर सरकारी नौकरी से वंचित या भेदभाव नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 16 (3): संसद को यह अधिकार है कि वह किसी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के अधीन नियुक्तियों में निवास की शर्त लगाने संबंधी कानून बना सके।
ध्यान देने योग्य तथ्य:
- यह अधिकार केवल संसद को है, राज्य विधानसभाओं को नहीं।
- इसलिए राज्यों द्वारा निजी क्षेत्र में अधिवास आधारित आरक्षण लाना कानूनी विवाद का विषय बन जाता है।
उप-वर्गीकरण से संबंधित चिंताएँ
- निजी क्षेत्र के लिए चुनौतियाँ
- आरक्षण के दबाव के कारण व्यवसाय करना कठिन हो सकता है।
- कुशल श्रमिकों की कमी → कंपनियाँ अपना व्यवसाय दूसरे राज्यों में ले जा सकती हैं।
- भूमिपुत्र (Son of Soil) सिंड्रोम
- इससे अन्य राज्यों में भी स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति बढ़ेगी।
- परिणामस्वरूप क्षेत्रीयता बनाम राष्ट्रीय एकता का संकट उत्पन्न हो सकता है।
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
- अनुच्छेद 14, 15 और 16: समानता का अधिकार।
- अनुच्छेद 19(1)(g): किसी भी पेशा, व्यापार या व्यवसाय करने की स्वतंत्रता।
- अधिवास आधारित आरक्षण इन संवैधानिक प्रावधानों से टकराता है।
मूल अधिवास आधारित आरक्षण (Domicile-Based Reservation) के प्रावधान
संवैधानिक आधार
- अनुच्छेद 16(2) – जन्मस्थान / निवास के आधार पर भेदभाव नहीं।
- अनुच्छेद 16(3) – संसद को अधिकार है कि वह किसी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में निवास की शर्त लगाकर कुछ नौकरियों में आरक्षण/प्राथमिकता दे सके।
- इसलिए, केवल संसद (राज्य नहीं) स्थायी अधिवास आधारित आरक्षण का वैधानिक प्रावधान कर सकती है।
भारत में अधिवास आधारित आरक्षण की स्थिति
कई राज्यों ने रोजगार व शिक्षा में “स्थानीय उम्मीदवारों” को प्राथमिकता देने के लिए अधिवास आधारित आरक्षण लागू करने की कोशिश की है।
(A) शिक्षा में
- दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) → कई कॉलेज स्थानीय छात्रों के लिए सीटें आरक्षित करते हैं।
- महाराष्ट्र → राज्य मेडिकल कॉलेजों में राज्य के छात्रों को प्राथमिकता।
- कर्नाटक → मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में "कर्नाटक निवासी" कोटा।
- मध्य प्रदेश → हाल में राज्य मेडिकल कॉलेजों में राज्य निवासियों के लिए 100% सीट आरक्षण लागू।
(B) नौकरियों में
- आंध्र प्रदेश – 2019 का कानून → निजी क्षेत्र में 75% नौकरियाँ स्थानीय उम्मीदवारों को।
- हरियाणा – 2020 का कानून → ₹50,000 से कम वेतन वाली नौकरियों में 75% आरक्षण स्थानीय लोगों के लिए (HC ने असंवैधानिक ठहराया)।
- कर्नाटक (2024) – उद्योगों/कारखानों में 50% प्रबंधन और 75% गैर-प्रबंधन नौकरियों में स्थानीय आरक्षण का प्रस्ताव।
किन राज्यों को विशेष “छूट” (Special Provisions) है ?
संविधान और संसद द्वारा कुछ राज्यों/क्षेत्रों को विशेष छूट दी गई है:
- जम्मू और कश्मीर (अनुच्छेद 35A – अब निरस्त)
- पहले केवल “स्थायी निवासी” ही सरकारी नौकरी और जमीन के हकदार थे।
- 2019 के बाद अब “Domicile rules” लागू → 15 वर्ष निवास / 7 वर्ष पढ़ाई / 10वीं-12वीं परीक्षा पास करने पर Domicile प्रमाणपत्र।
- उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश
- राज्य सेवाओं और भूमि खरीद पर स्थानीय निवास की शर्तें।
- पूर्वोत्तर राज्य
- अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा →
- इनर लाइन परमिट (ILP) और छठी अनुसूची के तहत विशेष प्रावधान।
- यहां भूमि और संसाधनों पर बाहरी लोगों का अधिकार प्रतिबंधित।
- लद्दाख
- केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद स्थानीय रोजगार हेतु विशेष अधिवास नियम।