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कीटनाशकों का मधुमक्खियों पर प्रभाव 

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

हाल ही में, शोधकर्ताओं ने मधुमक्खियों पर मानवजनित दुष्प्रभावों का अध्ययन किया है। दुनिया भर में परागणकों की प्रजातियों में लगातार कमी आ रही हैं, जो खाद्य सुरक्षा और प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के लिये चिंता का विषय है।

कीटनाशकों का मधुमक्खियों पर दुष्प्रभाव 

  • पिछले 20 वर्षों में प्रकाशित अध्ययनों के एक नए विश्लेषण ने कृषि में उपयोग हो रहे रसायनों से मधुमक्खी के व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों का पता लगाया। इसमें मधुमक्खियों को भोजन के लिये घूमना, उनकी स्मरण क्षमता, कॉलोनी प्रजनन और उनके स्वास्थ्य का अध्ययन किया गया।
  • शोध के अनुसार, कृषि में उपयोग होने वाले कीटनाशकों के संपर्क से मधुमक्खियों की मृत्यु दर में वृद्धि हुई है। साथ ही, कीटनाशकों के खतरों को कम करके आंका गया है। 
  • अध्ययन में पाया गया कि कीटनाशकों के परस्पर क्रिया करने की आशंका होती है, जिसका अर्थ है कि उनका कुल प्रभाव उनके अपने प्रभावों के योग से अधिक होता है। इन विभिन्न प्रकार के तनावों के चलते मधुमक्खियों के मृत्यु की संभावना काफी बढ़ गई है।

परागकणों के विलुप्त होने का कारण

  • मधुमक्खियों की छह प्रजातियों में से एक दुनिया में कहीं न कहीं क्षेत्रीय रूप से विलुप्त हो चुकी है। परागकणों के विलुप्त होने का मुख्य कारण निवास स्थान का नुकसान और कीटनाशकों का उपयोग माना जाता है। यह अध्ययन नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित  हुआ है।
  • नियामक प्रक्रिया अपने वर्तमान स्वरूप में मधुमक्खियों को हानिकारक कृषि रसायनों के खतरों से पड़ने वाले असर से बचाने में सक्षम नहीं हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव

  • अध्ययन में कहा गया है कि रसायनों से पड़ने वाले असर का समाधान सही से नहीं किया गया है, जिसके कारण मधुमक्खियों और उनकी परागण क्रियाओं में निरंतर गिरावट आएगी, फलस्वरूप मानव और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को नुकसान होगा।
  • परागण करने वाले कीड़ों को कृषि से होने वाले खतरों का सामना करना पड़ता है, जिसमें कवकनाशी और कीटनाशकों जैसे रसायनों के साथ-साथ जंगली फूलों से पराग और रस की कमी भी शामिल है। प्रबंधित मधुमक्खियों के औद्योगिक पैमाने पर उपयोग से परजीवियों और बीमारियों के लिये परागणकों का खतरा भी बढ़ जाता है।
  • मधुमक्खियों के अतिरिक्त अन्य परागणकों पर अधिक शोध करने की आवश्यकता है, जो इन तनावों पर अलग तरह से प्रतिक्रिया कर सकते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, मानव उपभोग के लिये फल और बीज पैदा करने वाली दुनिया की लगभग 75 प्रतिशत फसलें परागणकों पर निर्भर करती हैं। इनमें कोको, कॉफी, बादाम और चेरी शामिल हैं। 
  • वर्ष 2019 में वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि दुनिया भर में सभी कीट प्रजातियों में से लगभग आधी प्रजातियाँ घट रही हैं और सदी के अंत तक एक-तिहाई प्रजातियाँ पूरी तरह से विलुप्त हो सकती हैं। 
  • मधुमक्खियाँ और अन्य परागणकर्ता फसलों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। दुनिया भर में कीटों की आबादी में हो रही भारी गिरावट से खाद्य सुरक्षा और प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
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