New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

सिंधु जल समझौते के 60 वर्ष : एक नए स्वरूप की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारत एवं विश्व का प्राकृतिक भूगोल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 3 : जल-स्रोत और हिमावरण सहित स्थान- अति महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताएँ, भारत एवं इसके पड़ोसी सम्बंध, सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली)

चर्चा में क्यों?

19 सितम्बर को भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty- IWT) की 60 वीं वर्षगांठ है।

पृष्ठभूमि

  • सिंधु जल संधि को अक्सर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की बेहतर सम्भावनाओं के उदाहरण के रूप में देखा जाता है, जो दोनों देशों के बीच आपसी सम्बंधों के कठिन दौर के बावजूद भी मौजूद है।
  • विश्व बैंक ने तीसरे पक्ष के रूप में IWT में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसी की मध्यस्थता में वर्ष 1960 में कराची में इस संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे। यह विश्व बैंक के लिये विशेष रूप से गर्व की बात है, क्योंकि यह संधि अभी भी सुचारु रूप से जारी है।
  • संधि के प्रावधानों के अनुपालन में इस नदी प्रणाली के ऊपरी प्रवाह वाले देश के रूप में भारत की भूमिका उल्लेखनीय रही है। वर्तमान में पाकिस्तान के साथ भारत के समग्र राजनैतिक सम्बंध असहज हैं, अत: भारत पर दबाव है कि वह इसके प्रावधानों पर किस हद तक प्रतिबद्धता दर्शाए।

सिंधु जल संधि : न्यायसंगत जल बँटवारा

  • वर्ष 1947 में भारत विभाजन के बाद सिंधु नदी प्रणाली का बँटवारा अपरिहार्य था। विभाजन के बाद सिंधु नदी प्रणाली की तीन ‘पश्चिमी नदियों’ (सिंधु, झेलम और चिनाब) का जल पाकिस्तान के हिस्से में और तीन ‘पूर्वी नदियों’ (सतलज, रावी और ब्यास) का जल भारत के हिस्से में आया।
  • प्रथम दृष्टया यह विभाजन न्यायसंगत लग सकता है, परंतु वास्तविकता यह है कि भारत ने समझौते के अंतर्गत सिंधु नदी प्रणाली के कुल जल प्रवाह का 80.52% हिस्सा पाकिस्तान को दिया है।
  • साथ ही समझौते के तहत पश्चिमी नदियों से नहरों के निर्माण हेतु पाकिस्तान को पाउंड स्टर्लिंग के रूप में 83 करोड़ रुपए भी सहायतार्थ प्रदान किये गए।
  • भारत ने पूर्वी नदियों पर पूर्ण अधिकार के लिये पश्चिमी नदियों पर अपनी ऊपरी स्थिति को ही स्वीकार किया। भारत की विकास योजनाओं के लिये पानी की ज़रूरत थी। अतः प्रस्तावित राजस्थान नहर और भाखड़ा बाँध के लिये ‘पूर्वी नदियों’ का पानी प्राप्त करना अनिवार्य हो गया, नहीं तो पंजाब और राजस्थान दोनों के कृषि क्षेत्र गम्भीर रूप से सूखा प्रभावित हो जाते।
  • नेहरू ने वर्ष 1963 में भाखड़ा नहरों का उद्घाटन करते हुए इसे ‘एक विशाल उपलब्धि और राष्ट्र की ऊर्जा तथा उद्यम का प्रतीक’ बताया।
  • हालाँकि, पाकिस्तान में इसको लेकर तीव्र आक्रोश था कि भारत को पूर्वी नदियों पर कुल 33 मिलियन एकड़ फीट (MAF) का प्रवाह प्राप्त हो गया, जबकि भारत हमेशा इस बात को लेकर सचेत था कि भाखड़ा नहरों का अस्तित्व पाकिस्तान को कम जलापूर्ति की कीमत पर नहीं होना चाहिये।

दोनों देशों के मध्य रिश्तों में बढ़ती असहजता और IWT

  • कई सकारात्मक प्रयासों के बावजूद पाकिस्तानी नेतृत्व भारत के साथ पानी के बँटवारे को एक अनसुलझा मुद्दा मानता है। वास्तव में, पाकिस्तान की चिंता पश्चिमी नदियों, विशेष रूप से झेलम और चिनाब पर भारतीय परियोजनाओं की तकनीकी शर्तों की अनुरूपता को लेकर है।
  • भारत के प्रति आशंकाओं तथा सिंधु नदी प्रणाली में निम्न प्रवाह वाला राज्य होने के नाते पाकिस्तान द्वारा इस मुद्दे के राजनीतिकरण को बढ़ावा दिया गया है।
  • पाकिस्तान अपनी पूर्वी सीमा पर भारत द्वारा पश्चिमी नदियों को अपने नियंत्रण में लेने की के डर से इसके आसपास उच्च सैन्य स्तर और सतर्कता बनाए रखता है।
  • सिंधु नदी बेसिन अपनी रणनीतिक स्थिति और महत्त्व के कारण अंतर्राष्ट्रीय ध्यानाकर्षण का विषय रहा है और वर्ष 1951 में एक अमेरिकी विशेषज्ञ ने इस मुद्दे के कारण ‘एक अन्य कोरिया’ के निर्माण की चिंता व्यक्त की थी, जिसने विश्व बैंक को मध्यस्थता के लिये प्रेरित किया।

संधि को निरस्त करने का विकल्प

  • सीमा पार आतंकवाद और पाकिस्तानी घुसपैठ के प्रतिक्रियास्वरूप कई बार भारत में IWT को निरस्त करने की माँग की गई है। ऐसे किसी भी प्रयास के लिये कई राजनैतिक-राजनयिक और हाइड्रोलॉजिकल कारकों के निर्धारण की आवश्यकता के साथ-साथ राजनीतिक सहमति की भी आवश्यकता होती है।
  • यह संधि ‘निर्बाध’ बनी हुई है, क्योंकि भारत अपनी कूटनीति और आर्थिक समृद्धि दोनों के संदर्भ में सीमा-पार नदियों से सम्बंधित मूल्यों और एक हस्ताक्षरकर्ता के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी निभाता है।
  • पाक समर्थित आतंकी घटनाएँ भारत को वियना अभिसमय के अंतर्गत ‘संधि के नियमों’ के तहत IWT से हटने के लिये प्रेरित कर सकती थीं, परंतु भारत ने ऐसा नहीं किया।

संधि के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता

  • हो सकता है कि इस संधि पर हस्ताक्षर किये जाने के समय यह किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति करता रही हो, परंतु जलविद्युत की वर्तमान वास्तविकताओं के साथ, बाँध निर्माण और डी-सिल्टेशन में उन्नत इंजीनियरिंग प्रणालियों के परिणामस्वरूप इसको नए सिरे से देखने की तत्काल आवश्यकता है।
  • IWT के अनुच्छेद XII के अनुसार, दोनों सरकारों द्वारा आपसी सहमती बनने पर कुछ शर्तों के साथ इसको ‘समय-समय पर संशोधित’ किया जा सकता है।
  • भारत के पास इस समझौते को निरस्त करने का विकल्प मौजूद है। हालाँकि, भारत इस कदम से संकोच करता है, अत: मौजूदा समय में IWT में संशोधन को लेकर बहस बढ़ रही है।

आगे की राह

  • पश्चिमी नदियों पर IWT द्वारा दी गई ‘अनुमेय भंडारण क्षमता’ के 3.6 मिलियन एकड़ फीट (MAF) का उपयोग करने में भारत को तेज़ी दिखानी चाहिये।
  • जल विकास परियोजनाओं के कुप्रबंधन और अवसंरचना की कमी के कारण 2 से 3 एम.ए.एफ. पानी आसानी से पाकिस्तान में प्रवाहित हो जाता है, जिसका तत्काल उपयोग करने की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा, कश्मीर में तीन पश्चिमी नदियों से 11406 मेगावाट बिजली की कुल अनुमानित क्षमता का दोहन किया जा सकता है, जिसमें से अब तक केवल 3034 मेगावाट (एक-चौथाई से कुछ अधिक) का ही उपयोग किया गया है। इसके अधिकतम प्रयोग की सम्भावनाओं पर विचार किया जाना चाहिये।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR