(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य; सरकारी नीतियों व विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन एवं कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
संदर्भ
मद्रास उच्च न्यायालय के अनुसार, किसी विवाहित महिला को पासपोर्ट के लिए आवेदन करते समय अपने पति की अनुमति या हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं है।
क्या है मामला
- चेन्नई की एक महिला ने पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था किंतु चेन्नई स्थित क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय (RPO) ने उसे ‘फॉर्म जे’ में पति के हस्ताक्षर की मांग की।
- पासपोर्ट एक महत्वपूर्ण पहचान पत्र है जो देश से बाहर व्यक्ति की नागरिकता के प्रमाण पत्र के रूप में और अंतर्राष्ट्रीय यात्रा के लिए आवश्यक होता है।
- यह मामला इसलिए जटिल हो गया क्योंकि महिला एवं उसका पति विवाह विच्छेद (Divorce) की प्रक्रिया में हैं और दोनों के बीच तनावपूर्ण संबंध हैं।
- महिला के अनुसार, पति से हस्ताक्षर प्राप्त करना संभव नहीं था, फिर भी RPO आवेदन पर आगे की कार्यवाही के लिए तैयार नहीं था।
मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय
- न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने इस मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि पति की अनुमति या हस्ताक्षर की माँग करना गलत है और यह समाज में व्याप्त उस मानसिकता को दर्शाता है जिसमें महिलाएँ पति की संपत्ति (Chattle) मानी जाती हैं।
- एक विवाहित महिला की स्वतंत्र पहचान (Individuality) होती है और उसे किसी वैधानिक कार्यवाही के लिए पति पर निर्भर नहीं होना चाहिए।
- यह दृष्टिकोण पुरुष वर्चस्ववाद का प्रतीक है जो एक स्वतंत्र एवं समान समाज के अनुरूप नहीं है।
- न्यायालय ने चेन्नई RPO को याचिकाकर्ता के आवेदन को स्वतंत्र रूप से संसाधित करने और चार सप्ताह के भीतर पासपोर्ट जारी करने का आदेश दिया, बशर्ते अन्य आवश्यकताएँ पूरी हों।
कानूनी पक्ष
- अनुच्छेद 14 : सभी नागरिकों को समानता का अधिकार तथा महिला एवं पुरुष के बीच किसी प्रकार का भेदभाव असंवैधानिक है।
- अनुच्छेद 15(1) : राज्य किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है।
- अनुच्छेद 21 : जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार: जिसमें स्वतंत्र पहचान व गरिमा से जीने का अधिकार शामिल है।
- पासपोर्ट अधिनियम, 1967 : इसमें किसी विवाहित महिला के लिए पति की अनुमति की अनिवार्यता का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है।
- अत: RPO की माँग कानून के प्रावधानों के खिलाफ थी।
- यह निर्णय न्यायालय द्वारा ‘महिला की स्वायत्तता एवं वैधानिक अधिकारों की पुनः पुष्टि’ के रूप में देखा जा सकता है।
- यह निर्णय CEDAW (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women) जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अनुरूप है जिसमें भारत पक्षकार है।
सर्वोच्च न्यायालय के पिछले निर्णय
- सुरेश नंदा बनाम CBI (2008) : पासपोर्ट प्राधिकरण ही पासपोर्ट को जब्त या निरस्त कर सकता है, न कि अन्य प्राधिकरण।
- लीना मणिमेकलई मामला (2021) : पासपोर्ट को अनुचित रूप से रोकना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
प्रभाव
- यह फैसला महिलाओं को यह संदेश देता है कि वे पति के अधीन नहीं हैं, बल्कि एक स्वतंत्र नागरिक के रूप में उनके पास पूरे संवैधानिक अधिकार हैं।
- प्रशासनिक संस्थानों पर यह दबाव बनेगा कि वे पुराने, पितृसत्तात्मक नियमों को न दोहराएँ और लैंगिक दृष्टि से संवेदनशील कार्यप्रणाली अपनाएँ।
- महिलाओं में कानूनी जागरूकता एवं आत्मविश्वास बढ़ेगा।
- समाज में महिलाओं की स्वतंत्र पहचान को स्वीकार करने की दिशा में जागरूकता बढ़ाता है।
निष्कर्ष
मद्रास उच्च न्यायालय का यह फैसला केवल एक महिला के पासपोर्ट आवेदन से जुड़ा मामला नहीं है बल्कि यह समाज में महिलाओं की पहचान, स्वतंत्रता एवं गरिमा के संरक्षण का प्रतीक है। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि भारत की न्यायपालिका सामाजिक सुधार की दिशा में कितनी संवेदनशील व सक्रिय है। ऐसे निर्णय समता, स्वतंत्रता व गरिमा पर आधारित समाज के निर्माण की नींव हैं।