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मातृभाषा में शिक्षा और भाषाई धरोहर

(प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा,  प्रश्नपत्र 2: शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।)

संदर्भ

 हाल ही में, आठ राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेजों ने आगामी सत्र से अपने यहाँ चुने हुए पाठ्यक्रमों को स्थानीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है।

अन्य निर्णय

  • इसके साथ ही ‘अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद्’ (AICTE) ने नई शिक्षा नीति के अनुरूप ही बी.टेक. पाठ्यक्रमों को 11 स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराए जाने को भी स्वीकृति प्रदान की गई है।
  • 11 स्थानीय भाषाओं में हिंदी, मराठी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, गुजराती, मलयालम, बांग्ला, असमिया, पंजाबी और उड़िया भाषा शामिल हैं।

नई शिक्षा नीति में मातृभाषाओं को महत्त्व

  • नई शिक्षा नीति, 2020 में प्राथमिक विद्यालय से ही शिक्षा को मातृभाषा में ही दिये जाने पर जोर दिया गया है, जिससे बच्चों की शिक्षा और समझ में सुधार हो सके।
  • विभिन्न अध्ययनों से सिद्ध हो चुका है कि वे बच्चे, जिनकी  प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होती है, वे उन बच्चों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं, जिनकी प्रारंभिक शिक्षा किसी अन्य भाषा में हुई हो।
  • यूनेस्को और अन्य संस्थाएँ इस पर बल देती रही हैं कि मातृभाषा में सीखना, आत्मसम्मान और अपनी पहचान बनाने तथा बच्चे के संपूर्ण विकास के लिये भी आवश्यक है।
  • हालाँकि, भारतीय समाज में अभिभावक और शिक्षक अंग्रेजी शिक्षा पर बल देते हैं। परिणामस्वरूप बच्चे की अपनी ही मातृभाषा विद्यालय में दूसरी या तीसरी भाषा बन जाती है।

मातृभाषा में विज्ञान की शिक्षा

  • प्रख्यात भौतिकशास्त्री और नोबल पुरस्कार से सम्मानित सर सीवी रमन ने कहा था कि “हमें विज्ञान को मातृभाषा में ही पढ़ाना चाहिये, अन्यथा वह एक गर्व या घमंड का विषय बन जाएगा, वह ऐसा विषय नहीं बन सकेगा जिसमें हर कोई भागीदारी कर सके।”
  • वर्तमान शिक्षा तंत्र में अभूतपूर्व प्रसार हुआ है, लेकिन विगत कई वर्षों में विद्यार्थियों की प्रगति के रास्ते में कई शैक्षणिक बाधाएँ उत्पन्न हुई हैं।
  • अंग्रेजी माध्यम के कुछ विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के एक छोटे से इकोसिस्टम का चलन है, जबकि तकनीकी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में स्थानीय भाषाएँ पिछड़ रही हैं।

वैश्विक प्रथाएँ

  • जी-20 में अधिकांश देशों में अत्याधुनिक विश्वविद्यालय हैं, जहाँ उनके नागरिकों की मुख्य भाषा में शिक्षा प्रदान की जा रही है।
  • दक्षिण कोरिया में 70 प्रतिशत विश्वविद्यालयों में शिक्षण कोरियन भाषा में ही होता है। अग्रेजी के प्रति अभिभावकों में बढ़ते रुझान को देखते हुए वर्ष 2018 में सरकार ने विद्यालयों में कक्षा तीन से पहले अंग्रेजी की पढ़ाई पर ही प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि इससे विद्यार्थियों की कोरियाई भाषा में प्रवीणता कम हो रही थी।
  • इसी प्रकार, जापान के विश्वविद्यालयों में अधिकांश पाठ्यक्रम जापानी भाषा में ही पढ़ाए जाते हैं।
  • यही स्थिति चीन में भी है। फ्रांस और जर्मनी की शिक्षा पद्धति यह प्रदर्शित करती है कि राष्ट्र अपनी भाषा को कैसे संरक्षित रख सकते हैं।
  • विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम के रूप में फ्रांस में 'केवल-फ्रांसीसी' नीति को अपनाया गया है।
  • जर्मनी में शिक्षा की भाषा मुख्य रूप से जर्मन है, यहाँ तक कि तृतीयक शिक्षा में अर्थात् मास्टर्स कार्यक्रमों में से 80 प्रतिशत से अधिक जर्मन भाषा में पढ़ाया जाता है।
  • कनाडा भाषाई विविधता वाले देश की तस्वीर को प्रदर्शित करते हुए शिक्षा के लिये एक समावेशी दृष्टिकोण दिखाता है।
  • कनाडा के अधिकांश प्रांतों में अंग्रेजी शिक्षा का प्रमुख माध्यम है, बहुसंख्यक फ्रांसीसी-भाषी क्यूबेक प्रांत में फ्रेंच प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम है।
  • इस वैश्विक परिदृश्य में यह विडंबना है कि भारत में अधिकांश व्यावसायिक पाठ्यक्रम अंग्रेजी में पढ़ाए जाते हैं।
  • विज्ञान, इंजीनियरिंग, चिकित्सा विज्ञान, विधि में तो स्थिति और भी खराब है, जहाँ स्थानीय भाषाओं में पाठ्यक्रम न के बराबर हैं।

सुधार की आवश्यकता

  • एन.ई.पी. शिक्षा की पहुँच और गुणवत्ता में सुधार करते हुए स्थानीय भाषाओं के संरक्षण साधनों को प्रदर्शित करते हुए रोड मैप की रूपरेखा तैयार करता है।
  • प्राथमिक शिक्षा (कम से कम कक्षा पाँच तक) छात्र की मातृभाषा में प्रदान करनी चाहिये और इसे धीरे-धीरे इसे बढ़ाना चाहिये।
  • व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिये 14 इंजीनियरिंग कॉलेजों की पहल सराहनीय है, लेकिन इसे पूरे देश में इस तरह के और प्रयासों की आवश्यकता है।
  • निजी विश्वविद्यालयों को इस तरह का उदाहारण प्रस्तुत करते हुए कुछ द्विभाषी पाठ्यक्रमों की पेशकश करनी चाहिये।
  • अधिक छात्रों के लिये स्थानीय भाषाओं में उच्च शिक्षा ग्रहण करने में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तकों की कमी है, विशेषतः तकनीकी पाठ्यक्रमों में और इसे तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है।

विभिन्न प्रयास

  • डिजिटल युग में दूरस्थ क्षेत्रों में छात्रों तक भारतीय भाषा पाठ्यक्रमों की पहुँच बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया जा सकता है।
  • डिजिटल लर्निंग इकोसिस्टम, जो अभी भी हमारे देश में एक आरंभिक डोमेन में है, जिसमें अधिकांश बच्चे शामिल नहीं हैं, इसे बेहतर करने की आवश्यकता है।
  • इस संबंध में ए.आई.सी.टी.ई. और आई.आई.टी. मद्रास ने ‘स्वयं’ (SWAYAM) के पाठ्यक्रमों का तमिल, हिंदी, तेलुगु, कन्नड़, बंगाली, मराठी, मलयालम और गुजराती जैसी आठ क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिये सहयोग किया है।
  • यह इंजीनियरिंग छात्रों को बाद के वर्षों में अंग्रेजी-प्रधान पाठ्यक्रम में अधिक आसानी से स्थानांतरित करने में मदद करेगा।
  • उच्च शिक्षा का वास्तव में लोकतंत्रीकरण करने के लिये  और अधिक तकनीकी नेतृत्व वाली पहल की आवश्यकता है।

भावी राह

  • शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होने का अर्थ यह नहीं कि हम मुख्यधारा से अलग-थलग हो जाएँ।
  • प्रत्येक व्यक्ति को यथासंभव अधिक से अधिक भाषाएँ सीखनी चाहिये, लेकिन आवश्यकता है कि मज़बूत नींव मातृभाषा में ही पड़े।
  • ‘मातृभाषा बनाम अंग्रेजी’ की बजाय मातृभाषा के साथ अंग्रेजी शिक्षा पद्धति पर विचार किया जा सकता है।
  • आज सभी परस्पर निर्भर और आपस में जुड़े हुए विश्व में रह रहे हैं। ऐसे में विभिन्न भाषाओं में प्रवीणता वृहत्तर विश्व के नए द्वार को खोलेगी।

निष्कर्ष

यदि मातृभाषा को नजरंदाज किया जाता है, तो सिर्फ ज्ञान की एक बहुमूल्य निधि को खोने की आशंका होती है, बल्कि अपनी भावी पीढ़ियों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से दूर होने का भय भी रहता है। साथ ही, वे सामाजिक एवं भाषाई धरोहर से वंचित हो सकते हैं। अतः इसके लिये आवश्यक है कि मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिये नवीन प्रयास किये जाएँ।

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