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आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम और जासूसी रोधी कानून

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, लोकनीति व अधिकारों सम्बंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3 : संघीय ढाँचे से सम्बंधित विषय एवं चुनौतियाँ, आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका, सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पुलिस ने रणनीतिक मामलों के विश्लेषक एक भारतीय पत्रकार सहित दो लोगों को ‘आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम’ (Official Secrets Act- ओ.एस.ए.) के तहत गिरफ्तार किया।

आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम

  • ‘आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम’ मूलतः ब्रिटिश औपनिवेशिक युग का है। इसका मूल संस्करण ‘भारतीय आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम(अधिनियम XIV),1889’ था।
  • यह अधिनियम ब्रिटिश राज की नीतियों का विरोध कर रहे कई भाषाओं के समाचार-पत्रों की आवाज़ को दबाने के उद्देश्य से लाया गया था। साथ ही राजनीतिक चेतना का निर्माण करने वाले और पुलिस की कार्रवाई व जेल का विरोध करने वालों के लिये भी इस कानून को लाया गया था।
  • वाइसराय लार्ड कर्ज़न के समय इसमें संशोधन करके आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1904 के रूप में इसको और अधिक कठोर बना दिया गया।
  • वर्ष 1923 में इसका एक नया संस्करण अधिसूचित किया गया और इसके द्वारा भारतीय आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (1923 का अधिनियम सं. XIX) को देश के शासन में गोपनीयता और विश्वसनीयता के सभी मामलों तक विस्तारित कर दिया गया।
  • मोटे तौर पर यह अधिनियम दो पक्षों से सम्बंधित है। जासूसी या गुप्तचर व्यवस्था को धारा 3 के अंतर्गत और सरकार की अन्य गुप्त जानकारी के प्रकटीकरण को धारा 5 के अंतर्गत रखा गया है।
  • गुप्त जानकारी कोई भी आधिकारिक कोड, पासवर्ड, स्केच, योजना, मॉडल, लेख, नोट, दस्तावेज़ या सूचना हो सकती है।
  • धारा 5 के तहत इस प्रकार की गुप्त सूचना का संचार करने वाले व्यक्ति और उस सूचना को प्राप्त करने वाले व्यक्ति दोनों को दंडित किया जा सकता है।
  • किसी दस्तावेज़ को वर्गीकृत करने के लिये कोई भी सरकारी मंत्रालय या विभाग, विभागीय सुरक्षा निर्देश,1994 के मैनुअल का पालन करता है, न की आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम का।
  • इसके अलावा, ओ.एस.ए. स्वयं यह नहीं बताता कि कौन-सी दस्तावेज़ ‘गुप्त’ श्रेणी में आती हैं और कौन नहीं। ओ.एस.ए. कानून के तहत ‘गुप्त’ दस्तावेज़ के दायरे में क्या आता है, यह तय करना सरकार का विवेकाधिकार है।
  • अक्सर तर्क दिया जाता है कि यह कानून ‘सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005’ के साथ सीधे तौर पर टकराता है।

आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम बनाम सूचना का अधिकार अधिनियम

  • आर.टी.आई. अधिनियम की धारा 22 ओ.एस.ए. सहित अन्य कानूनों के समकक्ष प्रावधानों के मामलों में अपने (आर.टी.आई.) प्रावधानों को प्रधानता प्रदान करती है।
  • यह आर.टी.आई. अधिनियम को एक अधिभावी प्रभाव (Overriding Effect) प्रदान करता है, इसलिये यदि किसी सूचना को प्रस्तुत करने के सम्बंध में ओ.एस.ए. में कोई असंगति है, तो आर.टी.आई. अधिनियम को इस पर प्रभावी माना जाता है। हालाँकि, आर.टी.आई. अधिनियम की धारा 8 और 9 के तहत सरकार जानकारी देने से इनकार कर सकती है।
  • प्रभावी रूप से यदि सरकार ओ.एस.ए. के तहत किसी दस्तावेज़ को ‘गुप्त’ के रूप में वर्गीकृत करती है, तो उस दस्तावेज़ को आर.टी.आई. अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जा सकता है और सरकार धारा 8 या 9 को लागू कर सकती है। कानूनी विशेषज्ञ इसे खामियों के रूप में देखते हैं।

ओ.एस.ए. के प्रावधानों को बदलने का प्रयास

  • ओ.एस.ए. के सम्बंध में अवलोकन करने वाला पहला सरकारी निकाय विधि आयोग पहली बार वर्ष 1971 में बना। विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ अपराध’ नाम से प्रस्तुत की।
  • इस रिपोर्ट में कहा गया कि यदि किसी परिपत्र को ‘गुप्त’ या ‘गोपनीय’ के रूप में चिन्हित और वर्गीकृत किया गया है, तो केवल इसी आधार पर उसे इस अधिनियम के प्रावधानों के दायरे में नहीं लाना चाहिये। यदि उसका प्रकाशन जनता तथा राज्य के हित में है तो उसका प्रकाशन किया जा सकता है। हालाँकि, विधि आयोग ने अधिनियम में किसी भी बदलाव की सिफारिश नहीं की।
  • वर्ष 2006 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने सिफारिश की कि ओ.एस.ए. को निरस्त किया जाए और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम में एक अध्याय के रूप में इसके प्रावधानों को शामिल किया जाए।
  • ओ.एस.ए. को ‘एक लोकतांत्रिक समाज में पारदर्शिता के शासन के साथ असंगत’ होने के कारण प्रशासनिक सुधार आयोग ने वर्ष 1971 के विधि आयोग की रिपोर्ट का उल्लेख किया था, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बंधित सभी कानूनों को एक साथ लाने के लिये एक ‘अम्ब्रेला अधिनियम’ पारित किये जाने की बात कही थी।
  • वर्ष 2015 में सरकार ने आर.टी.आई. अधिनियम के प्रकाश में ओ.एस.ए. के प्रावधानों का निरीक्षण करने के लिये एक समिति का गठन किया था, जिसने ओ.एस.ए. को अधिक पारदर्शी और आर.टी.आई. अधिनियम के अनुरूप बनाने की अनुसंशा की थी।

ओ.एस.ए. से सम्बंधित कुछ प्रमुख उदाहरण

  • ओ.एस.ए. से जुड़े सबसे पुराने और सबसे लम्बे आपराधिक परीक्षणों में से एक वर्ष 1985 का कोमार नारायण जासूसी मामला है।
  • इसरो जासूसी एक अन्य उच्चस्तरीय मामला था, जिसमें वैज्ञानिक एस. नंबी नारायण पर पाकिस्तान को अवैध तरीके से रॉकेट और क्रायोजेनिक तकनीक से जुड़ी जानकारी लीक करने का आरोप था। हालाँकि, बाद में उन्हें बरी कर दिया गया था।
  • ओ.एस.ए. के तहत सबसे नवीनतम मामले में दिल्ली की एक अदालत द्वारा इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग में सेवारत एक पूर्व राजनयिक माधुरी गुप्ता को आई.एस.आई. को संवेदनशील जानकारी देने का दोषी पाया गया था।

फैक्ट फाइल

  • जासूसी से सम्बंधित मूल अधिनियम ‘आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम,1889’ था, जिसे वाइसराय लार्ड कर्ज़न के समय संशोधन द्वारा आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1904 के रूप में और अधिक कठोर बना दिया गया।
    § गुप्त जानकारी कोई भी आधिकारिक कोड, पासवर्ड, स्केच, योजना, मॉडल, लेख, नोट, दस्तावेज़ या सूचना हो सकती है।
  • इसके अंतर्गत गुप्त सूचना का संचार करने वाले व्यक्ति और उस सूचना को प्राप्त करने वाले व्यक्ति दोनों को दंडित किया जा सकता है।
  • ओ.एस.ए. कानून के तहत ‘गुप्त’ दस्तावेज़ के दायरे में क्या आता है, यह तय करना सरकार का विवेकाधिकार है।
  • यदि किसी सूचना को प्रस्तुत करने के सम्बंध में आर.टी.आई. और ओ.एस.ए. में कोई असंगति है, तो आर.टी.आई. अधिनियम को इस पर प्रभावी माना जाता है।

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