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अफगानिस्तान से अमेरिका की सैन्य वापसी

(प्रारम्भिक परीक्षा- अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत एवं इसके पड़ोसी- सम्बंध)

चर्चा में क्यों?

अमेरिका 20 जनवरी तक अफगानिस्तान में अपनी सैन्य उपस्थिति को लगभग 2,500 तक कम करने की तैयारी कर रहा है। विदित है कि 20 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह आयोजित होगा।

पृष्ठभूमि

तालिबान वर्ष 2001 में अमेरिकी आक्रमण के बाद सत्ता से बेदखल हो गया था और तब से वह विदेशी सेना व अफगान सरकार दोनों से संघर्षरत हैं। वर्तमान में इसका देश के आधे से अधिक हिस्से पर नियंत्रण हैं। इस वर्ष हुए समझौते के तहत अमेरिका द्वारा सैनिकों की संख्या कम करने से अफगानिस्तान अनिश्चित भविष्य की ओर बढ़ रहा है।

समझौते के मुख्य बिंदु

  • इस वर्ष फरवरी में दोहा में अमेरिका और तालिबान के मध्य हुए समझौते के अनुसार अमेरिका 14 महीने में अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुला लेगा। इसके बदले में तालिबान ने आश्वासन दिया है कि वह अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे अंतर्राष्ट्रीय जिहादी संगठनों को अफगानिस्तान की ज़मीन का उपयोग नहीं करने देगा।
  • साथ ही, तालिबान ने अफगान सरकार के साथ सीधी वार्ता प्रारम्भ करने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की है। यह वार्ता सितम्बर में अफगान सरकार द्वारा लगभग 5,000 तालिबान कैदियों को रिहा करने के बाद शुरू हुई जिसका वादा अमेरिका ने समझौते में किया था।

वर्तमान स्थिति

  • बातचीत करने वाले पक्षों ने दोहा में आगामी शांति वार्ता में ‘अमेरिका-तालिबान समझौते’ तथा ‘अफगान शांति प्रक्रिया के लिये संयुक्त राष्ट्र के अनुसमर्थन’ को वार्ता में शामिल करने पर सहमति व्यक्त की है।
  • विशेषज्ञ इसे एक सफलता के रूप में देख रहे हैं क्योंकि तालिबान अभी तक अफगान सरकार के साथ वार्ता में अमेरिकी समझौते को शामिल करने का विरोध करता रहा है।
  • हालाँकि, बातचीत के दौरान भी तालिबान का आक्रामक रवैया जारी रहा है। वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, फरवरी के बाद से तालिबान देश भर में 13,000 से अधिक हमले कर चुका है।

अनिश्चितता का समय

  • अफगान शांति प्रक्रिया के लिये यह अनिश्चितता का समय है। ब्रुसेल्स स्थित अंतर्राष्ट्रीय संकट समूह (ICG) के अनुसार हाल के महीनों में तालिबान द्वारा हिंसा को पुनः प्रारम्भ करने और वार्ता में धीमी प्रगति के बावजूद सैनिकों की निरंतर कमी ने अफगानी लोगों और पर्यवेक्षकों को चिंतित कर दिया है।
  • विश्लेषकों के अनुसार तालिबान ने ऐसे बहुत से संकेत दिये हैं जिससे यह पता चलता है कि वह अमेरिकी समझौते के प्रति प्रतिबद्ध नहीं रहना चाहता है। साथ ही, इस बात के भी सबूत हैं कि तालिबान अफगानिस्तान में अल-कायदा का सहयोग कर रहा है। जून में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि दोनों समूहों के बीच घनिष्ठ सम्बंध जारी रहे हैं।
  • तालिबान अब बड़े प्रांतों और प्रांतीय राजधानियों को भी निशाना बना रहा हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इसके द्वारा तालिबान सैन्य दबाव से बातचीत में अपनी स्थिति को मज़बूत करना चाहता है।
  • सितम्बर में भी शांति वार्ता से पूर्व उपराष्ट्रपति अमिरुल्लाह सालेह पर हमला हुआ था, जिनको कट्टर तालिबान विरोधी विचारों के लिये जाना जाता है।

प्रभुत्व की कोशिश

  • अफगानिस्तान से सैनिकों को कम करने के आदेश ने तालिबान के प्रभुत्व में वृद्धि करने और देश भर में आक्रामक रवैया बनाए रखने के लिये प्रोत्साहित किया है।
  • साथ ही, अमेरिका कंधार में  बड़े पैमाने पर बेस को भी ध्वस्त करने की तैयारी में है। इस निर्णय से भी तालिबान को अपना प्रभुत्व बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
  • वर्तमान में अमेरिकी व गठबंधन सेना प्रत्यक्ष रूप से युद्ध में शामिल नहीं हैं बल्कि वे अफगान सैनिकों के प्रशिक्षण का कार्य करते हैं। हालाँकि, अमेरिकी वायु सेना अफगान सेना की महत्त्वपूर्ण सहयोगी है जो तालिबान द्वारा जनसंख्या के बड़े केंद्रों व शहरों को अधिकार में लिये जाने के प्रयासों का विरोध करती है।

बाइडन की नीति

  • अभी अफगान सरकार की आशाएँ धूमिल नहीं हुई हैं क्योंकि सैकड़ों-हजारों सैनिक इसके लिये लड़ रहे हैं और शहरों की सुरक्षा में अपना समर्थन प्रदान कर रहे हैं।
  • आगे की स्थिति काफी कुछ जो बाइडन की अफगान नीति और शांति वार्ता के परिणाम पर निर्भर करती है। बाइडन ने कहा है कि उनका प्रशासन अपने पहले कार्यकाल में ही अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लेगा। साथ ही, नाटो ने भी अगले चार वर्षों के लिये ही अफगान सैनिकों की फंडिंग के लिये प्रतिबद्धता जाहिर की है।
  • इन चुनौतियों के बावजूद अच्छी बात यह है कि सरकार के प्रतिनिधि व तालिबान बातचीत कर रहे हैं और वार्ता में अमेरिका-तालिबान समझौते को शामिल करने के करीब पहुँच गए हैं।
  • नए अमेरिकी प्रशासन ने आगामी किसी भी सैन्य वापसी को जिम्मेदारी पूर्वक पूरा करने का वचन दिया है। अनिश्चितता के बावजूद यह शांति प्रक्रिया को पुन: स्थापित करने एवं गति देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण हो सकता है।

निष्कर्ष

अमेरिका द्वारा महत्त्वपूर्ण समय पर अफगानिस्तान वापसी से न केवल अफगानी सैन्य बल आवश्यक समर्थन से वंचित होंगे बल्कि यह उनके मनोबल को भी प्रभावित करेगा। अफगानी सैनिक अत्यधिक दबाव में हैं और अमेरिकी समर्थन के बिना संघर्ष की सम्भावनाओं से चिंतित हैं। इससे दक्षिण एशिया में शांति प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

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