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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण : प्रमुख निष्कर्ष

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सामयिक घटनाएँ)
( मुख्य परीक्षा, समान्य अध्ययन प्रश्नपत्र : 2 – स्वास्थ्य)

संदर्भ

हाल ही में जारी पाँचवें दौर के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) में कोविड ​​से पहले के सूक्ष्म विकास प्रदर्शन के कुछ आयामों की जानकारी दी गई है। प्रथम चरण में केवल 17 राज्यों और 5 केंद्रशासित प्रदेशों के आँकड़े शामिल हैं। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और तमिलनाडु आदि बड़े प्रदेशों के आँकड़े इनमें शामिल नहीं हैं।

प्रमुख बिंदु

  • सर्वेक्षण में जनसंख्या, स्वास्थ्य, परिवार नियोजन और पोषण से जुड़े विभिन्न संकेतकों पर जानकारी एकत्र करने के लिये घरेलू स्तर पर साक्षात्कार लिये गए हैं।
  • वर्ष 205-16 में जारी किये गए चौथे दौर के आँकड़ों की तुलना में इस बार वैक्सीन की आपूर्ति में काफी वृद्धि देखी गयी है।
  • पहले चरण में 17 राज्यों और 5 केंद्रशासित प्रदेशों (असम, बिहार, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, आंध्र प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, मिजोरम, केरल, लक्षद्वीप, दादर एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव) के परिणामों को जारी किया गया है।
  • शेष 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से जुड़े आँकड़ों को दूसरे चरण में जारी किया जाएगा। कोविड-19 महामारी के कारण इन राज्यों में सर्वेक्षण रोक दिया गया था। सर्वेक्षण पुनः शुरू किया गया है और इसके मई 2021 तक पूरा होने की उम्मीद है। 

आँकड़ों का समायोजन

  • एन.एफ.एच.एस. में बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित 42 संकेतक को शामिल किया गया है।
  • ये संकेतक नौ श्रेणियों में विभाजित हैं और इन्हें प्रयासों एवं परिणामों (inputs एंड outcomes) के आधार पर विभाजित किया गया है। जैसे नवजात, शिशु तथा 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर और विभिन्न पोषण संकेतकों (न्यूट्रीशन इंडिकेटर्स) को परिणामों के रूप में विभाजित किया गया है तथा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा प्रसवोत्तर देखभाल के संकेतकों (Post-natal care indicators) और बच्चों के भरण पोषण आदि को प्रयासों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष

  • रिपोर्ट के अनुसार पहले चरण वाले राज्यों में प्रजनन दर में गिरावट आई है एवं गर्भनिरोधकों के प्रयोग में बढ़ोतरी हुई है। 
  • सर्वेक्षण में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 12 से 23 महीने के बच्चों के टीकाकरण कवरेज में सुधार देखा गया है। शिशु तथा 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (IMR) में कमी देखी गई है तथा एन.एफ.एच.एस.-4 (2015-16) की तुलना में इस चरण में 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में नवजात मृत्यु दर (NMR) में भी कमी  देखी गई है।
  • राज्यों की व्यक्तिगत कार्यान्वयन क्षमता ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • सेक्टर-विशिष्ट कारकों जैसे बदलते आहार आदि की भी भूमिका महत्त्वपूर्ण रही।
  • बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित कई परिणाम राज्य-स्तरीय कार्यान्वयन द्वारा निर्धारित किये जाते हैं, इसलिये अकेले राज्य या केंद्र को सफलता या असफलता के लिये ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

    दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता

    • यह समस्या पोषण से सम्बंधित कुछ पहलुओं को ही हल करने के दृष्टिकोण का परिणाम है। पूरक पोषण (अच्छी गुणवत्ता के अंडे, फल, आदि), संवृद्धि व विकास की उचित निगरानी जैसे प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के साथ-साथ समेकित बाल विकास योजना एवं स्कूलों में दिये जाने वाले भोजन के माध्यम से खाद्य व्यवहार में परिवर्तन करने और इन्हें अधिक संसाधन प्रदान किये जाने की आवश्यकता है।
    • सार्वभौमिक मातृत्व लाभ (Universal Maternity Entitlements) और बाल देखभाल जैसी सेवाओं के माध्यम से विशेष स्तनपान, शिशु एवं छोटे बच्चों को उचित आहार प्रदान करने के साथ-साथ महिलाओं के अवैतनिक कार्य को मान्यता देने के मुद्दे पर भी प्रगति किये जाने की आवश्यकता है।
    • खाद्य पदार्थों के उत्पादन में पोषण युक्त कृषि प्रणाली को विकसित करने की आवश्यकता है।
    • कुल मिलाकर मुख्य मुद्दा यह है कि कुपोषण के मूल निर्धारकों को लम्बे समय तक नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है। इन निर्धारकों में घरेलू खाद्य सुरक्षा, बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच और न्यायसंगत लैंगिक समानता शामिल हैं।
    • साथ ही, एक रोज़गार केंद्रित विकास रणनीति भी अनिवार्य है जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, खाद्य और सामाजिक सुरक्षा के लिये बुनियादी सेवाओं का सार्वभौमिक प्रावधान शामिल हो।

    आगे की राह

    • जैसा कि 2015-16 के आर्थिक सर्वेक्षण के अध्याय 5 में चर्चा की गई है, सरकार को बड़ी कल्याण पहल के रूप में नवजात बच्चों (और उनकी माताओं) के गर्भ से लेकर पाँच वर्ष की आयु होने तक देखभाल पर ध्यान देना होगा।
    • बाल कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिये न केवल प्रत्यक्ष कार्यक्रम बल्कि देश में प्रारम्भ किये गए आर्थिक विकास के समग्र मॉडल पर भी गम्भीर आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है। साथ ही, कुपोषण की चिंताजनक स्थिति इसे दूर करने की दिशा में प्रतिबद्धता और प्राथमिकता के साथ-साथ तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता को इंगित करती है।

     

    प्रिलिम्स फैक्ट्स :

    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (IIPS), मुंबई के समन्वय से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के नेतृत्व में किया जाता है।
    • यह सम्पूर्ण भारत में बड़े पैमाने पर आयोजित होने वाला बहुचक्रीय सर्वेक्षण है। पहला राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-1) वर्ष 1992-93 में आयोजित किया गया था।
    • दूसरा, तीसरा और चौथा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण क्रमश: वर्ष 1998-99, 2005-06 और 2015-16 में आयोजित किया गया था। 
    • यह सर्वेक्षण अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान के अलावा ORC Macro, मैरीलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं ईस्ट-वेस्ट सेंटर, होनोलुलु, संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे संस्थानों के सहयोग से तैयार किया जाता है।
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