शक्तियों का पृथक्करण एक राजनीतिक-संवैधानिक सिद्धांत है, जिसका उद्देश्य सरकार की शक्ति का संतुलन बनाए रखना और किसी भी शाखा द्वारा अत्यधिक शक्ति के दुरुपयोग को रोकना है।
इसे तीन प्रमुख अंगों में बाँटा जाता है:
शक्तियों का पृथक्करण वह सिद्धांत है जिसके अंतर्गत राज्य की सत्ता को अलग-अलग अंगों में बाँटा जाता है ताकि कोई भी अंग अकेले पूरी शक्ति का प्रयोग न कर सके।
शाखा |
कार्य |
भारत में उदाहरण |
विधायी (Legislature) |
कानून बनाना |
संसद (लोकसभा, राज्यसभा), राज्य विधानसभाएँ |
कार्यकारी (Executive) |
कानून लागू करना और शासन चलाना |
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद, राज्यपाल, राज्य सरकार |
न्यायिक (Judiciary) |
कानून की व्याख्या करना और संविधान की रक्षा करना |
सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय, अधीनस्थ न्यायालय |
सिद्धांत |
विवरण |
अनन्यता सिद्धांत (Exclusivity Principle) |
सरकार को तीन अंगों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – में विभाजित करना। |
कार्यात्मक सिद्धांत (Functional Principle) |
प्रत्येक अंग की सीमाएँ तय करना और यह सुनिश्चित करना कि एक अंग दूसरे के कार्यों का अतिक्रमण न करे। |
नियंत्रण और संतुलन (Check and Balance Principle) |
सभी अंग एक-दूसरे पर निगरानी रखें ताकि शक्ति का दुरुपयोग न हो। |
पारस्परिकता सिद्धांत (Mutuality Principle) |
अंगों में सहयोग और सद्भाव होना चाहिए, टकराव नहीं। |
भारतीय संविधान में सख्त पृथक्करण नहीं, बल्कि संतुलित पृथक्करण (Functional Separation) है।
संघर्ष का प्रकार |
उदाहरण |
न्यायिक हस्तक्षेप |
सुप्रीम कोर्ट: राज्यपाल द्वारा सुरक्षित रखे गए राज्य विधेयकों पर राष्ट्रपति को 3 माह में निर्णय लेना होगा। |
विधायिका का अतिक्रमण |
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम, जिसमें कार्यपालिका और बाहरी व्यक्तियों को भी शामिल किया गया। |
कार्यपालिका का अतिक्रमण |
(i) ट्रिब्यूनल्स में कार्यपालिका का बहुमत। |
प्रश्न :-भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद राज्य को न्यायपालिका और कार्यपालिका को अलग करने का निर्देश देता है ? (a) अनुच्छेद 32 (b) अनुच्छेद 50 (c) अनुच्छेद 124 (d) अनुच्छेद 368 |
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