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अंतर्राष्ट्रीय संबंध: बदलते प्रतिमान

(प्रारम्भिक व मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र-2)

चर्चा में क्यों?-

वर्तमान समय में कई वैश्विक संस्थाएँ अविश्वास का सामना कर रही हैं। ऐसी स्थिति में भारत को उचित व व्यवहारिक रणनीतिक कदम की आवश्यकता है।

पृष्ठभूमि-

व्यापार-युद्ध, कोविड-19 व अन्य वैश्विक मुद्दों के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर विश्व व्यापार संगठन तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे संस्थान नई चुनौतियों व चौतरफा दबाव के दौर से गुजर रही हैं। ऐसी स्थिति में भारत को बहुपक्षीय रणनीति में शीघ्र व्यावहारिक पुनर्मूल्यांकन की जरूरत है। रणनीतिक यथार्थ वादियों का मानना है कि भारत का संयुक्त राष्ट्र से जुड़ाव किसी विशेष विचारधारा के कारण नहीं बल्कि भू-राजनीति जरूरत के अनुसार है।

चीन का बढ़ता प्रभाव-

  • चीन ने संयुक्त राष्ट्र संघ पर कश्मीर मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय व क्षेत्रीय शांति के लिये खतरा बताते हुए चर्चा के लिये बार-बार दबाव डालने की कोशिश की है।
  • साथ ही चीन ने संयुक्त राष्ट्र संघ में कोविड-19 संकट पर चर्चा को रोकने की कोशिश की है। मार्च माह में ही उसने कोविड-19 को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा से सम्बंधित विषय न मानते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चर्चा को रोक दिया था। चीन वीटो शक्ति का प्रयोग करके स्वयं के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्यवाही को रोक देता है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने कश्मीर मुद्दे पर काफी तेजी से दखल दिया था। साथ ही उन्होंने भारत के नागरिकता संशोधन अधिनियम व राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एन.आर.सी.) पर भी अपनी चिंता जाहिर की थी।
    इसके अलावा गुतारेस फरवरी माह में पाकिस्तान की यात्रा पर भी गए थे। उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर भारत पाकिस्तान के मध्य सार्वजनिक तौर पर मध्यस्थता की बात कही थी, परंतु कोरोना के बारे में चीन की भूमिका को लेकर वे शांत है।
  • इस मामले में विश्व स्वास्थ संगठन की स्थित और चिंताजनक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक तेद्रोस अद्हनॉम घेब्रेयेसुस (Tedros Adhanom Ghebreyesus) ने करोना के राजनीतिकरण का आरोप लगाते हुए चेतावनी भी दी है।
  • अमेरिका व यूरोप में यह राय है कि तेद्रोस ने कोविड-19 से रक्षोपाय हेतु बीते महीनों में आवश्यक कार्रवाई नहीं की है। मानव से मानव संक्रमण तथा अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों सम्बंधी सूचनाएँ, सलाह, व चेतावनी जारी करने में भी तेजी नहीं दिखाई है। विश्व की दो अग्रणी शक्तियों अमेरिका और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण बहुपक्षीय प्रणालियों में बिखराव देखा जा रहा है।

नए बहुपक्षीय समीकरण और भारत-

  • भारत के नए बहुपक्षीय समीकरण बदलते वैश्विक परिदृश्य की व्यावहारिक प्रतिक्रिया है, जिसमें कुछ पुराने सहयोगियों से दूरी और नए भागीदारों के साथ सम्बंधों में मजबूती देखने को मिली है।
  • शीत युद्ध के बाद भारत दो पहलों का हिस्सा बना। जिसमें पहला ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर ब्रिक्स का गठन तथा दूसरे में क्वॉड को रखा जा सकता है। क्वॉड, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ भारत के मध्य एक अनौपचारिक रणनीतिक सम्वाद है।
  • भारत ने कोरोना संकट के बीच अपने बहुपक्षीय प्राथमिकताओं को पुनः तय किया है। भारत के लिये ब्रिक्स मंच के महत्व में कमी आ रही है जबकि क्वॉड का महत्व बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार ब्रिक्स में भारत के दो सहयोगियों दक्षिण अफ्रीका व रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कोविड-19 चर्चा को रोकने में चीन का सहयोग किया है। चूँकि कोविड-19 ने भारत की आर्थिक व सामाजिक हितों को गम्भीर रूप से प्रभावित किया है अतः भारत इस मुद्दे में दिलचस्पी रखता है।
  • इन सबके बीच भारत इस संकट से निपटने और प्रबंधन हेतु क्वॉड प्लस देशों जैसे दक्षिण कोरिया, वियतनाम और न्यूजीलैंड से नियमित सम्पर्क में है।
  • अतीत में गुटनिरपेक्ष आंदोलन व G-77 के रूप में भारत का बहुपक्षीय दृष्टिकोण प्रभावशाली था, परंतु अभी ब्रिक्स और क्वॉड स्क्वायर के रूप में भारत बहुत प्रभुत्वपूर्ण नहीं हैं। बदलते परिदृश्य व हालातों में भारत अपने हितों को सुरक्षित रखने हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नए भागीदारों को ढूंढ रहा है।

ब्रिक्स के उदय के कारण-

  • इसकी शुरुआत 1990 के दशक के मध्य में चीन और रूस के साथ त्रिपक्षीय गठबंधन के रूप में हुई थी। आर.आई.सी. (RIC) में भारत की रूचि बढ़ने का एक कारण 'यूनीपोलर मोमेंट' भी था। साथ ही अमेरिकी आधिपत्य का विरोध करने के लिये भी रूस ने इस त्रिपक्षीय सहयोग पर जोर दिया।
  • 1990 के दशक के शुरुआत में बिल क्लिंटन प्रशासन द्वारा भारत के परमाणु व मिसाइल कार्यक्रम में राहत देने की पेशकश तथा कश्मीर को दुनिया का सबसे खतरनाक परमाणु फ्लैश प्वाइंट बताने की मंशा से भारत सावधान था।
  • क्लिंटन प्रशासन ने एक लिखित प्रस्ताव द्वारा यह भी कहा था कि भारत, पाक व हुर्रियत के साथ मिलकर कश्मीर मसले को हल करें। यह प्रस्ताव के साथ एक प्रकार का दबाव था। परमाणु कार्यक्रम और कश्मीर मुद्दे पर अमेरिका के दबाव को संतुलित करने हेतु भारत ने चीन और रूस के साथ साझेदारी की।

वर्तमान में ब्रिक्स की स्थिति और भारत का यूरोप से जुड़ाव-

  • कश्मीर व परमाणु मुद्दे के कारण भारत ने ब्रिक्स में भागीदारी की थी। अब चीन कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र पर दबाव डाल रहा है, जबकि अमेरिका व फ्रांस भारत के साथ हैं।
  • इसके अलावा परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भी भारत की पूर्ण सदस्यता पर चीन ने अड़ंगा लगाया। इस मुद्दे पर भी अमेरिका और फ्रांस ने भारत की सहायता की।
  • चीन सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव को रोकने का कार्य करता है, जबकि पश्चिमी व मुस्लिम देश हिंसक चरमपंथियों के विरुद्ध संघर्ष में दिल्ली की सहायता कर रहे हैं।
  • बहुपक्षीय सम्बंधों में भारत ने यूरोप के साथ नई सम्भावनाएँ देखी हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात औपनिवेशिक यूरोप के विरोध स्वरूप भारत की बहुपक्षीय सम्बंधों की बुनियाद एफ्रो-एशियाई एकजुटता पर टिकी थी, परंतु अब भारत वैश्विक व्यवस्था के क्रम में यूरोप को एक मूल्यवान साझेदार के रूप में देखता है। जर्मनी द्वारा शुरू और यूरोपीय देशों द्वारा समर्थित 'एलाइंस फॉर मल्टीलेटरिज्म' में भारत शामिल हो गया है।

निष्कर्ष-

भारत को अपने हितों की सुरक्षा के लिये व्यवहारिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, क्योंकि इससे पूर्व भी भारत ने आवश्यकतानुसार अपने दृष्टिकोण में बदलाव किया है। यह इस सिद्धांत की याद दिलाता है कि अंतर्राष्ट्रीय सम्बंधों में न कोई स्थाई दोस्त होता है और न ही स्थाई दुश्मन। हित सर्वोपरि होता है। अत: भारत को त्वरित व अपरिहार्य कूटनीतिक पुनर्मूल्यांकन की ओर अग्रसर होना चाहिये।

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