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स्मार्ट सिटी मिशन के बदलते प्रतिमान

(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और रक्षोपाय)

चर्चा में क्यों?

जून 2020 में भारत सरकार की महत्त्वाकांक्षी परियोजना स्मार्ट सिटी मिशन को पाँच वर्ष पूरे हो गए हैं। वर्तमान में कोविड-19 महामारी में स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में इस मिशन का महत्त्व अत्यधिक बढ़ गया है।

पृष्ठभूमि

भारत की वर्तमान जनसंख्या का लगभग 31 % हिस्सा शहरों में निवास करता है। सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान लगभग 63% है। वर्ष 2030 तक भारत की आबादी का लगभग 40% हिस्सा शहरी क्षेत्र का होगा, जिसके लिये भौतिक, संस्थागत, सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढाँचे के व्यापक विकास की आवश्यकता होगी। ये सभी तत्त्व लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार तथा अधिक निवेश को आकर्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

स्मार्ट सिटी मिशन के उद्देश्य

  • स्मार्ट सिटी मिशन ऐसे शहरों को बढ़ावा देता है, जो मूल बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता के साथ-साथ नागरिकों के लिये गुणवत्तापूर्ण जीवन और स्वच्छ व टिकाऊ पर्यावरण हेतु समाधान प्रस्तुत कर सकें।
  • मिशन में मुख्य रूप से क्षेत्र आधारित विकास मॉडल के माध्यम से 100 चयनित शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने लक्ष्य रखा गया है, जिसके तहत शहर के एक छोटे से हिस्से को रेट्रोफिटिंग, पुनर्विकास और हरित क्षेत्र के रूप में उन्नत किया जाएगा।
  • मिशन में टिकाऊ और समावेशी विकास पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है, जो अन्य शहरों के लिये मार्गदर्शक का काम करेगा।

स्मार्ट सिटी मिशन की वर्तमान चुनौतियाँ

  • कोरोना वायरस महामारी काफी हद तक एक शहरी संकट रहा है। अधिकांश स्मार्ट शहर अब कोविड-19 संकट की चपेट में हैं। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे मेगासिटी ही महामारी से अत्यधिक प्रभावित हैं।
  • भारतीय शहर न केवल एक सार्वजानिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे हैं, बल्कि आर्थिक मुद्दों और आजीविका का संकट भी इनके समक्ष एक बड़ी चुनौती है।
  • लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में शहरी निवासियों का रोज़गार समाप्त हो चुका है साथ ही, निकट भविष्य में भी रोज़गार मिलने की सम्भावना कम ही दिखाई दे रही है।
  • महामारी के दौरान स्मार्ट सिटी मिशन की संरचना का लाभ उठाया गया है। कुछ शहरों में वायरस के प्रसार के बारे में वास्तविक समय में आँकड़ों की निगरानी हेतु इंटिग्रेटेड कमांड एंड कण्ट्रोल सेण्टर का उपयोग वॉर रूम के रूप में किया जा रहा है।
  • स्मार्ट सिटी मिशन के तहत शुरू की गईं परियोजनाएँ अपने निर्धारित समय से काफी पीछे हैं। 100 शहरों में 5151 स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में से 4700 परियोजनाओं की निविदा जारी की गई थी, जबकि इनमे से केवल 1638 परियोजनाओं को ही पूरा किया गया है।
  • मिशन के तहत बड़े पैमाने पर सार्वजानिक स्वास्थ्य की उपेक्षा की गई है। स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत 5,000 से अधिक परियोजनाओं में से केवल 69 परियोजनाएँ स्वास्थ्य बुनयादी ढाँचे से सम्बंधित थीं।
  • इस मिशन ने स्थानीय सरकारों को और कमज़ोर कर दिया है। विशेष प्रयोजन वाहन के समानांतर शासन संरचनाओं के होने से स्थानीय निकायों के उत्तरदायित्त्व में कमी आई है।

आगे की राह

  • महामारी के दौर में केरल राज्य ने यह साबित कर दिया है कि मज़बूत स्थानीय सरकारों के साथ विकेंद्रीकृत राजनीतिक एवं प्रशासनिक प्रणाली तथा उच्च निवेश किस प्रकार स्थानीय सार्वजानिक स्वास्थ्य देखभाल में प्रभावी हो सकता है।
  • राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन जैसे कार्यक्रम, जिन पर अभी तक कम ध्यान दिया गया है, उन्हें और अधिक संसाधन प्रदान कर व्यापक स्तर पर प्रोत्सहित किये जाने की आवश्यकता है।
  • वर्तमान में बड़ी संख्या में आशा कार्यकर्ताओं के स्थान रिक्त हैं। शहरी स्वास्थ्य ढाँचे को मज़बूती प्रदान करने हेतु इन्हें शीघ्रता से भरा जाना चाहिये।
  • शहरी निवासियों की रोज़गार सुरक्षा के लिये एक राष्ट्रीय शहरी रोज़गार गारंटी कार्यक्रम की शुरुआत की जानी चाहिये (केरल राज्य में वर्ष 2010 से ऐसी योजना कार्यान्वित की जा रही है)।
  • वर्तमान समय में भारतीय शहर एक अभूतपूर्व चुनौती का सामना कर रहे हैं। समय की माँग है की ऐसे कार्यक्रमों में निवेश किया जाए, जो शहरी विकास की प्राथमिकताओं को आधार बनाकर अपने निवासियों की बेहतर स्वास्थ्य और आजीविका प्राप्त करने सहायता प्रदान कर सकें।

निष्कर्ष

मिशन के तहत शहरी क्षेत्रों की बढ़ती आबादी को समायोजित करने हेतु शहरों के आस-पास हरित क्षेत्र विकसित किए जाएं। स्मार्ट समाधानों के प्रयोग से शहर की अवसंरचना और सेवाओं में सुधार के लिये तकनीक, सूचना और आँकड़ों के उपयोग से जीवन की गुणवत्ता में व्यापक सुधार देखने को मिलेगा, जिससे रोज़गार सृजन के साथ-साथ उपेक्षित वर्गों की आय में वृद्धि से शहर समावेशी बन सकेंगे।

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