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जी.एम. फसलें: उपयोग पर बढ़ता विवाद

(प्रारम्भिक परीक्षा: पर्यावरण पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन सम्बंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: जैव-प्रौद्योगिकी)

चर्चा में क्यों?

  • चालू खरीफ मौसम में किसानों द्वारा आनुवंशिक रूप से सम्वर्धित बीजों (Genetically Modified Seeds/GM Seeds) जैसे, मक्का, सोयाबीन, सरसों, बैंगन और एच.टी. कपास (Herbicide Tolerant- HT Cotton) की फसलों पर रोक के बावजूद बड़े पैमाने पर बुवाई की जाएगी।
  • इस सम्बंध में किसान संघ शेतकारी संगठन द्वारा जी.एम. फसलों के उत्पादन को लेकर पहले से जारी आंदोलन में कुछ और नई माँगें की गई हैं।

आंदोलन के बारे में

  • संगठन का पक्ष है कि जो किसान इस वर्ष बड़े स्तर पर अस्वीकृत जी.एम. फसलों जैसे मक्का, एच.टी. कपास, सोयाबीन और बैंगन की बुवाई करेंगे उन्हें फसल की जी.एम. प्रकृति के बारे में घोषणा करते हुए खेतों में बोर्ड लगाकर चिन्हित करना होगा।
  • संगठन की इस पहल से खेतों में नवीन प्रौद्योगिकी के उपयोग की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित हो सकेगा।

जी.एम.बीज/फसल

  • जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा किसी बीज, जीव या पौधे के जीन को दूसरे बीज या पौधे में आरोपित कर एक नई प्रजाति विकसित की जाती है।
  • इस प्रौद्योगिकी की सहायता से जीन स्तर तक परिवर्तन किया जाता है। इस प्रक्रिया में किसी बीज में नए जीन अर्थात डी.एन.ए. को डालकर उसमें आवश्यकतानुसार गुणों का समावेश किया जाता है, जो उसके प्राकृतिक गुणों के अतिरिक्त होते हैं।
  • बेसिलस थूरिन्जिनेसिस कपास (Bacillus Thuringiensis cotton/BT Cotton) एकमात्र ऐसी जी.एम. फसल है, जिसे भारत में खेती के लिये अनुमति प्रदान की गई है। बी.टी. कपास का निर्माण मृदा में उपस्थित जीवाणु बेसिलस थूरिन्जिनेसिस तथा दो विदेशी जीन को मिलाकर किया गया है।
  • इस जीन को Cry 1AC नाम दिया गया है। इसमें कीटनाशकों के प्रयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती है क्योंकि यह कीटों के प्रति प्रतिरोधकता पैदा कर देता है। जिससे पिंक बॉलवार्म (Pink Bollworm) नामक कीट इसे नुकसान नहीं पहुँचा पाते
  • बी.टी. बैंगन में फ़्रूट और शूट बोरर नामक जीन कीट के हमलों से पौधों का बचाव करता है। साथ ही, DMH-11 सरसों में आनुवंशिक सम्वर्धन पर-परागण (Cross-Pollination) की अनुमति देता है, जबकि सामान्य सरसों में स्व-परागण (Self-Pollination) होता है।

भारत में जी.एम. फसलों का कानूनी पहलू

  • भारत में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee- G.E.A.C.) जी.एम. फसलों के वाणिज्यिक उपयोग की अनुमति प्रदान करने वाली शीर्ष नियामक संस्था है।
  • बिना अनुमति के जी.एम. बीज या फसलों का प्रयोग करने पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986 के अंतर्गत 5 वर्ष तक के कारावास और एक लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।
  • वर्ष 2002 में बी.टी. कपास को कानूनी रूप से मान्यता प्रदान की गई है। भारत में आनुवंशिक रूप से सम्वर्धित खाद्य फसलों की खेती करने की अनुमति नहीं है।
  • भारत में बी.टी. बैंगन, बी.टी. चावल, बी.टी. भिंडी, जी.एम. टमाटर तथा अन्य जी.एम. फसलों को स्वीकृति प्रदान करने हेतु इनका परीक्षण किया जा रहा है।

जी.एम. फसलों के लाभ

  • वर्तमान में बाज़ार में उपलब्ध आनुवंशिक रूप से सम्वर्धित फसलों का मुख्य उद्देश्य कीट या विषाणु जनित रोगों से फसलों की सुरक्षा करना है, जो उनके जीन परिवर्तन द्वारा ही सम्भव है।
  • वैश्विक स्तर पर जनसँख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने के कारण भविष्य में खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ती जनसंख्या के लिये पर्याप्त नहीं होगा। इसलिये जीन में परिवर्तन करके खाद्य उत्पादन में कई गुना वृद्धि की जा सकती है। ऐसा करना समय की माँग है।
  • आनुवंशिक रूप से सम्वर्धित फसल उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों के लिये लाभदायक है। इससे उत्पादक की लागत और श्रम में कमी होने के साथ ही उत्पादकता में कई गुना वृद्धि होती है। वहीं उपभोक्ता को कम कीमत पर अतिरिक्त पोषक तत्व वाले उत्पाद प्राप्त होते हैं।
  • बी.टी. कपास के प्रयोग से किसानों की कीटनाशक और निराई (Weeding) सम्बंधी उच्च लागत कम हो जाती है
  • भारत में कपास की खेती में बी.टी. कपास का महत्त्वपूर्ण योगदान होने के कारण वैश्विक स्तर पर कपास के उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर पहुँच गया है।
  • हरियाणा राज्य में कीटनाशक पर आने वाली लागत में अत्यधिक कमी के कारण बी.टी. बैंगन का उत्पादन काफी अधिक क्षेत्र पर किया जाता है।

जी.एम. फसलों से सम्भावित हानियाँ

  • जी.एम. फसलों के प्रयोग से प्राकृतिक परम्परागत खेती के समाप्त होने का खतरा बना हुआ है।
  • स्वास्थ्य की दृष्टि से भी जी.एम. फसलों के उपयोग पर अभी संदेह है, इसलिये बी.टी. बैंगन के उत्पादन पर रोक लगाई गई है।
  • किसानों द्वारा फसल उत्पादन हेतु जी.एम. बीजों का उपयोग केवल एक बार ही किया जाता है। साथ ही, जी.एम. बीजों के लिये भारतीय किसान अधिकतर विदेशी कम्पनियों पर निर्भर हैं। इससे भविष्य में इन कम्पनियों द्वारा किसानों का शोषण किये जाने की सम्भावना हैं।
  • उदाहरण के लिये, बी.टी.कपास और खरपतवार नाशक दवाइयों से केवल मोनसेंटो जैसी विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को मुनाफा हो रहा है, जोकि भारत की खाद्य सुरक्षा व सभ्यता के लिये भी खतरा बन सकती हैं।
  • जी.एम. फसलों को पर्यावरण और जैव विविधता के लिये हानिकारक माना जाता है।

आगे की राह

  • इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि किसानों ने इस प्रौद्योगिकी को स्वीकार किया है तथा इसे लेकर उनका अनुभव भी अच्छा रहा है। खाद्य की उपलब्धता और खाद्य सुरक्षा में वृद्धि के लिये जी.एम. फसलें अत्यंत महत्त्वपूर्ण साबित हो रही हैं।
  • फिर भी पूर्णतः सचेत रहने की आवश्यकता है कि जी.एम. के जीन प्राकृतिक परिवेश में मिलकर खाद्य श्रृंखला का हिस्सा न बन जाएँ। जी.एम. फसलों का मनुष्य एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का दीर्घकालिक परीक्षण किये बिना इनके उत्पादन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
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