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‘ऑयल बॉण्ड’ से संबंधित पक्ष

(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।)

संदर्भ

हाल ही में,केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि वह पेट्रोल और डीज़ल पर आरोपित करों को कम नहीं कर सकती, क्योंकि उसे विगत यू.पी.ए. सरकार द्वारा वहनीय ईंधन की कीमतों के लिये जारी किये गए ‘ऑयल बॉण्ड’ के एवज में भुगतान का बोझ उठाना पड़ रहा है।

पृष्ठभूमि

  • ईंधन की कीमतों को अविनियमित (Deregulate) करने से पूर्व, यू.पी.ए. शासन के दौरान पेट्रोल और डीज़ल के साथ-साथ रसोई गैस व केरोसिन तेल को रियायती दरों पर बेचा जाता था।
  • बजट से ‘तेल विपणन कंपनियों’ को सीधे सब्सिडी देने की बजाय तत्कालीन सरकार ने राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के लिये ईंधन खुदरा विक्रेताओं को कुल 1.34 लाख करोड़ के ऑयल बॉण्ड जारी किये थे।
  • इन बॉण्ड्स पर ब्याज और प्रमुख घटकों के भुगतान को संदर्भित करते हुए, केंद्र ने तर्क दिया है कि उसे राजकोषीय संतुलन के लिये ‘उच्च उत्पाद शुल्क’ की आवश्यकता है।
  • वर्तमान सरकार ने भी ₹3.1 लाख करोड़ के पुनर्पूंजीकरण बॉण्ड (Recapitalisation Bonds) जारी करके सार्वजनिक बैंकों और अन्य संस्थानों में पूँजी लगाने के लिये इसी तरह की रणनीति का प्रयोग किया है, जो वर्ष 2028 और 2035 के मध्य में ऋण-भुगतान के योग्य होगा।

        सरकार का पक्ष

        • वित्त मंत्री का कहना है कि वर्तमान सरकार वर्ष 2012-13 में यू.पी.ए. सरकार द्वारा की गई तेल की कीमतों में कमी के लिये भुगतान कर रही है।
        • वित्त मंत्री ने कहा कि पिछली सरकार ने ₹1 लाख करोड़ ऑयल बॉण्ड जारी किये थे। विगत सात वित्तीय वर्षों से, सरकार वार्षिक रूप से ₹9,000 करोड़ से अधिक ब्याज का भुगतान कर रही है। यदि बॉण्ड का बोझ नहीं होता, तो सरकार ईंधन पर आरोपित उत्पाद शुल्क कम करने की स्थिति में होती।

        अविनियमन एवं उपभोक्ताओं पर प्रभाव

        • केंद्र सरकार ने क्रमशः वर्ष 2002 से ‘एविएशन टर्बाइन फ्यूल’, वर्ष 2010 से पेट्रोल तथा वर्ष 2014 से डीज़ल की कीमतों को क्रमिक रूप से अविनियमित किया था।
        • इससे पूर्व सरकार डीज़ल या पेट्रोल कीमतों को निर्धारित करने में हस्तक्षेप करती थी। साथ ही, तेल विपणन कंपनियों के घाटे की भरपाई सरकार को ही करनी पड़ती थी।
        • कीमतों को अविनियमित करने का मुख्य उद्देश्य कीमतों को बाज़ार से जोड़ना, सरकार के सब्सिडी बोझ को समाप्त करना तथा वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आने पर उपभोक्ताओं को लाभ प्रदान करना था।
        • हालाँकि, वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों से अंतर्संबंधित होने के पश्चात् भी उपभोक्ताओं को कीमतों में गिरावट का कोई लाभ नहीं हुआ है, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारें अतिरिक्त राजस्व हासिल करने के लिये नए ‘कर और लेवी’ आरोपित कर देती हैं।
        • मूल्य विनियंत्रण (Price Decontrol) अनिवार्यतः इंडियन ऑयल, एच.पी.सी.एल. या बी.पी.सी.एल. जैसे ईंधन खुदरा विक्रेताओं को अपनी ‘लागत एवं मुनाफे’ की गणना के आधार पर कीमतें तय करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। वस्तुतः, मूल्य विनियंत्रण की इस नीति में प्रमुख लाभार्थी सरकार ही है। 

        सरकार द्वारा संग्रहित कर/शुल्क

        • कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों पर आरोपित कर से केंद्र का राजस्व वर्ष 2020-21 में 45.6 प्रतिशत बढ़कर ₹4.18 लाख करोड़ हो गया है।
        • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क वर्ष-दर-वर्ष 74 प्रतिशत बढ़कर वर्ष 2020-21 में ₹3.45 लाख करोड़ हो गया।
        • पेट्रोलियम उत्पादों पर करों में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी वर्ष 2016-17 के ₹2.73 लाख करोड़ से बढ़कर वर्ष 2019-20 में ₹2.87 लाख करोड़ की हो गई है।
        • दूसरी ओर, कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों पर करों में राज्य सरकारों की हिस्सेदारी वर्ष 2020-21 के 1.6 प्रतिशत से घटकर ₹2.17 लाख करोड़ रह गई, जो वर्ष 2019-20 में ₹2.20 लाख करोड़ थी।
        • केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने आर्थिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने वाले ‘कोविड-प्रेरित प्रतिबंधों’ के मद्देनज़र राजस्व बढ़ाने के लिये पेट्रोल और डीज़ल पर शुल्क में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
        • केंद्र सरकार ने मई 2020 में पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क को ₹19.98 प्रति लीटर से बढ़ाकर ₹32.98 प्रति लीटर तथा डीज़ल पर उत्पाद शुल्क को ₹15.83 से बढ़ाकर ₹31.83 कर दिया।
        • वर्ष 2021-22 में पेट्रोल की कीमत 39 बार बढ़ी तथा एक बार घटी है, जबकि डीज़ल की कीमत 36 बार बढ़ी और दो बार घटी है।

        price-decontrol

        ऑयल बॉण्ड का भुगतान

        • विगत सात वर्षों में ऑयल बॉण्ड के ऋणों पर कुल ₹70,195.72 करोड़ के ब्याज का भुगतान किया गया है। ₹1.34 लाख करोड़ के बॉण्ड में से केवल ₹3,500 करोड़ के मूलधन का भुगतान किया गया है, जबकि शेष ₹1.3 लाख करोड़ का भुगतान वित्तीय वर्ष 2025-26 के मध्य तक करना है।
        • सरकार को चालू वित्त वर्ष में ₹10,000 करोड़, वर्ष 2023-24 में ₹31,150 करोड़, वर्ष 2024-25 में ₹52,860 करोड़ तथा वर्ष 2025-26 में ₹36,913 करोड़ का भुगतान करना है।

        सरकार की बैंको से संबंधित बॉण्ड रणनीति

        • अक्तूबर 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि एकमुश्त उपाय के रूप में ‘पुनर्पूंजीकरण बॉण्ड’ जारी किये जाएँगे, ताकि ‘बैड लोन’ से प्रभावित सार्वजनिक बैंकों में इक्विटी को ‘इंजेक्ट’ किया जा सके।
        • इस साधन से राजकोषीय घाटे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि केवल ब्याज भुगतान को घाटे की गणना में शामिल किया जाता है।
        • आरंभ में सरकार ने संकेत दिया था कि कुल ₹1.35 लाख करोड़ के बॉण्ड जारी किये जाएँगे, लेकिन बाद में यह ‘नियमित और सुविधाजनक’ अभ्यास बन गया।
        • बजट दस्तावेजों के अनुसार, सरकार ने अब तक सार्वजनिक बैंकों, एक्ज़िम बैंक, आई.डी.बी.आई. बैंक तथा आई.आई.एफ.सी.एल. को ₹3.1 लाख करोड़ के पुनर्पूंजीकरण बॉण्ड जारी किये हैं।
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