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प्रवासी कामगारों पर राष्ट्रीय नीति

(प्रारंभिक परीक्षा- सतत विकास, गरीबी, समावेश, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1, 2 व 3: जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, सामाजिक सशक्तीकरण; जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गोंकी रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र;समावेशीविकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

हाल ही में, नीति आयोग ने नागरिक समाज (Civil Society) के सदस्यों और पदाधिकारियों के एक समूह के साथ मिलकर ‘राष्ट्रीय प्रवासी श्रम नीति’ का मसौदा तैयार किया है।

अधिकार आधारित दृष्टिकोण

  • मसौदा नीति में नीति-निर्माण के दो दृष्टिकोणों का वर्णनकिया गया है। पहला दृष्टिकोण नकद हस्तांतरण, विशेष कोटा और आरक्षण पर केंद्रित है, जबकि दूसरा दृष्टिकोण इस समुदाय और एजेंसी की सामर्थ्य को बढ़ाने से संबंधित है। साथ ही यह उन पहलुओं के निराकरण की बात करता है, जो व्यक्ति की स्वाभाविक क्षमता के विकास में बाधक है।
  • यह नीति हैंडआउट दृष्टिकोण (HandoutApproach) के स्थान पर अधिकार-आधारित ढाँचे पर आधारित है। यह एजेंसी और प्रवासी कामगारों की क्षमता पर बाधाओं को हटाना चाहती है। इसका लक्ष्य ‘अस्थाई या स्थाई सामाजिक व आर्थिक सहायता प्रदान करना नहीं होना चाहिये, जोकि अपेक्षाकृत एक सीमित दृष्टिकोणहै।
  • मसौदा में कहा गया है कि प्रवासन को विकास के एक अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिये। साथ ही, सरकार की नीतियाँ आंतरिक प्रवासन को सुविधाजनक बनाने वाली होनी चाहियें।
  • इसकी तुलना तत्कालीन आवासऔर शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय द्वारा जनवरी 2017 में प्रवासन पर जारी किये गए दृष्टिकोण से की गई है। इस रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि कृषि क्षेत्र से विनिर्माण और सेवाओं की ओर झुकाव की प्रवृति देश में प्रवासन की सफलता से जुड़ी है।

मौजूदा कानून से संबंधित मुद्दे

  • वर्ष 2017 की रिपोर्ट में तर्क दिया गया कि प्रवासी कामगारों के लिये विशिष्ट सुरक्षा कानून अनावश्यक था। नियमित और संविदात्मक कार्य को शामिल करने वाले व्यापक ढाँचे में सभी कामगारों के साथ प्रवासी कामगारों को भी एकीकृत किया जाना चाहिये।
  • इस रिपोर्ट में ‘अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम,1979 की सीमाओं पर चर्चा की गई है। यह अधिनियम श्रमिकों को शोषण से बचाने, गैर-भेदभाव पूर्ण वेतन, यात्रा व विस्थापन भत्ते और उपयुक्त कार्य स्थितियों से संबंधित अधिकारों की रक्षा के लिये बनाया गया था।
  • हालाँकि, इसमें केवल ठेकेदारों के माध्यम से प्रवास करने वाले श्रमिकों को शामिल किया गया तथा स्वतंत्र रूप से प्रवास करने वाले श्रमिकों को छोड़ दिया गया है।
  • वर्ष 2017 की रिपोर्ट में श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के लिये कानूनी आधार तैयार के लिये एक व्यापक कानूनका आह्वान किया गया था, जो सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के तहत ‘असंगठित क्षेत्र में राष्ट्रीय उद्यम आयोग’ द्वारा वर्ष 2007 की सिफारिशों के अनुरूप था।
  • नीति आयोग ने इस मसौदे में प्रवासियों की प्रभावी सुरक्षा के लिये वर्ष 1979 के अधिनियम में संशोधन का उल्लेख किया गया है।

सरकार का व्यावहारिक पक्ष

  • प्रवासियों के लिये योजनाओं वकार्यक्रमों को लागू करने की दिशा में नीति आयोग का मसौदा मंत्रियों, राज्यों एवं स्थानीय विभागों के बीच समन्वय के लिये संस्थागत तंत्रस्थापित करने की बात करता है।
  • इसमें श्रम और रोजगार मंत्रालय को नीतियों के कार्यान्वयन के लिये नोडल मंत्रालय मानने के साथ-साथ अन्य मंत्रालयों की मदद के लिये एक विशेष इकाई के गठन की बात की गई है।यह इकाई उच्च प्रवास क्षेत्रों में प्रवास संसाधन केंद्रों,राष्ट्रीय श्रम हेल्पलाइन, श्रमिक परिवारों को सरकारी योजनाओं से जोड़ने एवं अंतर्राज्यीय प्रवास प्रबंधन निकायों का प्रबंधन करेगी।
  • अंतर्राज्यीय प्रवासन प्रबंधन निकायों के संबंध में इसका सुझाव है कि प्रमुख प्रवास गलियारों के साथ-साथ स्रोत और गंतव्य राज्यों के श्रम विभाग को ‘प्रवासी श्रमिक सेल’ के माध्यम से एक साथ मिलकर कार्य करना चाहिये।साथ ही, विभिन्न मंत्रालयों में प्रवासन केंद्र बिंदु बनाए जाने का भी सुझाव है।

प्रवासन रोकने के तरीके

  • यद्यपि मसौदे में प्रवासन के सकारात्मक पक्ष की चर्चा की गई है, फिर भी इसे रोकने के उपाय सुझाए गए है।मसौदे में प्रवासियों के उद्गम (स्रोत) वाले राज्यों में आदिवासियों की स्थानीय आजीविका में वृद्धि के लिये न्यूनतममजदूरी बढ़ाने की बात की गई है।
  • स्रोत राज्यों में सामुदायिक निर्माण संगठनों (CBO) और प्रशासनिक स्टॉफ की अनुपस्थिति ने विकास कार्यक्रमों तक पहुँच को बाधित किया है, जिसने आदिवासियों को पलायन के लिये मज़बूर किया है।
  • सरकारी नीतियों का लक्ष्य ‘प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लियेपंचायतों की भूमिका को बढ़ाना’ और प्रवास की स्थितियों में सुधार के लिये शहरी व ग्रामीण नीतियों को एकीकृत करना होना चाहिये।
  • पंचायतों को प्रवासी श्रमिकों का एक डेटाबेस तैयार करने के साथ-साथ पहचान पत्र व पासबुक जारी करनाचाहिये। इसके अतिरिक्त प्रशिक्षण, प्लेसमेंट और सामाजिक-सुरक्षा लाभ आश्वासन के माध्यम से ‘प्रवास प्रबंधन और शासन’को मज़बूत करना चाहिये।

डाटा का महत्त्व

  • मसौदा ‘माँग और आपूर्ति के बीच अंतर को भरने’ में नियोक्ताओं की मदद और सामाजिक कल्याण योजनाओं का अधिकतम लाभ सुनिश्चितकरने के लिये एक केंद्रीय डाटाबेस की आवश्यकता पर जोर देता है।
  • यह मंत्रालयों व जनगणना कार्यालय को प्रवासियों की परिभाषाओं के अनुरूप होने तथा मौजूदा सर्वेक्षणों में प्रवासी-विशिष्ट चरोंको शामिल करने की बात करता है। वर्ष 2017 की रिपोर्ट में भारत के महापंजीयक को प्रारंभिक सारणीयन के एक वर्ष के भीतर प्रवासन डाटा जारी करने की भी बात कही गई है।
  • साथ ही, इसमें राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय से आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण में प्रवास से संबंधित प्रश्न को शामिल करने और प्रवासन पर एक अलग सर्वेक्षण करने को भी कहा गया है।
  • मसौदे में शोषण को नियंत्रित करने के लिये प्रशासनिक क्षमता की कमी का जिक्र किया गया है।राज्य केश्रम विभागों में प्रवासन के मुद्दों से जुड़ा व बहुत कम है और वे मानव तस्करी को रोकने से संबंधित हैं। स्थानीय प्रशासन निगरानी करने की स्थिति में नहीं है, जो बिचौलियों के पनपने और प्रवासियों के शोषण का आधार बन गया है।

विशिष्ट सिफारिशें

  • इस मसौदे में पंचायती राज, ग्रामीण विकास और आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालयों को उच्च प्रवासन क्षेत्रों में ‘प्रवास संसाधन केंद्र’ बनाने में मदद करने के लिये जनजातीय मामलों के प्रवासन डाटा के उपयोग की बात कही गई है।साथ ही,कौशलविकास और उद्यमिता मंत्रालय को इन केंद्रों में कौशल निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही गई है।
  • शिक्षा मंत्रालय को प्रवासियों के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा में लाने के लिये शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत उपाय करना चाहिये। इन बच्चों की मैपिंग के साथ प्रवासगंतव्यों में स्थानीय भाषा के शिक्षक उपलब्ध कराना भी आवश्यक है।
  • आवासन और शहरी मामले मंत्रालय को शहरों में प्रवासियों के लिये रैन बसेरों, अल्प-ठहराव वाले घरों और मौसम के अनुकूल आवास के मुद्दों को हल करना चाहिये।
  • राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एन.ए.एल.एस.ए.) और श्रम मंत्रालय को प्रवासी श्रमिकों की तस्करी, न्यूनतम मजदूरी के उल्लंघन, कार्यस्थल पर दुर्व्यवहार व दुर्घटनाओं के लिये शिकायत निवारण सेल तथा फास्ट ट्रैक कानूनी प्रतिक्रियाओं की स्थापना करनीचाहिये।
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