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सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय)

संदर्भ

हाल ही में जारी किये गए बजट और आर्थिक सर्वेक्षणमें बढ़ती हुई खाद्य सब्सिडीको लेकर चिंता व्यक्त करते हुए इसके समुचित प्रबंधन पर ज़ोर दिया गया है। कुछ समय पूर्व नीति आयोग ने भी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act : NFSA), 2013 में कुछ संशोधन प्रस्तावित किये है

खाद्य सब्सिडी की स्थिति

  • विभिन्न योजनाओं के तहत केंद्रीय पूल से राज्यों द्वारा बढ़ती खाद्यान्न की माँग के साथ-साथ खाद्य सब्सिडी में भी निरंतर वृद्धि हो रही है।
  • वित्त वर्ष 2016-17 से 2019-20 के दौरान,भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India: FCI) द्वारा खाद्य सब्सिडी के लिये‘राष्ट्रीय लघु बचतकोष’(National Small Savings Fund : NSSF) के तहत लिये गए ऋण को मिलाकर सब्सिडी की राशि₹65लाख करोड़ से ₹2.2 लाख करोड़ के बीच थी।
  • एफ.सी.आई. भारत सरकार की मुख्य अनाज खरीद एजेंसी है, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price : MSP) पर किसानों से अनाज की खरीद करती है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System: PDS) के माध्यम से सस्ती दरों पर इसकी बिक्री करती है। सरकारबजट में खाद्य सब्सिडी के माध्यम से एफ.सी.आई. के क्रय एवं विक्रय मूल्यों के बीच अंतर का भुगतान करती है।
  • भविष्य मेंकेंद्र की इस वार्षिक सब्सिडी राशि के लगभग₹5 लाख करोड़ हो जाने की उम्मीद है।

उच्च सब्सिडी का कारण

  • विगत तीन वर्षों में राज्यों द्वारा केंद्रीय पूल से वार्षिक आधार पर लिये गए खाद्यान्नकी मात्रा 60 मिलियन टन से बढ़कर लगभग 66 मिलियन टन हो गई है।वस्तुतः राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गतदेश की लगभग दो-तिहाई आबादी को कवर करने के कारण राज्यों की माँग में स्वाभाविक वृद्धि हुई है।
  • पी.डी.एस. और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के अंतर्गत लाभार्थियों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है।
  • वित्तवर्ष 2020-21 के लि येसब्सिडी का संशोधित अनुमान लगभग ₹23 लाख करोड़ है, जिसमें ₹84,636 करोड़ के अतिरिक्त बजटीय संसाधन के आवंटन को शामिल नहीं किया गया है।सरकार ने अतिरिक्त बजटीय संसाधनों के चलन को समाप्त करने का निर्णय लिया है। साथ ही, एफ.सी.आई. द्वारा लिये गए ऋण के बकाए एरीयर (Arrear) को भी खाद्य सब्सिडी में शामिल करने का निर्णय लिया गया है।
  • जुलाई 2019 में पेश किये गए अंतरिम बजट में अतिरिक्त बजटीय संसाधनों की चर्चा के समय सरकारी एजेंसियों की उन उधारियों पर प्रकाश डाला गया था, जिन्हें सरकार को चुकाना पड़ता है। वित्त वर्ष  2021-22 में बजटीय प्रावधान करके खाद्य सब्सिडी द्वारा समर्थित भारतीय खाद्य निगम को दिये जाने वाले एन.एस.एस.एफ. (NSSF) ऋण को ख़त्म करने का प्रस्ताव है।

केंद्रीय निर्गम मूल्य से संबंधित मुद्दे

  • एन.एफ.एस.ए. के अंतर्गत पात्र परिवारों को रियायती दर पर खाद्यान्न प्राप्त करने का कानूनी अधिकार है।इन रियायती दरों को ‘केंद्रीय निर्गम मूल्य’ (Central Issue Prices : CIP) कहते हैं।यद्यपि एन.एफ.एस.ए. के लागू होने के तीन वर्ष बाद सी.आई.पी. में संशोधन का प्रावधान है, किंतु हालाँकि, अभी तक इसमें संशोधन नहीं किया गया है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण में सी.आई.पी. में वृद्धि का संकेत किया गया है, किंतु विभिन्न राज्यों में चावल और गेहूँ के खुदरा निर्गम मूल्यों में अंतर ने इस मुद्दे को जटिल बना दिया है।
  • कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में प्राथमिकता वाले परिवारों (Priority Households : PHHs) और अंत्योदय अन्न योजना के लाभार्थियों को इसके लिये कोई भुगतान नहीं करना पड़ता है, जबकि इन दोनों श्रेणियों के लिये ओडिशा में इसकी कीमत ₹1 है और बिहार में दोनों श्रेणियों के लिये इसकी कीमत क्रमशः₹3 और ₹2 है। इसके अतिरिक्त, तमिलनाडु में सभी वर्गों को मुफ्त में चावल दिया जाता है।
  • साथ ही, राज्य सरकारों द्वारा निर्गम मूल्यों में वृद्धि के बिना केंद्र सरकार द्वारा सी.आई.पी. में वृद्धि करने से राज्यों के आर्थिक बोझ में वृद्धि ही होगी।
  • केंद्र और राज्यों द्वारा सी.आई.पी.में वृद्धि न करने के पीछे राजनीतिक कारणभी हैं, क्योंकि कम कीमतों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने की घोषणाएँ मतदाताओं का ध्यान आकर्षित करती हैं।उल्लेखनीय है कि, वर्ष 1967 में विधानसभा चुनावों के दौरान तमिलनाडु में ₹1 में लगभग 4.5 किग्रा. आनाज और आंध्र प्रदेश में वर्ष 1983 में ₹2 प्रति किग्रा. की दर से चावल देने की घोषणा की गई थी।
  • 50 वर्षों बाद आर्थिक-सामाजिक स्थितियों में अत्यधिक परिवर्तन आने और गरीबी में पर्याप्त कमी के बावजूद खाद्यान्नों की कीमतें इतनी कम रखने के औचित्य पर विचार करने की आवश्यकता है।

सुधार की आवश्यकता

  • इस संदर्भ में, केंद्र सरकार को मूल्य निर्धारण प्रणाली सहित समग्र खाद्य सब्सिडी प्रणाली पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। वर्ष 2015 में भी एक आधिकारिक समिति ने एन.एफ.एस.ए. के अंतर्गत कवरेज को 67% से कम करके 40% करने का सुझाव दिया था।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 में रंगराजन समिति के अनुसार, वर्ष 2011 की जनसंख्या में गरीबी रेखा (BPL) से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों की हिस्सेदारी 5% अर्थात् 36 करोड़ के आस-पास थी।
  • साथ ही, इसके लिये गैस सब्सिडी की ही तरह स्वैच्छिक रूप से इस लाभ का परित्याग करने का विकल्प उपलब्ध कराया जा सकता है। यद्यपि राज्यों को पी.एच.एच. कार्ड धारकों की पहचान की अनुमतिहै,किंतु केंद्र सरकार ऐसे लाभार्थियों की संख्या को कम करने के लिये उन्हें लाभ का परित्याग करने के लिये तैयार कर सकती है।
  • इसके अतिरिक्त, स्थाई दर (Flat Rates) की वर्तमान व्यवस्था को स्लैब प्रणाली से प्रतिस्थापित किये जाने की आवश्यकता है, जिसके अंतर्गत अपेक्षाकृत कम आवश्यकता वाले लोगों से अधिक कीमतेंली जा सकतीहैं।
  • पी.डी.एस. में कार्यान्वित सुधारों को, जिनमें इसका एंड-टू-एंड कंप्यूटरीकरण, राशन कार्डधारकों के डाटा का डिजिटलीकरण,आधार का सही उपयोग और उचित मूल्य की दुकानों का ऑटोमेशन (Automation) शामिल हैं, केंद्र और राज्य के स्तर पर एक-साथ लागू किया जाना चाहिये।
  • यदि इन उपायों को यदि सही से लागू किया जाए तो खुले बाज़ार में खुदरा कीमतों पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।सब्सिडी राशि में कटौती के साथ-साथ लीकेज को कम करने के लिये एक संशोधित और आवश्यकता आधारित पी.डी.एस.की भी आवश्यकता है।
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