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5-जी तकनीक और भारत

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न)

(सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर तथा रोबोटिक्स से संबंधित विषयों के संदर्भ में जागरूकता)

संदर्भ

हाल ही में, भारत के दूरसंचार विभाग द्वारा भारतीय दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (Telecom Service Providers-TSP) को 5-जी तकनीक के परीक्षण की अनुमति प्रदान की गई है।

5-जी तकनीक

  • यह 5वीं पीढ़ी की सेल्युलर तकनीक है, जो मोबाइल नेटवर्क पर अपलोडिंग तथा डाउनलोडिंग की गति को बढ़ाएगा।
  • 4-जी तकनीक की 1Gbps (गीगा प्रति सेकेंड) की तुलना में 5-जी में इंटरनेट स्पीड को 20 Gbps की उच्च दर प्राप्त करने के लिये परीक्षित किया गया है।
  • 5-जी तकनीक उच्च इंटरनेट स्पीड के कारण लेटेंसी दर को भी कम करेगा।

लाभ

  • 5-जी तकनीक सेवा वितरण गुणवत्ता, नवाचार, औद्योगिक क्रांति 4.0 के माध्यम से स्मार्ट व विकासशील शहरों को सुविधा प्रदान करेगा।
  • 5-जी तकनीक की शुरूआत वर्ष 2020 में की गई थी। इसके द्वारा वर्ष 2025 तक 1.1 बिलियन मोबाइल कनेक्शन तक पहुँच बनाने तथा 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर राजस्व प्राप्ति की संभावना है।
  • यह तकनीक उच्च स्तर पर डाटा ट्रांसफर गति में सुधार करेगी तथा महत्त्वपूर्ण सेवाओं के निष्पादन में लगने वाले समय को भी कम करेगी।

5-जी तकनीक में विद्यमान संभावनाएँ

  • इस नई पीढ़ी के मोबाइल नेटवर्क में अर्थव्यवस्था को व्यापक लाभ प्रदान करने हेतु परिवर्तनकारी क्षमता है। यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संयोजन के साथ स्वचालित प्रणालियों को नया आयाम प्रदान करेगी।
  • इसके उपयोग के माध्यम से भारतीय नीति- निर्माताओं के पास नागरिकों और व्यवसायों को शिक्षित एवं सशक्त बनाने तथा मौज़ूदा शहरों को स्मार्ट एवं नवाचारी शहरों में परिवर्तित करने का अवसर है।
  • यह तकनीक नागरिकों को उन्नत, अधिक डेटा-गहन तथा डिजिटल अर्थव्यवस्था के माध्यम से सामाजिक व आर्थिक लाभ प्रदान करेगी।
  • भारत में 5G का उपयोग उन्नत आउटडोर और इनडोर ब्रॉडबैंड, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, स्मार्ट सिटी, स्मार्ट कृषि, ऊर्जा निगरानी, ​​दूरस्थ निगरानी, स्मार्ट ग्रिड, टेलीहेल्थ, औद्योगिक स्वचालन और दूरस्थ रोगी की निगरानी (Remote patient monitoring) जैसे क्षेत्रों में किया जा सकता है।

चुनौतियाँ

  • डिजिटल स्पेस में क्रांति लाने वाले भारत के दूरसंचार क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में मंदी देखी गई है।
  • दूरसंचार विभाग द्वारा संचार सेवा प्रदाता कंपनियों से मांगी गई बकाया राशि (लगभग 90000 करोड़ रुपए) पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने दूरसंचार कंपनियों की वित्तीय स्थिति को कमज़ोर कर दिया है।
  • जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देशों में 5-जी के परीक्षण से पता चलता है कि इस तकनीक के लिये छोटे शहरों में लगभग 6 मिलियन डॉलर तथा अधिक घनी आबादी वाले वाले शहरों में लगभग 60 मिलियन डॉलर तक निवेश की आवश्यकता होगी। ऐसे में 5-जी तकनीक के लिये भारी निवेश भारतीय दूरसंचार कंपनियों के लिये चिंता का एक विषय है।
  • वर्तमान राजकोषीय घाटे तथा उच्च दर पर स्पेक्ट्रम की नीलामी की कीमतों को देखते हुए इस तकनीक को सब्सिडी मिलने की संभावना कम है।
  • 5-जी विशिष्ट सेवा होगी अर्थात् इसका उपयोग केवल कुछ चयनित क्षेत्रों में ही किया जाएगा जबकि 3-जी व 4-जी व्यापक सेवाएँ हैं।
  • 5-जी अल्पावधि में शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान डिजिटल डिवाइड को कम करने की बजाय और अधिक बढ़ाएगा, क्योंकि वर्तमान में शहरी क्षेत्रों में भी व्यावसायिक स्तर पर 4-जी की पहुँच पर्याप्त नहीं है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी उपलब्धता आसान नहीं होगी।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • बकाया राशि पर स्थगन व समायोजित सकल राजस्व (Adjusted Gross Revenue- AGR) को फिर से परिभाषित करने और स्पेक्ट्रम शुल्क को कम करने जैसे उपायों से अनिश्चित वित्तीय स्थितियों का सामना कर रहीं दूरसंचार कंपनियों को मदद मिली है, जिससे वे 5-जी तकनीक में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित होंगी।
  • नीतिगत सुधारों के साथ-साथ स्वचालित मार्ग से दूरसंचार क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति तथा सरकार द्वारा इस क्षेत्र हेतु राहत पैकेज की घोषणा एक सकारात्मक कदम है।

आगे की राह

  • 5-जी तकनीक को अपनाने हेतु भारत के लिये पहली प्राथमिकता अंतिम उपयोगकर्ताओं और कवर की जाने वाली आबादी की पहचान तथा मौज़ूदा नेटवर्क और ऑपरेटरों का विश्लेषण करना है। साथ ही, भारत को 5-जी प्रयोग हेतु प्राथमिकता वाले शहरों की पहचान करनी होगी तथा एक उपयुक्त निवेश मॉडल व डिजिटल जोखिम एवं मूल्य निर्धारण को कम करने वाले उपायों को अपनाना होगा।
  • स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा लागत-लाभ विश्लेषण के बाद भारत में 5-जी तकनीक के संदर्भ में सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता है जो सुविधा, नीलामी तथा स्वस्थ प्रतिस्पर्धा एवं बाज़ार तंत्र के माध्यम से एकसमान अवसर की उपलब्धता सुनिश्चित करे।
  • 5-जी नेटवर्क की शुरुआत करना एक महंगी प्रक्रिया है, ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को उन उपायों पर विचार करने की आवश्यकता है जो फाइबर निवेश को प्रोत्साहित करते हैं।
  • इस तकनीक हेतु सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से निवेश आकर्षित करने और न्यूनतम ब्याज दर के आधार पर निवेश निधि की सुविधा प्रदान करने वाले उपायों के संदर्भ में भी विचार करने की आवश्यकता है।
  • भारत में 5-जी तकनीक की शुरुआत के लिये व्यावसायिक व्यवहार्यता का आकलन करने हेतु मेट्रो शहरों से शुरुआत करते हुए एक स्वतंत्र आर्थिक मूल्यांकन करना अनिवार्य है। ऐसा होने तक 4-जी नेटवर्क की मौज़ूदा गुणवत्ता को बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिये।
  • सरकार द्वारा कानूनों एवं विनियमों तथा करों एवं सब्सिडी के माध्यम से सूचना विषमता व नकारात्मक बाह्याताओं को भी संबोधित करने की आवश्यकता है।
  • 5-जी तकनीक के सफल क्रियान्वयन हेतु सरकारी बुनियादी ढाँचे, जैसे- ट्रैफिक लाइट, लैंप पोस्ट आदि तक पहुँच के अधिकार की भी आवश्यकता होगी, जहाँ वायरलेस ऑपरेटर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को लगा सकते हैं।
  • राज्य और स्थानीय सरकारों द्वारा ऑपरेटरों से 5-जी उपकरणों की किफ़ायती तैनाती के लिये उचित शुल्क लिया जा सकता है।
  • फाइबर नेटवर्क की तैनाती हेतु कर- बोझ को हटाने से संबंधित लागत कम हो जाती है, जिससे निवेश को बढ़ावा मिलता है, जैसा कि सिंगापुर सरकार द्वारा किया गया था। यह भारत में फाइबर नेटवर्क की सुचारू तैनाती में मदद कर सकता है।
  • सरकार द्वारा डिजिटल डिवाइड की अवधारणा को कम करने हेतु अर्द्ध-शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 5-जी तकनीक की उपलब्धता हेतु आवश्यक आधारभूत ढाँचे के निर्माण पर बल दिया जाना चाहिये।
  • भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) नवीनीकरण प्रक्रिया के साथ एक सुरक्षित स्पेक्ट्रम रोड मैप तैयार करने पर विचार कर सकता है जो क्रियान्वयन के लिये आवश्यक भारी निवेश की भरपाई करते हुए कवरेज सुनिश्चित करेगा।

निष्कर्ष

भारत ने लागत प्रभावी 4-जी प्रौद्योगिकी के कारण अपने दूरस्थ क्षेत्रों में पहले ही डिजिटल क्रांति का अनुभव किया है। 5-जी का उपयोग इस क्षेत्र को और आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। साथ ही, विनिर्माण और नवाचार केंद्र के रूप में उभरने के भारत के लक्ष्य को भी सुगम बना सकता है। ऐसे में, यह आवश्यक है कि सरकार द्वारा इस तकनीक से संबंधित चुनौतियों को संबोधित करने के लिये आवश्यक प्रयास किये जाएँ।

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