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संयुक्त राष्ट्र में श्रीलंका पर प्रस्ताव और भारत : ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

(प्रारंभिक परीक्षा-  राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत)

संदर्भ

हाल ही में, भारत ने श्रीलंका में मानवाधिकारों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में लाए गए एक प्रस्ताव पर मतदान से अनुपस्थित रहने का निर्णय लिया है। भारत में गठबंधन की राजनीति का दबाव, तमिल राजनीति तथा क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति मतदान की प्रवृति तय करने में अहम भूमिका निभाती है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में लिट्टे के विरुद्ध युद्ध की समाप्ति के बाद से मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका पर यह आठवाँ प्रस्ताव है। इन प्रस्तावों पर मतदान की प्रवृति भारत-श्रीलंका संबंधों में उतार-चढ़ाव को दर्शाती है और इस संदर्भ में इन संकल्पों पर भारत की स्थिति का आकलन आवश्यक हो जाता है।

संकल्प 46/एल 1, 2021 (Resolution 46/L1, 2021)

मतदान की स्थिति

  • ‘संकल्प 46/एल 1’ ब्रिटेन ने लाया है, जिसे स्वीकार कर लिया गया है। इसके लिये हुए मतदान में 14 देश अनुपस्थित रहे, जिसमें भारत, जापान, इंडोनेशिया, बहरीन और नेपाल जैसे एशियाई देश शामिल है।
  • चीन, क्यूबा, ​​पाकिस्तान, बांग्लादेश, रूस और वेनेजुएला सहित 11 देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, जबकि पक्ष में मतदान करने वाले 22 सदस्यों में यू.के., फ्रांस, इटली, डेनमार्क, नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया, मैक्सिको, अर्जेंटीना, ब्राजील और उरुग्वे सहित अन्य देश शामिल हैं।

संकल्प का कारण

  • इस संकल्प में अन्य मुद्दों के अतिरिक्त श्रीलंका में ‘मानवाधिकारों पर उच्चायुक्त कार्यालय’ को मज़बूत करने और जानकारी व सबूत एकत्र करने तथा उसे समेकित, विश्लेषित एवं संरक्षित करने के साथ-साथ मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिये भविष्य में जवाबदेही प्रक्रियाओं के लिये रणनीतियाँ विकसित करने का निर्णय लिया गया है।
  • साथ ही, पीड़ितों व बचे हुए लोगों का पक्ष रखना और सक्षम न्यायालयों के साथ सदस्य राज्यों में प्रासंगिक न्यायिक एवं अन्य कार्यवाही का समर्थन करना भी इसमें शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC)

  • मानवाधिकार परिषद संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंतर्गत एक अंतर-सरकारी निकाय है जो दुनिया भर में सभी प्रकार के मानवाधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के लिये उत्तरदायी है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 15 मार्च 2006 को ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग’ के स्थान पर इस परिषद का गठन किया गया।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के 47 देश इस परिषद के सदस्य होते हैं जो संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा प्रत्यक्ष और गुप्त मतदान के माध्यम से तीन वर्ष की अवधि के लिये चुने जाते हैं और लगातार दो कार्यकालों के तत्काल बाद पुन: नहीं चुने जा सकते हैं। इसकी बैठक संयुक्त राष्ट्र कार्यालय जिनेवा में होती है।
  • इस परिषद की सदस्यता समान भौगोलिक वितरण पर आधारित है, जिसमें सीटों का वितरण इस प्रकार है-

अफ्रीकी क्षेत्र

एशिया-प्रशांत क्षेत्र

कैरिबियाई और लैटिन अमेरिकी क्षेत्र

पश्चिमी यूरोपीय और अन्य क्षेत्र

पूर्वी यूरोपीय क्षेत्र

13 सीट

13 सीट

8 सीट

7 सीट

6 सीट

 संकल्प के निहितार्थ

  • यह संकल्प लिट्टे सहित श्रीलंका के सभी दलों व जिम्मेदार संस्थानों द्वारा वर्षों से किये गए अधिकारों के हनन के लिये उत्तरदायित्व की निरंतर कमी की ओर संकेत करता है।
  • साथ ही, यह इन समस्याओं का समाधान करने के लिये श्रीलंका की क्षमता में आत्मविश्वास की कमी को व्यक्त करता है, जो एक गंभीर मुद्दा है।साथ ही, यह श्रीलंका में पिछले वर्षों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों में कमी, नागरिक सरकार के कार्यों का सैन्यीकरण, न्यायपालिका की स्वतंत्रता में कमी को भी दर्शाता है।
  • इस संकल्प से मुस्लिमों व तमिलों का हाशिए पर होना, धार्मिक स्वतंत्रता के कम होने के साथ-साथ मानवाधिकारों के संरक्षण के लिये उत्तरदाई संस्थाओं में गिरावट को भी प्रदर्शित करता हैं।

संकल्प एस-11, 2009 (Resolution S-11, 2009)

  • वर्ष 2009 का यह संकल्प लिट्टे की हार के बाद अपनी आशावाद को प्रदर्शित करने के लिये श्रीलंका ने लाया था। इसमें अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से पुनर्निर्माण के लिये वित्तीय सहायता का आग्रह किया गया।
  • साथ ही, श्रीलंकाई सरकार के राजनीतिक समझौता प्रक्रिया को आगे बढ़ाने और सर्वसम्मति से विकास व स्थायी शांति स्थापित करने एवं जातीय व धार्मिक समूहों के अधिकारों का सम्मान करने के प्रस्ताव का वैश्विक स्तर पर स्वागत किया गया था।
  • इस प्रस्ताव में श्रीलंका ने स्थायी शांति और सामंजस्य के लिये 13वें संशोधन के कार्यान्वयन के साथ राजनीतिक समाधान की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की थी।
  • श्रीलंका के 13वें संशोधन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले भारत सहित 29 देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था, जबकि यूरोपीय गुट और कनाडा सहित एक दर्जन देशों ने युद्ध के दौरान अधिकारों के उल्लंघन की गंभीर चिंताओं के कारण इसके खिलाफ मतदान किया।
  • हालाँकि, तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने राष्ट्रपति पद पर दो कार्यकाल की व्यवस्था समाप्त करने के साथ-साथ देश पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली और ‘सीखे गए सबक एवं सुलह आयोग’ (Lessons Learnt and Reconciliation Commission: LLRC) की सिफारिशों के बावजूद सुलह प्रक्रिया में कोई रूचि नहीं दिखाई।

संकल्प 19/2, 2012

  • यह संकल्प अमेरिका ने लाया था, जिसमें एल.एल.आर.सी. रिपोर्ट पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा गया कि इस रिपोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के आरोपों को संबोधित नहीं किया है। साथ ही, इस संकल्प में कुछ सिफारिशों को लागू करने का भी आग्रह किया गया था।
  • भारत उन 24 देशों में शामिल था, जिसने अमेरिका और यूरोपीय गुट के साथ इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।इसके द्वारा तत्कालीन भारतीय सरकार ने 13वें संशोधन और तमिल-बहुल क्षेत्रों में राजनीतिक सत्ता हस्तांतरण पर राजपक्षे का ध्यान केंद्रित करने की असफल कोशिश की।
  • द्रमुक (DMK) उस समय संप्रग (UPA) गठबंधन का हिस्सा थी और श्रीलंका के खिलाफ केंद्र पर दबाव बना रही थी।यह श्रीलंका के लिये एक बड़ा झटका था।
  • चीन, बांग्लादेश, क्यूबा, ​​मालदीव, इंडोनेशिया, रूस, सऊदी अरब और कतर उन 15 देशों में शामिल थे जिन्होंने इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था।

संकल्प एच.आर.सी. 22/1, 2013

  • वर्ष 2013 में यूरोपीय गुट और भारत सहित 25 देशों ने पुन: श्रीलंका के खिलाफ मतदान किया। भारत वर्ष 2009 में श्रीलंका द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं पर प्रगति न होने से चिंतित था।
  • द्रमुक इस प्रस्ताव में ‘नरसंहार’ शब्द को शामिल कराने को लेकर भारत द्वारा दबाव बढ़ाने के लिये गठबंधन सरकार से बाहर हो गया था।

संकल्प 25/1, 2014

  • वर्ष 2014 के इस प्रस्ताव में एक स्वतंत्र और विश्वसनीय जाँच के आह्वान के साथ-साथ श्रीलंका को सुरक्षा बलों के द्वारा किये गए कथित उल्लंघनों की अपनी जाँच परिणामों को सार्वजनिक करने के लिये कहा गया। इसके अतिरिक्त, पत्रकारों, मानवाधिकार रक्षकों और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर सभी कथित हमलों की जाँच का अनुरोध किया गया।
  • भारत इस संकल्प पर मतदान से अनुपस्थित रहा। इस समय तक चीन ने श्रीलंका में भारी आर्थिक और राजनीतिक पैठ बना ली थी।
  • यह प्रस्ताव लोकसभा चुनाव से पूर्व लाया गया था और तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम इस प्रस्ताव के समर्थन में थे किंतु भारत यहाँ भी मतदान से अनुपस्थित रहा।
  • वर्ष 2015 में महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति पद से हटने के बाद नए राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना की सरकार ने एक ‘सर्वसम्मति प्रस्ताव’ पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया, जिसमें जवाबदेही, न्याय और मानवाधिकारों के उल्लंघन जैसे युद्धोंपरांत मुद्दों को संबोधित करने की प्रतिबद्धताएँ तय की गई। हालाँकि, श्रीलंका में इसका प्रारंभ से ही विरोध होने लगा।

संकल्प 34/1 और 40/1

  • श्रीलंका द्वारा तय प्रतिबद्धताओं के नियत समय-सीमा में पूरा न किये जाने के बाद आगामी वर्षों में दो अन्य संकल्प लाए गए- वर्ष 2017 में 34/1 और वर्ष 2019 में 40/1
  • सरकार के पुनः बदलने पर वर्ष 2020 में श्रीलंका ने 34/1 से बाहर निकलने की घोषणा की। साथ ही, ऐसे मुद्दों के समाधान के लिये स्वयं के न्याय एवं निवारण तंत्र स्थापित करने की बात की गई।

वर्तमान राजनीति

  • इस वर्ष का प्रस्ताव मानवाधिकार आयुक्त द्वारा श्रीलंका की स्थिति पर नकारात्मक रिपोर्ट का परिणाम है।मतदान से पूर्व भारत ने ‘श्रीलंका के लिये एकता, स्थिरता एवं क्षेत्रीय अखंडता’ तथा ‘तमिलों के लिये समानता, न्याय व गरिमा’ दोनों की आवश्यक पर ध्यान देने की बात कही। 
  • इसमें श्रीलंका को सुलह की प्रक्रिया के माध्यम से तमिल आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये आवश्यक कदम उठाने और 13वें संशोधन के पूर्ण कार्यान्वयन के लिये कहा गया।
  • तमिलनाडु में चुनावों को देखते हुए और भारत द्वारा अपने रणनीति पर विचार करते हुए भारत ने मतदान से अनुपस्थित रहने का तर्कसंगत विकल्प चुना।
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