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नए उत्पादों को भौगोलिक संकेतक

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-3: बौद्धिक सम्पदा अधिकारों से सम्बंधित विषय)

पृष्ठभूमि

  • हाल ही में मणिपुर के काले चावल, गोरखपुर के टेराकोटा तथा तमिलनाडु के कोविलपट्टी कदलाई मिठाई को भौगोलिक संकेतक टैग प्रदान किया गया है।

उत्पादों के बारे में प्रमुख तथ्य

मणिपुर का काला चावल (Black Rice of Manipur):

  • मणिपुर के काले चावल को 'चाक-हाओ' (Chak-Hao) भी कहते हैं। चाक-हाओ मणिपुर में सदियों से उगाया जाने वाला एक प्रकार का सुगंधित व लसलसा चावल है। इसकी विशेष सुगंध ही इसकी विशेषता है। सामान्य तौर पर इसे सामुदायिक पर्वों के दौरान चाक-हाओ खीर के रूप में परोसा जाता है। इसके अलावा, पारम्परिक औषधियों में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
  • इसके लिये प्राप्त भौगोलिक संकेतक आवेदन के अनुसार, यह चावल फाइबर युक्त भूसी की परत (Fibrous Bran Layer) और कच्चे फाइबर की उच्च मात्रा (Higher Crude Fiber Content) के कारण पकने में सबसे अधिक समय लेता है। यह एक गहरे काले रंग का चावल होता है, जोकि एंथोसाइनिन एजेंट (Anthocyanin Agent) के कारण चावल की अन्य किस्मों से भारी होता है।

गोरखपुर टेराकोटा (Gorakhpur Terrocota):

  • गोरखपुर पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थित एक जिला है। टेराकोटा का कार्य गोरखपुर में सदियों पुरानी परम्परागत कला है। यहाँ पर कुम्हार हाथ से अलंकृत किये हुए विभिन्न प्रकार के जानवरों की आकृतियाँ बनाते हैं।
  • इस शिल्प-कौशल के प्रमुख उत्पादों में हौदा हाथी, महावतदार घोड़ा, हिरण, ऊँट तथा पंचमुखी व एकमुखी गणेश, झूमर व लटकती हुई घंटियाँ आदि शामिल हैं।

कोविलपट्टी कदलाई मिठाई (Kovilpatti Kadalai Mittai):

  • यह प्रमुख रूप से तमिलनाडु के दक्षिणी भागों में बनाई जाने वाली मूँगफली कैंडी (मूँगफली की मीठी पट्टी) है। इसे मूँगफली और परम्परागत रूप से विशेष गुण 'वेलम' (Vellam) तथा पानी से तैयार किया जाता है। इसे बनाने में प्रयुक्त पानी विशेष रूप से 'थमीराबारानी' (Thamirabarani) नदी से लिया जाता है। थामीराभरानी नदी का पानी इसके प्राकृतिक स्वाद में वृद्धि करता है।
  • इसको बनाने में चमकदार चाशनी का प्रयोग किया जाता है। इसके ऊपर गुलाबी, हरे और पीले रंग के कसे (घिसे हुए) हुए नारियल की परत चढ़ी रहती है। इस उत्पाद को निर्मित करने में प्रयुक्त सभी वस्तुएँ प्राकृतिक होती हैं। इसे थूट्टुकुड़ी (Thoothukudi) जिले के कोविलपट्टी व आसपास के क्षेत्रों में बनाया जाता है।

भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication-GI)

  • भौगोलिक संकेतक मुख्यतया कोई प्राकृतिक, कृषि या निर्मित उत्पाद (हस्तशिल्प या औद्योगिक) है, जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होता है।
  • आमतौर पर ऐसा नाम गुणवत्ता तथा विशिष्टता का आश्वासन होता है, जो मूल रूप से इसके उत्पत्ति के स्थानीय स्रोत हेतु उत्तरदाई होता है।
  • एक बार भौगोलिक संकेतक संरक्षण प्रदान करने के बाद कोई भी अन्य निर्माता समरूप उत्पादों को बाजार में लाने हेतु नाम का दुरुपयोग नहीं कर सकता है। यह टैग उपभोक्ताओं को भी उस उत्पाद की प्रमाणिकता के बारे में सुविधा और गारंटी प्रदान करता है।
  • व्यक्तियों, उत्पादकों और कानून के तहत स्थापित संगठन या प्राधिकरणों का कोई भी संघ एक पंजीकृत स्वामी हो सकता है। पंजीकृत स्वामी का नाम भौगोलिक संकेतक रजिस्टर में दर्ज किया जाना चाहिये।
  • भौगोलिक संकेतक के लिये पंजीकरण 10 वर्षों तक वैध रहता है। इस 10 वर्ष के बाद इसे पुनर्नवीनीकृत कराया जा सकता है।
  • हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने भारत के भौगोलिक संकेत (जी.आई.) के लिये लोगो और टैगलाइन जारी किया है।
  • 'भौगोलिक संकेतक' और 'ट्रेडमार्क' के बीच अंतर होता है। ट्रेडमार्क एक प्रकार का संकेत या चिन्ह है। इसका प्रयोग एक उपक्रम द्वारा अपने वस्तु और सेवाओं को अन्य उद्यमों से पृथक करता है।
  • भौगोलिक संकेतक का उपयोग उन सभी उत्पादकों द्वारा किया जा सकता है जो अपने उत्पादों को भौगोलिक संकेतक द्वारा निर्दिष्ट स्थान पर उत्पादित करते हैं और जिनके उत्पाद विशिष्ट गुण साझा करते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भौगोलिक संकेतक औद्योगिक सम्पत्ति के संरक्षण हेतु पेरिस समझौते के तहत बौद्धिक सम्पदा अधिकारों (आई.पी.आर.) के एक प्रकार के रूप में शामिल किये गए हैं।
  • भौगोलिक संकेतक विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) के व्यापार सम्बंधित पहलुओं पर बौद्धिक सम्पदा अधिकार (TRIPS-ट्रिप्स) समझौते द्वारा भी शासित होता है।
  • डब्ल्यू.टी.ओ. के सदस्य के रूप में भारत ने ट्रिप्स समझौते का पालन करने के लिये अधिनियम बनाया है। भारत में भौगोलिक संकेतक पंजीकरण को भौगोलिक संकेतक (वस्तु पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम,1999 द्वारा प्रशासित किया जाता है। यह अधिनियम सितम्बर 2003 से प्रभावी हुआ। भारत में पहला भौगोलिक संकेतक प्राप्त उत्पाद वर्ष 2004 में दार्जिलिंग चाय थी।
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