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जलवायु परिवर्तन और जल

(प्रारम्भिक परीक्षा: पर्यावरण पारिस्थितिकी, मौसम परिवर्तन सम्बंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व जल विकास सम्बंधी रिपोर्ट जारी की गई है। विश्व जल दिवस का आयोजन प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को किया जाता है।

पृष्ठभूमि

वैश्विक जल संकट, जलवायु परिवर्तन कर साथ अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। जलवायु परिवर्तन के कारण जल-चक्र की प्रक्रिया में परिवर्तनशीलता देखी जा रही है। इसी कारण चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि, जल उपलब्धता के पूर्वानुमान में समस्या तथा जल की गुणवत्ता में कमी आई है। इससे सुरक्षित पेयजल व स्वच्छता जैसे मानवाधिकारों पर संकट के साथ-साथ सतत् विकास व जैव विविधता के लिये खतरा उत्पन्न हो गया है।

  • क्या कहती है रिपोर्ट?
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते जल की कमी (Water Stress) से जूझ रहे देशों में समस्या और भी बढ़ेगी। साथ ही, उन क्षेत्रों में भी गम्भीर समस्याएँ उत्पन्न होंगी, जो अभी तक इस समस्या से अछूते थे।
  • रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित अंतर्राष्ट्रीय नीतिगत रूपरेखाओं में जल पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिये क्योंकि जल कार्बन उत्सर्जन को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
  • जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु अंतर्राष्ट्रीय नीतिगत ढाँचे (Policy framwork) में जल को समाहित नहीं किया गया है, क्योंकि जल-प्रबंधन व अंतर्राष्ट्रीय नीति में अभी अंतराल है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, पिछली सदी में जल उपयोग में 6 गुना की वृद्धि हुई है। ऐसी स्थिति में जलवायु परिवर्तन के कारण जल की उपलब्धता, गुणवत्ता, मात्रा व आधारभूत मानवीय आवश्यकताओं पर प्रभाव पड़ेगा।
  • जल दिवस 2020 की थीम है- 'जल तथा जलवायु परिवर्तन'। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जल एवं जलवायु दोनों मुद्दे एक-दूसरे के साथ किस तरह अटूट रूप से जुड़े हुए हैं।

जल की कमी एवं इसका जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • जल की वैश्विक मांग के कारण जल आधारित कार्बन सिंक, जैसे- पीटलैंड्स के निम्नीकरण में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। साथ ही, कुछ जलवायु परिवर्तन शमन उपायों, जैसे- जैव ईंधन के अधिक प्रयोग से पानी की कमी में और अधिक वृद्धि हो सकती है।
  • सुरक्षित पेयजल व स्वच्छता एक मानवाधिकार है। जल तथा स्वच्छता सामाजिक-आर्थिक विकास, खाद्य सुरक्षा एवं स्वास्थ्य पारिस्थितिकी के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। साथ ही, ये समुदाय तथा लोगों की उत्पादकता, जन कल्याण, स्वास्थ्य सुधार तथा बीमारियों के कारण वैश्विक बोझ को कम करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • जल के उचित प्रयोग के अभाव में भूमि उपयोग (Land use) में बदलाव, मृदा स्वास्थ्य में कमी, भूमिगत जल का दोहन तथा व्यापक स्तर पर पारिस्थितिकी निम्नीकरण व जैव विविधता को नुकसान हो रहा है।
  • एक तरफ, जलवायु परिवर्तन से जहाँ समुद्र जल-स्तर में वृद्धि के साथ-साथ असामान्य बाढ़ एवं सूखा अथवा दोनों के क्षेत्र, समय व आवृति में वृद्धि हो रही है; वहीं दूसरी ओर, ऊर्जा व कृषि उद्योग तथा मानवीय खपत के कारण पानी की मांग में वृद्धि से जल संकट पैदा हो गया है।
  • विगत एक दशक में बाढ़, तूफान (Storm), हीटवेव तथा अन्य मौसमी घटनाएँ 90 फीसदी से अधिक प्राकृतिक आपदाओं के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • विश्व भर में लगभग 3.6 बिलियन लोग वर्ष में कम-से-कम 1 माह सम्भावित जल की कमी वाले क्षेत्र में रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक यह संख्या 4.8  से  5.7 बिलियन के मध्य रह सकती है।
  • जुलाई 2018 में उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (High Level Political Forum-HLPF) द्वारा सतत् विकास लक्ष्यों की समीक्षा करते हुए 'लक्ष्य 6' के संदर्भ में कहा गया है कि ‘विशेषकर गरीब समुदायों के लिये लक्ष्यों को पूरा करने हेतु स्थितियाँ अनुकूल नहीं हैं, स्थितियाँ बिगड़ने से छठे सतत् विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न होगी।
  • 'एजेंडा 2030' सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) से सम्बंधित है। इन 17 सतत् विकास लक्ष्यों में छठा शुद्ध पेयजल व स्वच्छता से सम्बंधित है। इसके तहत अगले 10 वर्षों में सुरक्षित पेयजल व स्वच्छता तक पहुँच को सुनिश्चित करना है। रिपोर्ट के अनुसार, 2.2 बिलियन लोग सुरक्षित पेयजल की पहुँच से तथा 4.2 बिलियन लोग स्वच्छता से दूर हैं।

उपाय

  • राष्ट्रीय व क्षेत्रीय जलवायु नीति व प्रबंधन को जलवायु परिवर्तन एवं जल प्रबंधन के लिये एक समन्वित दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है। नीतियों द्वारा निजी क्षेत्र व नागरिक समाज सहित सभी हितधारकों के प्रतिनिधित्व, भागीदारी, व्यवहार में बदलाव एवं उत्तरदायित्व को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • समुदायों, अर्थव्यवस्थाओं तथा पारिस्थितिकी तंत्र के लिये जल संरक्षण वस्तुतः गरीबी उन्मूलन, हरित ऊर्जा स्थानांतरण एवं राष्ट्रीय आपदा से सुरक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की ‘जलवायु परिवर्तन के कारण हाइड्रोलॉजिकल प्रभाव की पाँचवी आकलन रिपोर्ट के अनुसार-
    • वैश्विक तापन को पूर्व-औद्योगिक स्तर के 2 डिग्री सेंटीग्रेड के मुकाबले 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक सीमित करने से जल संसाधनों के लिये महत्त्वपूर्ण परिणाम हो सकते हैं।
    • हरितगृह गैसों की सांद्रता में वृद्धि से ताज़े जल सम्बंधी जोखिमों में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। जलवायु परिवर्तन के चलते मौसमी सूखा (कम वर्षा), कृषिगत सूखा (मृदा की आर्द्रता में कमी) और हाइड्रोलॉजिकल सूखा (सतही जल व भूजल में कमी) की आवृत्ति में वृद्धि होगी।
    • कार्बन सिंक, जैसे- पीटलैंड व तटीय मैंग्रोव के संरक्षण से जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान सम्भव है। पीटलैंड (पीट मृदा व वेटलैंड) विश्व के कुल स्थलीय क्षेत्रफल का केवल 3% क्षेत्र कवर करता है, परंतु यह पृथ्वी के कुल वनों का कम-से-कम 2 गुना कार्बन संचित (Store) करता है।
    • मैंग्रोव लगभग 6 बिलियन टन कार्बन संचित करते हैं। मैंग्रोव वन अन्य स्थलीय वनों की तुलना में लगभग 3 से 4 गुना अधिक कार्बन पृथक्करण (Sequester) कर सकते हैं।
  • जल प्रबंधन के अन्य प्रमुख उपायों में जल रिसाव, जल चोरी और मीटरिंग सम्बंधी खामियों को कम करना शामिल हैं। इनके अलावा, विशेषकर कृषि व उद्योग क्षेत्र में जल संरक्षण तकनीक का प्रयोग और गैर-परम्परागत जल स्रोतों, जैसे- उपचारित अपशिष्ट जल का सिंचाई कार्यो में उपयोग भी लाभकारी है।
  • जलभृतों (Aquifer) का संरक्षण व सुरक्षा आवश्यक है। जलभृत मानवीय प्रयोग के लिये उपलब्ध ताज़े जल के सबसे बड़े स्रोत हैं। इस पर सतही जल की अपेक्षा जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष प्रभाव कम पड़ता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सतत् विकास के लिये 'एजेंडा 2030', वर्ष 2015 का जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता और आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क को ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिये ही अपनाया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि जल प्रबंधन लैंगिक समानता और समावेशी समाज में वृद्धि का समर्थन करता है।                                                                                                     
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