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घाटे का प्रत्यक्ष मौद्रीकरण: वर्तमान समस्या में कितना कारगर?

(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा: प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधन जुटाने; प्रगति; विकास व रोज़गार से सम्बंधित विषय)

चर्चा में क्यों?

वर्तमान समय में व्यावसायिक गतिविधियों के ठप होने के कारण अर्थव्यवस्था में सुस्ती है। सरकार के पास उधार लेने के लिये बाज़ार में पर्याप्त धन नहीं है।

पृष्ठभूमि

सरकार ने वित्त विधेयक, 2017 के ज़रिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को पुन: कुछ विशेष परिस्थितियों में राजकोषीय घाटे के मौद्रीकरण हेतु प्राथमिक बॉन्ड बाज़ारों में भागीदारी करने के लिये समर्थ बना दिया। रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन ने कहा कि व्यय बढने और राजस्व में कमी आने से सरकार को अधिक उधारी जुटाने की ज़रूरत है। उनके अनुसार, इसके लिये घाटे के कुछ हिस्से का मौद्रीकरण करना आवश्यक हो जाता है।

घाटे का प्रत्यक्ष मौद्रीकरण: अवधारणा

  • अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति में यदि एक ऐसे परिदृश्य का निर्माण हो जाए, जहाँ सरकार वित्तीय प्रणालियों को दरकिनार करते हुए सीधे आर.बी.आई. के साथ समझौता करती है और आर.बी.आई. को दिये गए नए बॉन्ड के बदले में नई करेंसी को मुद्रित करने के लिये कहती है।
  • प्रत्येक करेंसी नोट में आर.बी.आई. गवर्नर द्वारा निर्धारित राशि का भुगतान करने का वादा किया जाता है। ऐसी स्थिति में इस नकदी को छापने के बदले में, जोकि आर.बी.आई. के लिये एक देनदारी है, उसको सरकारी बॉन्ड मिलते हैं।
  • इस तरह के बॉन्ड आर.बी.आई. के लिये एक परिसम्पत्ति हैं क्योंकि ऐसे बॉन्ड निर्दिष्ट तिथि पर निर्दिष्ट राशि का भुगतान करने के सरकार के वचन या वादे को पूरा करते हैं।
  • चूँकि सरकार के दिवालिया होने की आशा नहीं होती हैं, अतः आर.बी.आई. की बैलेंस शीट भी इतनी व्यवस्थित होगी कि सरकार अर्थव्यवस्था को पुन: शुरू कर सकती है।
  • आसान शब्दों में कहें तो घाटे के मौद्रीकरण से तात्त्पर्य है कि आर.बी.आई. प्रत्यक्ष रूप से प्राथमिक बाज़ार में सरकारी बॉन्ड खरीदता है और इस ऋण का भुगतान अधिक पैसा छाप कर करता है।
  • इससे सरकार के पास खर्च करने के लिये नगदी होगी। सरकार विभिन्न उपायों जैसे डी.बी.टी. आदि के माध्यम से गरीबों को धन प्रेषण या सामाजिक और पूंजीगत क्षेत्र में खर्च आदि के माध्यम से अर्थव्यवस्था में सुस्ती और तनाव को कम करते हुए तेजी ला सकती है।

घाटे का प्रत्यक्ष मौद्रीकरण की माँग का कारण

  • इसका पहला कारण माँग में कमी है। राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण आय में कमी आई है, जिससे उपभोग माँग में भी कमी आई है। दूसरे शब्दों में, अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की माँग कम हो गई है।
  • ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था और माँग में वृद्धि के लिये लोगों और उपभोक्ताओं के पास धन होना चाहिये। जिसके लिये किसी स्रोत की आवश्यकता होती है। उच्च श्रेणी से लेकर निम्न स्तर तक के कर्मचारियों की आय में भारी गिरावट आई है।
  • इसका दूसरा कारण राजकोषीय घाटा है। आर.बी.आई. अपने प्रयासों के तहत वित्तीय प्रणाली में तरलता में वृद्धि हेतु प्रयासरत है। वह वित्तीय प्रणालियों से सरकारी बॉन्डों को खरीदता है, जिसके बदले में उन्हें धन प्राप्त होता है। हालाँकि अधिकांश बैंक नए ऋण देने के लिये तैयार नहीं है क्योंकि वे जोख़िम से प्रभावित हैं। इसके अलावा, इस प्रक्रिया के पुन: गति पकड़ने में समय लग सकता है।
  • सरकार का राजकोषीय घाटा पहले से ही अनुमन्य सीमा (Permissible Limit) से अधिक है। इसके और संकट में जाने की आशंका है। यदि सरकार को किसी तरह के बेलआउट या राहत पैकेज प्रदान करना हो तो उसे एक बड़ी राशि उधार लेनी होगी।
  • इसका तीसरा कारण बाज़ार में धन और तरलता की कमी है। बाज़ार में पर्याप्त धन नहीं है जिससे सरकार बाज़ार से उधार ले सके। इसके अलावा, सरकार द्वारा बाज़ार से अधिक उधार लिये जाने की स्थिति में ब्याज दर में वृद्धि होती है। इस प्रकार सरकार के पास सरकारी घाटे के प्रत्यक्ष मौद्रीकरण के रूप में एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
  • सी. रंगराजन के अनुसार, सरकार वित्त वर्ष 2021 के लिये उधारी का एक बड़ा हिस्सा पहली तिमाही या पहली छमाही में ही ले सकती है। खर्च बढऩे पर उसे और उधारी जुटानी होगी। कुछ सहायता रिज़र्व बैंक की ओर से होनी चाहिये। ऋण के कुछ हिस्से का मौद्रीकरण अपरिहार्य है।'
  • सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में 4.88 लाख करोड़ रुपये की उधारी जुटाने का निर्णय लिया है, जो पूरे वर्ष के लिये निर्धारित 7.8 लाख करोड़ रुपये की उधारी का 62.56 % है।

प्रत्यक्ष मौद्रीकरण और खुली बाज़ार प्रक्रिया में अंतर

  • प्रत्यक्ष मौद्रीकरण और अप्रत्यक्ष मौद्रीकरण में अंतर है। अप्रत्यक्ष मौद्रीकरण आर.बी.आई. तब करता है जब यह खुली बाज़ार प्रक्रियाओं का संचालन करता है या द्वितीयक बाज़ार में बॉन्ड खरीदता है।

प्रत्यक्ष मौद्रीकरण के कुछ वैश्विक उदाहरण

  • कुछ देशों में कोविड-19 सम्बंधी आर्थिक संकट को कम करने के लिये प्रत्यक्ष मौद्रीकरण करने की कोशिश की जा रही है। अप्रैल के द्वितीय सप्ताह के शुरुआत में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने गवर्नर विरोध करने के बावजूद यूनाइटेड किंगडम सरकार को प्रत्यक्ष मौद्रीकरण सुविधा प्रदान की।
  • इससे पूर्व भारत में वर्ष 1997 तक ऐसी व्यवस्था थी। उस समय, केंद्र के राजकोषीय घाटे का विशेष प्रतिभूतियों को जारी कर स्वत: मौद्रीकरण हो जाता था। इन प्रतिभूतियों को तदर्थ ट्रेजरी बिल कहा जाता था, जिसे रिज़र्व बैंक स्वयं को ही केंद्र सरकार की तरफ से एक निश्चित दर पर जारी करता था।
  • वर्ष 1997 में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम द्वारा उस समय के वर्तमान गवर्नर सी. रंगराजन द्वारा प्रत्यक्ष मौद्रीकरण सुविधा पर रोक लगा दी गई थी।
  • हालाँकि अब सी. रंगराजन का मानना है कि भारत को घाटे का मौद्रीकरण करने का सहारा लेना होगा। सरकार के ऋण के मुद्रीकरण के बिना व्यय में इतनी बड़ी वृद्धि का प्रबंधन नहीं किया जा सकता है।

प्रत्यक्ष मौद्रीकरण सम्बंधी समस्याएँ

  • घाटे का प्रत्यक्ष मौद्रीकरण काफी चर्चा और विवाद का विषय रहा है। पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने कहा है कि भारत को इस संकट की घड़ी में उधार लेना चाहिये और अधिक खर्च करना चाहिये। उन्होंने इसे एक नैतिक और राजनीतिक अनिवार्यता माना है।
  • समग्र प्रबंधन के अभाव में इसको मुद्रास्फीति का कारक माना जाता है। आदर्श रूप में यह उपकरण माँग में गिरावट के समय सरकार द्वारा समग्र माँग में वृद्धि का अवसर प्रदान करता है। अगर सरकारें जल्द ही इससे बाहर नहीं निकलती है, तो यह उपकरण एक अन्य संकट की पृष्ठभूमि तैयार कर देता है।
  • प्रत्यक्ष मौद्रीकरण से प्राप्त धन का सरकारी खर्च द्वारा उपयोग से अर्थव्यवस्था में आय तथा निजी माँग में वृद्धि होती है। इस प्रकार यह मुद्रास्फीति को बढ़ावा देता है। मुद्रास्फीति में थोड़ी बढ़ोत्तरी लाभदायक है क्योंकि यह व्यवसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है। परंतु यदि सरकार समय से इसको नहीं रोकती है तथा बाज़ार में अधिक से अधिक धन के प्रवाह से उच्च मुद्रास्फीति की स्थिति पैदा हो जाती है।

प्रत्यक्ष मौद्रीकरण द्वारा सरकारी ऋण की आदर्श सीमा

  • इस उपकरण द्वारा ऋण की कोई तकनीकी सीमा नियत नहीं की गई है। अधिकतर आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में जी.डी.पी. का 80 से 90 % से अधिक उधार नहीं होना चाहिये। वर्तमान में यह भारत के जी.डी.पी. का लगभग 70 % है।
  • इसके अतिरिक्त उधार ली जाने वाली राशि का पूर्व निर्धारण होने के साथ-साथ संकट की समाप्ति पर इस कार्रवाई को रोकने के लिये भी प्रतिबद्ध होना चाहिये। इस प्रकार के स्पष्ट रूप से पुष्टि किये गए राजकोषीय संयम व अंकुश एक उभरती अर्थव्यवस्था में बाज़ार के विश्वास को बनाएं रखने में सहायता कर सकते हैं।
  • प्रत्यक्ष मुद्रीकरण के विरुद्ध एक तर्क यह भी है कि सरकार को खर्च करने के विकल्पों में अक्षम और भ्रष्ट माना जा सकता है। उदाहरण के लिये कुछ मामलों, जैसे कि किस को बेलआउट पैकेज देना है या किस सीमा तक देना है। ऐसे मामलों में सरकार व्यक्तिगत रुख रख सकती है।
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