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न्यायाधीशों का स्वयं को मामलों से अलग करना

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : विषय- भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना)

  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश यू.यू. ललित ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ चल रही सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। ध्यातव्य है कि न्यायपालिका पर आरोप लगाने के एक मामले में जगनमोहन के खिलाफ कार्रवाई की माँग वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई चल रही है।
  • जगनमोहन पर आरोप है कि उन्होंने न्यायपालिका के खिलाफ आरोप लगाते हुए न सिर्फ प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखा, बल्कि प्रेस कांफ्रेंस कर झूठे बयान भी दिये। न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि वह इस पीठ में नहीं रहेंगे क्योंकि एक वकील के रूप में उन्होंने इसमें से एक पक्ष का प्रतिनिधित्व किया था।

न्यायाधीशों का खुद को मामलों से अलग करना

  • हितों के टकराव या किसी मामले में पक्षकारों के साथ पूर्व सम्बन्ध होने की दशा में अक्सर न्यायाधीश या नीति निर्धारक खुद को मामले से अलग (Recusal of Judges) कर लेते हैं।
  • उदाहरण के तौर पर यदि न्यायालय में किसी ऐसी कम्पनी से जुड़ा मामला आता है, जिसमें खुद न्यायाधीश शेयर धारक हैं, तो यहाँ न्यायाधीश की मंशा पर संदेह हो सकता है अतः अक्सर ऐसी परिस्थितियों में वे खुद को मामले से अलग कर लेते हैं।
  • यद्यपि इस वजह से मामलों की सुनवाई में अनिवार्य रूप से देरी आती है और मामला मुख्य न्यायाधीश के पास वापस पहुँच जाता है और पुनः एक नई खंडपीठ का गठन किया जाता है। 

क्या हैं नियम?

  • न्यायालयों में सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई से न्यायाधीशों के अलग होने के विषय पर कोई लिखित नियम नहीं हैं। यह न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ दिया जाता है।
  • यदि वे मामले से खुद को अलग करते हैं तो इसके लिये कोई न्यायिक आदेश नहीं निकालना पड़ता है। कुछ न्यायाधीश, मामले में शामिल वकीलों को मौखिक रूप से बता देते हैं जबकि कुछ न्यायाधीश नहीं बताते हैं। 

निष्कर्ष

  • खुद को मामलों से अलग कर लेना अक्सर कर्तव्य से विमुखता भी माना जाता है। वर्ष 2015 में एन.जे.ए.सी. के फैसले में अपनी राय देते हुए न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने पारदर्शिता स्थापित करने के लिये न्यायधीशों द्वारा खुद को मामलों से अलग होने के कारणों को स्पष्ट करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला था।
  • पारदर्शी और जवाबदेह होना न्यायाधीशों का संवैधानिक कर्तव्य है, जो कि उनकी शपथ में भी प्रतिबिम्बित होता है, अतः किसी भी न्यायाधीश को उन कारणों का स्पष्टीकरण आवश्यक है, जिनकी वजह से वे किसी मामले से अलग हुए हों।
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