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जैवकेंद्रित न्यायशास्त्र के साथ प्रकृति का सशक्तीकरण

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे )
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र 3&4 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन & पर्यावरणीय नैतिकता)

संदर्भ

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’, एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति, जो भारत में मुश्किल से लगभग 200 की संख्या में जीवित है, के संदर्भ में भारत के उच्चतम न्यायालय ने एक सुरक्षात्मक निर्णय दिया है।

उच्चतम न्यायालय का निर्णय

  • एम.के. रंजीतसिंह और अन्य बनाम भारत संघ वादमें उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राजस्थान और गुजरात में जहाँ विद्युत परियोजनाओं मेंओवरहेड लाइनेंमौजूद हैं, वहाँ की सरकारें ओवरहेड लाइनों कोभूमिगत विद्युत लाइनोंमें परिवर्तित करने तकबर्ड डायवर्टरस्थापित करने के लिये तत्काल कदम उठाएँ।
  • ओवरहेड विद्युत लाइनेंइन पक्षियों के जीवन के लिये खतरा बन गई हैं, क्योंकि ये पक्षी अक्सर इन विद्युत लाइनों से टकराकर मारे जाते हैं।
  • पक्षियों की रक्षा में, न्यायालय ने पर्यावरण संरक्षण केजैवकेंद्रित मूल्योंपर ज़ोर देते हुए उनके अधिकरों की पुष्टि की है।

न्यायिक निर्णय के कारण

  • विद्युत मंत्रालय ने मार्च 2021 में एक शपथपत्र में कहा था कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ (GIB) मेंफ्रंटल विज़नका अभाव होता है। इससे वे अपने आगे की विद्युत लाइनों को दूर से पता नहीं लगा पाते हैं।
  • चूँकि वे भारी पक्षी हैं, इसलिये वे निकट दूरी से भी विद्युत लाइनों को देखकर स्वयं को टकराने से बचाने में असमर्थ होते हैं और विद्युत लाइनों की चपेट में आ जाते हैं।

जैवकेंद्रीयता (Biocentrism) का सिद्धांत

  • जैवकेंद्रीयता का दर्शन यह मानता है कि प्राकृतिक पर्यावरण के अधिकारों का वह समूह है, जो मनुष्यों द्वारा शोषण या उपयोगी होने की अपनी क्षमता से स्वतंत्र होता है।
  • जैवकेंद्रीयता अक्सर अपने विरोधाभासी दर्शन, अर्थात् मानवकेंद्रीयतावाद (Anthropocentrism) के साथ संघर्ष में आता है।
  • मानवकेंद्रीयतावाद का तर्क है कि पृथ्वी पर सभी प्रजातियों में से मनुष्य सबसे महत्त्वपूर्ण है तथा पृथ्वी पर अन्य सभी संसाधनों को मानवहित के लिये उचित रूप से दोहन किया जा सकता है।
  • इस तरह के विचार की अभिव्यक्ति कई सदियों पहले अरस्तू के साथ ही इमैनुएल कांट आदि के नैतिक दर्शन में मिलती है।

स्नेल डार्टर मामला

  • कानूनी दुनिया में मानवकेंद्रियता का एक उल्लेखनीय उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका मेंस्नेल डार्टरमामले से प्राप्त होता है।
  • वर्ष 1973 में, टेनेसी विश्वविद्यालय के जीवविज्ञानी डेविड एटनियर ने लिटिल टेनेसी नदी मेंस्नेल डार्टरनामक मछली की एक प्रजाति की खोज की थी।
  • एटनियर ने तर्क दिया कि स्नेल डार्टर एक लुप्तप्राय प्रजाति है तथाटेलिको जलाशय परियोजनासे संबंधित विकास कार्यों को जारी रखने से इसके अस्तित्व को गंभीर खतरा होगा।
  • इस रहस्योद्घाटन के पश्चात् टेलिको जलाशय परियोजना की निरंतरता को चुनौती देते हुए अमेरिकी उच्चतम न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया गया।
  • टेनेसी वैली अथॉरिटी बनाम हिलमें उच्चतम न्यायालय ने माना कि चूँकिस्नेल डार्टरराष्ट्रीय पर्यावरण नीति अधिनियम के तहत विशेष रूप से संरक्षित प्रजाति है, अतः कार्यपालिका जलाशय परियोजना को इस प्रजाति के संरक्षण की बजाय आगे नहीं बढ़ा सकता है।
  • हालाँकि, उच्चतम न्यायालय द्वारा अपना निर्णय दिये जाने के पश्चात् अमेरिकी कांग्रेस ने पूर्वव्यापी रूप से घोंघा डार्टर को वैधानिक संरक्षण से बाहर करते हुए एक कानून बनाया।
  • अन्तोगत्वा उक्त परियोजना आगे बढ़ी और मछली को नुकसान हुआ।

प्रजातियों की विलुप्ति में मानव की भूमिका 

  • मनुष्य, वैश्विक जगत को अनगिनत अन्य प्रजातियों के साथ साझा करता है, जिनमें से कई मनुष्य कीअविवेकपूर्ण असंवेदनशीलताके कारण विलुप्त होने की कगार पर हैं।
  • लगभग 50 वर्ष पूर्व अफ्रीका में 4,50,000 शेर थे, जिनमें से आज मुश्किल से 20,000 ही शेष हैं।
  • बोर्नियो और सुमात्रा के वनों में अंधाधुँधमोनोकल्चरखेती संतरे के विलुप्त होने का कारण बन रही है।
  • सींगों के तथाकथित औषधीय महत्त्व के लिये गैंडों का शिकार किया जाता है, और वे धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं।
  • लगभग 2,000 वर्ष पूर्व जब से मानव ने मेडागास्कर को आबाद किया, तब से लेमूर की लगभग 15 से 20 प्रजातियाँ, जो कि प्राइमेट हैं, विलुप्त हो गई हैं।
  • इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ (IUCN) द्वारा तैयार किये गए संकलन में लगभग 37,400 प्रजातियों की सूची है, जो गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं; और यह सूची लगातार बढ़ रही है।

कानूनी संरक्षण

  • पारिस्थितिक संरक्षण पर संवैधानिक कानून के कुछ पहलू महत्त्वपूर्ण हैं। यह भारत के संविधान के अनुरूप इसके के क्षेत्र पर लागू होता है।
  • इस तरह के कानून स्पष्ट रूप से मनुष्यों को उस क्षेत्र के भीतर संदर्भित, दायित्वों को लागू तथा मानवीय मामलों को विनियमित करते हैं।
  • संविधान में स्पष्ट रूप से बाध्यकारी कानूनी दायित्वों द्वारा साथी प्रजातियों और पर्यावरण के संरक्षण का उत्तरदायित्व दिया गया है।
  • यह न्यायपालिका ने सतत् विकास के स्थाई सिद्धांतों को प्रतिपादित किया है। अन्य बातों के साथ, यह संविधान के अनुच्छेद 21 के मूल में निहित है।

प्रकृति के अधिकार का कानून

  • कानून के दायरे धीरे-धीरे विकसित हो रहे हैं, जोप्रकृति के अधिकार के कानूनों’ (Right of Nature Laws) की श्रेणी में आते हैं। ये कानून के मानवकेंद्रित आधार को एक जैवकेंद्रित आधार पर रूपांतरित कर रहे हैं।
  • सितंबर 2008 में, इक्वाडोर अपने संविधान मेंप्रकृति के अधिकारोंको मान्यता देने वाला विश्व का पहला देश बना।
  • प्रकृति के कानूनों के अधिकार को स्थापित करके बोलीविया भी इस आंदोलन में शामिल हो गया है।
  • नवंबर 2010 में, पिट्सबर्ग, पेन्सिलवेनिया शहर प्रकृति के अधिकारों को मान्यता देने वाली संयुक्त राज्य अमेरिका की पहली प्रमुख नगरपालिका बन गई है।
  • ये कानून पहले कदम के रूप में, एक समुदाय के लोगों को एक पर्वत, नदी धारा या वन पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय समुदायों के अधिकार की वकालत करने का अधिकार देते हैं।
  • ये कानून उन देशों के संविधान की तरह, जिनका वे हिस्सा हैं, अभी भी प्रगति पर हैं।

निष्कर्ष

  • ऐसे समय में जब उच्चतम न्यायालय का निर्णय सह-अस्तित्व के जैवकेंद्रित सिद्धांतों को कायम रखता है, उसी समयरंजीतसिंह वादप्रकृति संरक्षण के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा।
  • उक्त निर्णय से उम्मीद है कि संबंधित सरकारें न्यायालय के निर्णय को लागू करती हैं तोग्रेट इंडियन बस्टर्डका भाग्यस्नेल डार्टरके जैसा नहीं होगा।
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