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शक्तियों का पृथक्करण (Separation of Powers)क्या है ? प्रमुख शाखाएँ और उनके कार्य और भारत में शक्तियों का पृथक्करण

शक्तियों का पृथक्करण एक राजनीतिक-संवैधानिक सिद्धांत है, जिसका उद्देश्य सरकार की शक्ति का संतुलन बनाए रखना और किसी भी शाखा द्वारा अत्यधिक शक्ति के दुरुपयोग को रोकना है।
इसे तीन प्रमुख अंगों में बाँटा जाता है:

  • विधायी (Legislature)
  • कार्यकारी (Executive)
  • न्यायिक (Judiciary)

परिभाषा

शक्तियों का पृथक्करण वह सिद्धांत है जिसके अंतर्गत राज्य की सत्ता को अलग-अलग अंगों में बाँटा जाता है ताकि कोई भी अंग अकेले पूरी शक्ति का प्रयोग न कर सके।

  • मुख्य उद्देश्य:
    • शक्ति का दुरुपयोग रोकना।
    • लोकतांत्रिक शासन में संतुलन बनाए रखना।
    • सत्ता का केंद्रीकरण रोकना।
    • मनमानी और दुरुपयोग से नागरिकों की रक्षा करना।
    • लोकतंत्र में संतुलन और जवाबदेही बनाए रखना।

शक्तियों  पृथक्करण की तीन प्रमुख शाखाएँ और उनके कार्य

शाखा

कार्य

भारत में उदाहरण

विधायी (Legislature)

कानून बनाना

संसद (लोकसभा, राज्यसभा), राज्य विधानसभाएँ

कार्यकारी (Executive)

कानून लागू करना और शासन चलाना

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद, राज्यपाल, राज्य सरकार

न्यायिक (Judiciary)

कानून की व्याख्या करना और संविधान की रक्षा करना

सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय, अधीनस्थ न्यायालय

सिद्धांत के प्रमुख आयाम

सिद्धांत

विवरण

अनन्यता सिद्धांत (Exclusivity Principle)

सरकार को तीन अंगों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – में विभाजित करना।

कार्यात्मक सिद्धांत (Functional Principle)

प्रत्येक अंग की सीमाएँ तय करना और यह सुनिश्चित करना कि एक अंग दूसरे के कार्यों का अतिक्रमण न करे।

नियंत्रण और संतुलन (Check and Balance Principle)

सभी अंग एक-दूसरे पर निगरानी रखें ताकि शक्ति का दुरुपयोग न हो।

पारस्परिकता सिद्धांत (Mutuality Principle)

अंगों में सहयोग और सद्भाव होना चाहिए, टकराव नहीं।

शक्तियों के पृथक्करण सिद्धांत का महत्व

  • शक्ति का संतुलन: किसी भी शाखा को पूर्ण शक्ति नहीं मिलती।
  • स्वतंत्रता: तीनों अंग स्वतंत्र रूप से काम करते हैं।
  • जवाबदेही: प्रत्येक अंग दूसरे पर निगरानी रख सकता है।
  • लोकतंत्र की रक्षा: तानाशाही से बचाव और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा।

भारत में शक्तियों का पृथक्करण

भारतीय संविधान में सख्त पृथक्करण नहीं, बल्कि संतुलित पृथक्करण (Functional Separation) है।

  • अनुच्छेद 50: राज्य को न्यायपालिका और कार्यपालिका का पृथक्करण सुनिश्चित करने का निर्देश देता है।
  • नाजुक संतुलन:
    • प्रधानमंत्री व मंत्रीमंडल कार्यपालिका का हिस्सा हैं लेकिन संसद (विधायिका) के भी सदस्य होते हैं।
    • राष्ट्रपति कार्यपालिका का प्रमुख है, फिर भी अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी कर विधायी शक्ति का प्रयोग करता है।
    • न्यायपालिका कानून बनाने में सीधे शामिल नहीं, परंतु संवैधानिक परीक्षण और दिशा-निर्देशों द्वारा विधायिका-कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है (जैसे विशाखा दिशा-निर्देश)।

सरकार के अंगों के बीच संघर्ष और अतिक्रमण

संघर्ष का प्रकार

उदाहरण

न्यायिक हस्तक्षेप

सुप्रीम कोर्ट: राज्यपाल द्वारा सुरक्षित रखे गए राज्य विधेयकों पर राष्ट्रपति को 3 माह में निर्णय लेना होगा।

विधायिका का अतिक्रमण

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम, जिसमें कार्यपालिका और बाहरी व्यक्तियों को भी शामिल किया गया।

कार्यपालिका का अतिक्रमण

(i) ट्रिब्यूनल्स में कार्यपालिका का बहुमत।
(ii) बार-बार अध्यादेश जारी करना → विधायिका की भूमिका कम करना।

महत्वपूर्ण विचारक

  • मोंटेस्क्यू (Montesquieu):
    • फ्रांसीसी दार्शनिक, जिन्होंने “The Spirit of Laws” में इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

निष्कर्ष

  • भारत में सरकार के अंग पूरी तरह अलग नहीं, बल्कि परस्पर सहयोग और संतुलन के साथ कार्य करते हैं।
  • कुछ कार्यात्मक टकराव (Functional Overlap) होते हैं, लेकिन चेक एंड बैलेंस (Check and Balance) की व्यवस्था लोकतंत्र को सशक्त बनाती है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने शक्तियों के पृथक्करण को संविधान के मूल ढाँचे (Basic Structure) का हिस्सा माना है।

प्रश्न :-भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद राज्य को न्यायपालिका और कार्यपालिका को अलग करने का निर्देश देता है ?

(a) अनुच्छेद 32

(b) अनुच्छेद 50

(c) अनुच्छेद 124

(d) अनुच्छेद 368

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