New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 5th Dec., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 5th Dec., 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM

आरक्षण और उच्चतम न्यायालय

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन संविधान, राजनीतिक प्रणाली, लोकनीति, अधिकारों से संबंधित मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 2 : भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना, संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय)

संदर्भ

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय की पाँच जजों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से महाराष्ट्र सरकार द्वारा वर्ष 2018 में पारित किये गए ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) अधिनियम’ को असंवैधानिक करार दिया है। यह अधिनियम मराठा समुदाय के लिये आरक्षण की व्यवस्था करता था।

बॉम्बे उच्च न्यायालय का पूर्व निर्णय

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि राज्य द्वारा प्रदान किया गया 16% कोटा "न्यायसंगत" नहीं है। न्यायालय ने इसे घटाकर शिक्षा में 12% और सार्वजनिक नियुक्तियों में 13% कर दिया था। इसी वर्गीकरण की अनुशंसा ‘महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग’ (MSBCC) द्वारा भी की गई थी।
  • न्यायालय ने यह भी कहा था कि आरक्षण की कुल सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिये। हालाँकि असाधारण परिस्थितियों में प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता और प्रशासनिक दक्षता को प्रभावित किये बिना इस सीमा को बढ़ाया जा सकता है।

उच्चतम न्यायालय का निर्णय

  • उच्चतम न्यायालय ने ‘इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामला,1992’ में दिये गए अपने निर्णय का ज़िक्र करते हुए कहा कि साधारण परिस्थितियों में आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिये तथा महाराष्ट्र में अभी कोई 'असाधारण परिस्थिति' नहीं है। न्यायालय ने कहा कि मराठा समुदाय को दिया गया आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14 21 का उल्लंघन करता है।
  • न्यायालय ने 'गायकवाड़ आयोग' की सिफारिशों तथा बॉम्बे उच्च न्यायालय के निर्णय को रद्द कर दिया और कहा कि जिन छात्रों को मराठा आरक्षण के तहत शिक्षण संस्थानों में प्रवेश मिला है, वह बना रहेगा।
  • इस दौरान न्यायालय ने ‘102वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2018’ के तहत गठित हुए ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ के क्षेत्राधिकार पर भी विचार किया। इसके अलावा, इंदिरा साहनी मामले के निर्णय पर पुनर्विचार करने से मना कर दिया।

महाराष्ट्र में मौजूदा आरक्षण

वर्ष 2001 के ‘राज्य आरक्षण अधिनियम’ के बाद महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 52% हो गया था तथा इस अधिनियम के माध्यम से मराठा समुदाय को दिये गए 12-13% आरक्षण के बाद यह बढ़कर 64-65% हो गया था, लेकिन अब इसे उच्चतम न्यायालय ने असंवैधानिक करार दिया है। केंद्र सरकार द्वारा ‘आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग’ (Economically Weaker Sections – EWS) के लिये घोषित 10% कोटा भी राज्य में प्रभावी है। उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 ‘लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता’ का प्रावधान करता है। संविधान का यही अनुच्छेद सरकारों को आरक्षण संबंधी नीतियाँ बनाने की शक्ति देता है।

'इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ वाद, 1992

'मंडल वाद' के नाम से ज्ञात उच्चतम न्यायालय का आरक्षण संबंधी यह ऐतिहासिक मामला है। इसमें नौ जजों की संवैधानिक पीठ द्वारा दिये गए निर्णय के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं

  • ‘जाति’ पिछड़े वर्ग की एकमात्र पहचान नहीं है क्योंकि पिछड़ी जातियों में सामाजिक-आर्थिक रूप से संपन्न भी मौजूद हैं। अतः पिछड़े वर्ग में 'मलाईदार परत' (Creamy Layer) का सिद्धांत होना चाहिये तब से सरकार, समय-समय पर आर्थिक स्थिति के आधार पर मलाईदार परत का निर्धारण करती रही है।
  • पिछड़े वर्गों को सूचीबद्ध करने व उन्हें आरक्षण की सीमा से बाहर करने के लिये एक सांविधिक संस्था का निर्माण किया जाए।
  • आरक्षण की उच्चतम सीमा 50% निर्धारित की गई और कहा गया कि आरक्षण प्रदान करते समय संविधान के अनुच्छेद 335 के अनुसार सेवाओं में दक्षता’ से समझौता न किया जाए
  • प्रोन्नति में आरक्षण को अस्वीकार करते हुए इसे केवल आरंभिक नियुक्ति में ही उचित माना
  • ‘आर्थिक आधार पर आरक्षण’ दिये जाने को असंवैधानिक माना
  • 'आगे ले जाने के नियम' (Carry forward rule) को स्वीकार किया, परंतु कहा कि इससे आरक्षण की उच्चतम सीमा प्रभावित नहीं होनी चाहिये
  • न्यायालय ने कहा कि कुछ विशेष परिस्थितियों में आरक्षण की अधिकतम सीमा का उल्लंघन स्वीकार किया जा सकता है, परंतु ऐसी स्थिति में राज्य अनिवार्यतः अपना स्पष्टीकरण देगा।

इंदिरा साहनी मामले का प्रभाव

  • आरक्षण की अधिकतम सीमा का उल्लंघन कर तमिलनाडु सरकार ने इसे 69% कर दिया था तथा केंद्र सरकार ने इसे न्यायिक पुनर्विलोकन से बचाने के लिये 76वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1994 पारित कर नौवीं अनुसूची में डाल दिया।
  • न्यायालय के ‘प्रोन्नति में आरक्षण न देने’ के फैसले को समाप्त करने के लिये सरकार ने 77वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1995 पारित कर संविधान में अनुच्छेद 16(4) अंतःस्थापित किया था तथा अनुच्छेद 16(4)(क) के माध्यम से अनुसूचित जातियों जनजातियों को प्रोन्नति में आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था
  • ‘आगे ले जाने के नियम’ (Carry forward rule) की व्यवस्था को समाप्त करने के लिये केंद्र ने ‘81वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2000’ पारित कर अनुच्छेद 16(4)(ख) अंतःस्थापित किया और इसमें प्रावधान किया कि पूर्व वर्ष की रिक्तियों को भरने के लिये उन्हें 50% आरक्षण की सीमा में शामिल नहीं माना जाएगा।
  • आगे ‘82वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2000’ के माध्यम से अनुच्छेद 335 में एक और प्रावधान किया गया कि ‘योग्यता के लिये अंक घटाने तथा एस.सी. व एस.टी. के सदस्यों को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिये शिथिल मूल्यांकन करने से राज्य को नहीं रोका जाएगा।’
  • सरकार ने 'वीरपाल सिंह चौहान वाद' के फैसले को रद्द करने के लिये ‘85वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2001’ पारित किया। इसके माध्यम से अनुच्छेद 16(4)(क) की भाषा में संशोधन करके लिखा गया कि एस.सी व एस.टी. को प्रोन्नति में आरक्षण के साथ वरिष्ठता का लाभ भी दिया जाएगा। इसे 'परिणामिक वरिष्ठता का सिद्धांत' (Theory of Consequential Seniority) कहा जाता है।
  • वर्ष 2007 के 'एम. नागराज मामले’ में 77वें, 81वें, 82वें तथा 85वें संविधान संशोधन अधिनियमों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई। न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रोन्नति में दिया जाने वाला आरक्षण वैध है तथा प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिये तीन शर्तें पूर्ण करना अनिवार्य होगा, जिसमें
  1. एस.सी. व एस.टी. के पिछड़ेपन के आँकड़े प्रदर्शित करने होंगे।
  2. एस.सी. व एस.टी. का सार्वजनिक रोजगार में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व सिद्ध करना होगा।
  • प्रोन्नति में आरक्षण दिये जाने के आधारों से न्यायालय को अवगत कराना होगा।
  • ‘102वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2018’ के माध्यम से संविधान में अनुच्छेद 338(ख) तथा 342(क) जोड़े गए। इनमें अनुच्छेद 338(ख) में कहा गया कि सामाजिक तथा शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिये ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ (NCBC) होगा। जबकि अनुच्छेद 342(क) में कहा गया कि राष्ट्रपति को किसी राज्य में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदायों को निर्दिष्ट करने का अधिकार होगा
  • ‘103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019के माध्यम से अनुच्छेद 15 तथा अनुच्छेद 16 में नए प्रावधान जोड़े गए तथा अनारक्षित श्रेणी में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग’ (EWS) को 10% आरक्षण प्रदान किया गया। ध्यातव्य है कि यह 10% आरक्षण दिये जाने के बाद कुल आरक्षण 50% की सीमा को पार कर गया है।

स्थानीय लोगों के लिये कोटा प्रणाली पर उच्चतम न्यायालय का फैसला

  • ‘डी.पी. जोशी बनाम मध्य भारत मामला, 1955’ में उच्चतम न्यायालय ने अधिवास (निवास स्थान) तथा जन्म स्थान में अंतर स्पष्ट करते हुए कहा था कि व्यक्ति का निवास स्थान बदलता रहता है, लेकिन उसका जन्म स्थान निश्चित होता है।
  • पूर्व में उच्चतम न्यायालय जन्म स्थान या निवास स्थान के आधार पर आरक्षण दिये जाने को असंवैधानिक घोषित कर चुका है। ‘डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ मामला, 1984’ में न्यायालय ने प्रथम दृष्टया ‘सन ऑफ द सॉइल’ (Son of the Soil) की नीति असंवैधानिक करार दे थी, लेकिन इस पर कोई स्पष्ट निर्णय नहीं दिया था।
  • ‘सुनंदा रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामला, 1995’ में उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार की वर्ष 1984 की उस नीति को रद्द कर दिया था, जिसमें उम्मीदवारों को 5% अतिरिक्त भारांक दिये जाने का प्रावधान किया गया था।
  • वर्ष 2002 में, उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान में सरकारी शिक्षकों की नियुक्ति को अमान्य घोषित किया था, जिसमें राज्य चयन बोर्ड द्वारा "संबंधित ज़िले या ज़िले के ग्रामीण क्षेत्रों के आवेदकों" को वरीयता दी गई थी।
  • वर्ष 2019 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की एक भर्ती अधिसूचना को अमान्य घोषित किया था, जिसमें उत्तर प्रदेश की मूल निवासी महिलाओं को प्राथमिकता दी गई थी।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR