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रिवर्स रेपो रेट : नई बेंचमार्क ब्याज दर

(प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक विकास एवं राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-3: भारतीय अर्थव्यवस्था एवं बैंकिंग)

पृष्ठभूमि

आर्थिक सुस्ती से निपटने व अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक ने ब्याज दरों में कटौती की है। पूर्व के विपरीत, अब रिवर्स रेपो रेट प्रभावी रूप से बेंचमार्क दर का निर्धारण कर रही है।

वर्तमान आर्थिक परिदृश्य

  • विगत कुछ वर्षों से भारत की आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की गई है, जिसके लिये कई कारक उत्तरदायी है; परंतु उपभोक्ता माँग में कमी प्रमुख कारकों में से एक है।
  • ऐसी स्थिति में निवेशक नए निवेश में सावधानी बरत रहे हैं, परिणामस्वरूप बैंकों से ऋण लेने की दर (Lending) में कमी आई है। इसके अलावा, बैंकिंग क्षेत्र में गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets-NPAs) का बढ़ता स्तर भी एक प्रमुख कारक है, जिसके चलते बैंक उधार देने में उच्च जोखिम का अनुभव करते हैं।
  • इन सभी परिस्थितियों के मद्देनज़र बैंकों द्वारा रिज़र्व बैंक से नए फंड की माँग में कमी आई है। साथ ही, कोविड-19 तथा उसके चलते जारी लॉकडाउन के कारण स्थिति और भी बिगड़ गई है।
  • प्रभावी रूप से, बैंकिंग प्रणाली में दो महत्त्वपूर्ण कारणों से तरलता विद्यमान है। पहला, आर.बी.आई. द्वारा ब्याज दरों तथा नकद आरक्षित अनुपात (CRR) जैसी अन्य नीतिगत दरों में कटौती करना, जिससे अतिरिक्त धनराशि को बैंकिंग प्रणाली में लाया जा सके; दूसरा, बैंक द्वारा विभिन्न कारणों से व्यवसायों को ऋण उपलब्ध नहीं कराया जाना।

क्या है सामान्य बेंचमार्क दर?

  • 'रेपो रेट' वह दर है, जिस पर रिज़र्व बैंक लघु अवधि के लिये वाणिज्यिक बैंकों को उधार देता है। इसके विपरीत, 'रिवर्स रेपो रेट' वह दर है, जिस पर बैंक अपने अतिरिक्त धन को आर.बी.आई. के पास जमा कराते हैं।
  • सामान्य परिस्थितियों में, अर्थव्यवस्था में रेपो रेट बेंचमार्क ब्याज दर होती है, क्योंकि यह ब्याज की निम्नतम दर है, जिस पर धन उधार लिया जा सकता है। इस कारण से, अर्थव्यवस्था में यह दर सभी अन्य ब्याज दरों के लिये प्राथमिक स्तर प्रदान करती है। अतः आर.बी.आई. सामान्य तौर पर ब्याज दरों में परिवर्तन हेतु मुख्य साधन के रूप में रेपो रेट का उपयोग करता है।

वर्तमान में रिवर्स रेपो रेट की महत्ता

  • वाणिज्यिक बैंकों द्वारा व्यवसायों को प्राथमिक स्तर पर ऋण मुहैया कराने के दो स्रोत है। एक, बैंकों में सामान्य व्यक्तियों द्वारा बचत के रूप में जमा की गई धनराशि; दूसरा, 'रेपो रेट'।
  • बैंकिंग प्रणाली में इस समय पर्याप्त मात्रा में तरलता है। इसका तात्पर्य है, बैंक मार्च व अप्रैल के प्रथम 15 दिनों में रेपो (उधार) की जगह केवल रिवर्स रेपो (रिज़र्व बैंक के पास जमा फंड) का उपयोग कर रहे हैं। 15 अप्रैल, 2020 तक रिज़र्व बैंक के पास बैंकों की लगभग 7 लाख करोड़ रुपए धनराशि जमा है।
  • दूसरे शब्दों में, रिवर्स रेपो रेट अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक प्रभावशाली दर बन गई है। ऐसी स्थिति को पहचानकर तथा वर्तमान आर्थिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट की तुलना में रिवर्स रेपो रेट में अधिक कटौती की है।

आर.बी.आई. के तर्क

  • आर.बी.आई. के अनुसार, बैंक अपने पास जमा धन का प्रयोग उधार देने के लिये नहीं कर रहे हैं। इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है। साथ ही, जिन व्यवसायों को वास्तव में धन की आवश्यकता है, उन्हें भी उधार नहीं मिल पा रहा है।
  • रिवर्स रेपो रेट में अधिक कटौती करने से बैंकों को अपनी धनराशि को आर.बी.आई. के पास जमा करने की अपेक्षा उधार देना अधिक आकर्षक प्रतीत होगा।

अर्थव्यवस्था को होने वाले लाभ

  • अर्थव्यवस्था का विकास बैंकों के पास धनराशि की उपलब्धता की अपेक्षा देश में उपभोक्ता मांग में तेज़ी पर निर्भर करता है। यदि कोविड-19 के कारण लम्बे समय तक व्यवधान जारी रहता है, तो उपभोक्ता माँग में तेज़ी की सम्भावना कम ही है। इस कारण, निवेशक व्यवसायिक गतिविधियों में नए निवेश करने तथा उधार लेने से बचेंगे। ऐसी स्थिति में पहले से कमज़ोर उपभोक्ता माँग में और गिरावट आ सकती है।
  • दूसरी ओर, बैंकों को भी आश्वस्त रहना होगा कि उनके द्वारा दिये जा रहे नए लोन एन.पी.ए. में न बदल जाएँ। अतः रिवर्स रेपो रेट में कटौती तभी परिणामदायक होगी, जब उपभोक्ता माँग में पुनः तेज़ी आए। साथ ही, बैंकों का आर्थिक सम्भावनाओं के बारे में आश्वस्त होना भी महत्त्वपूर्ण है।

क्या हो आगे की राह?

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (MSMEs) को दिये गए लोन के लिये बैंकों को क्रेडिट गारंटी की पेशकश भी की जा सकती है। सरकार ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों को ऋण देने के उद्देश्य से बैंकों को प्रोत्साहित करने के लिये ऐसा किया है। यदि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के साथ भी ऐसा किया जाता है, तो अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार के साथ-साथ रोज़गार की स्थिति में भी सुधार होगा। उल्लेखनीय है कि एम.एस.एम.ई. क्षेत्र कोविड-19 से सर्वाधिक प्रभावित हुआ है।

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