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पॉलीहाउस तकनीक और गैर-मौसमी फसलों की खेती

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग)

संदर्भ

हाल ही में, सी.एस.आई.आर.-सी.एम.ई.आर.आई. (भारतीय वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् का केंद्रीय यांत्रिक इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान), दुर्गापुर के निदेशक ने ‘प्राकृतिक रूप से हवादार पॉलीहाउस सुविधा’ का उद्घाटन किया। साथ ही, लुधियाना में ‘रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस’ की आधारशिला रखी।

प्रमुख बिंदु

  • इस संरचना का विकास सी.एस.आई.आर.-आई.एच.बी.टी., पालमपुर के सहयोग से किया जा रहा है। यह फसल और मौसम की आवश्यकताओं के आधार पर पॉलीहाउस को स्वचालित (Automating) करने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) को एकीकृत करने की प्रक्रिया में है।
  • सभी मौसमों के लिये उपयोगी इस संरचना में ऑटोमैटिक रिट्रैक्टेबल रूफ होगी, जो पी.एल.सी. सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हुए कंडीशनल डाटाबेस से मौसम की स्थिति और फसल की जरूरतों के आधार पर संचालित होगी।

लाभ

  • रिट्रैक्टेबल रूफ का उपयोग सूर्य के प्रकाश की मात्रा, गुणवत्ता और अवधि, पानी के प्रभाव, आर्द्रता, कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर के साथ-साथ फसल और मृदा के तापमान में आवश्यकता के अनुसार बदलाव लाने के लिये किया जाएगा।
  • यह जैविक खेती के लिये एक व्यवहार्य तकनीक है। यह भारत के सभी 15 अलग-अलग कृषि-जलवायु क्षेत्रों के लिये उपयोगी सिद्ध होगी और गैर-मौसमी फसलों की कृषि में मदद करेगा। इससे किसानों को उच्च मूल्य और आय प्राप्त हो सकती है।

क्या है पॉलीहाउस तकनीक?

  • पॉलीहाउस किसी इमारत की तरह एक विशेष रूप से निर्मित संरचना है, जिसमें एक विशेषीकृत पॉलिथीन शीट का उपयोग आवरण सामग्री (Covering Material) के रूप में किया जाता है। इसमें फसलों को आंशिक रूप से या पूरी तरह से नियंत्रित जलवायु परिस्थितियों में उगाया जा सकता है। 
  • पारदर्शी आवरण सामग्री से प्राकृतिक प्रकाश इसमें प्रवेश कर जाता है। पॉलीहाउस फसलों में कीटों के हमले और अत्यधिक गर्मी जैसे खतरों को कम करने में भी सहायक होते हैं।
  • यह चरम मौसमी घटनाओं से बिना किसी सुरक्षा के खुले क्षेत्र में उगने वाली फसलों के लिये विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे इसकी उपज, गुणवत्ता और फसल की परिपक्वता का समय बदल जाता है।
  • हालाँकि, पारंपरिक ग्रीनहाउस में मौसम की विसंगतियों और कीटों के प्रभाव को कम करने के लिये एक स्थिर छत होती है और इस ढकी छत के कारण कभी-कभी अत्यधिक गर्मी या अपर्याप्त प्रकाश (बिलकुल सुबह के समय) का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, वे अपर्याप्त कार्बन-डाइऑक्साइड स्तर, वाष्पोत्सर्जन और पानी की समस्या से भी ग्रस्त हैं।
  • पॉलीहाउस भारत जैसे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिये अधिक उपयुक्त हैं। सामान्यतया पानी के लिये पॉलीहाउस के अंदर ‘ड्रिप इरिगेशन सिस्टम’ (बूँद सिंचाई प्रणाली) लगाया जाता है। उत्पादन को अधिकतम स्तर तक बढ़ाने के लिये पॉलीहाउस कार्बन-डाइऑक्साइड की उच्च सांद्रता प्रदान करता है और इसलिये पॉलीहाउस की पैदावार खुले क्षेत्र की खेती की तुलना में अधिक होती है।
  • किसी विशेष जलवायु क्षेत्र में यदि किसी फसल की खेती करना असंभव हो तो उन पौधों को पॉलीहाउस परिस्थितियों में उगाया जा सकता है। भारत के मैदानी इलाकों में स्ट्रॉबेरी की खेती इसका एक उदाहरण है।

पॉलीहाउस में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें

  • पुष्पकृषि फसल (Floriculture crops): जरबेरा, गुलाब, कार्नेशन्स, ऑर्किड, एन्थ्यूरियम और स्ट्रेलिट्ज़िया आदि।
  • विदेशी सब्जियाँ (Exotic vegetables): रंगीन शिमला मिर्च, खीरा, चेरी, टमाटर, तोरी आदि।
  • नर्सरी वाले पौधे (Nursery plants): सजावटी इनडोर पौधे, छोटे पत्तेदार पौधे, कैक्टस पौधे और रंगीन विदेशी प्रजातियाँ।
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