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शिक्षा का अधिकार और अल्पसंख्यक विद्यालय

(प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र 2: शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।)

संदर्भ

  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (NCPCR) ने अल्पसंख्यक विद्यालयों के मूल्यांकन से संबंधित रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट का शीर्षकअनुच्छेद 21 के संबंध में अनुच्छेद 15 (5) के तहत छूट का अल्पसंख्यक समुदायों में बच्चों की शिक्षा पर प्रभावहै।
  • गौरतलब है कि अल्पसंख्यक विद्यालयों कोशिक्षा का अधिकार’ (RTE) नीति को लागू करने से छूट प्रदान की गई है तथा वे सरकार केसर्व शिक्षा अभियान’ (SSA) के अंतर्गत भी नहीं आते हैं। 
  • इस रिपोर्ट के माध्यम से एन.सी.पी.सी.आर. ने सिफारिश की है कि इन विद्यालयों को अन्य सिफारिशों के साथ-साथ आर.टी.. और एस.एस.. दोनों के तहत लाया जाए।

ल्पसंख्यक विद्यालयों को आर.टी.ई. और एस.एस.ए. से छूट

  • 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के तहत ‘शिक्षा के अधिकार’ को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान की गई थी।
  • उक्त संशोधन के तहत अनुच्छेद 21क को शामिल किया गया, जिसने आर.टी.ई. को ‘6 से 14 वर्ष’ के बच्चों के लिये मौलिक अधिकार बनाया।
  • इस संशोधन के उपरांत ‘सर्व शिक्षा अभियान’ (SSA) की शुरुआत हुई, जो राज्य सरकारों के साथ साझेदारी में क्रियान्वित केंद्र सरकार की योजना है।
  • इस  योजना का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को ‘उपयोगी और प्रासंगिक, प्रारंभिक शिक्षा’ प्रदान करना है।
  • 93वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2006 के तहत अनुच्छेद 15 में उपखंड (5) सम्मिलित किया गया, जिसने राज्य द्वारा सहायता प्राप्त या गैर-सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों में ‘अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को छोड़कर’ अन्य पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के लिये आरक्षण जैसे विशेष प्रावधान करने के लिये सक्षम बनाया।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009

  • सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 अधिनियमित किया, जो सभी के लिये समावेशी शिक्षा पर केंद्रित है। इसके अंतर्गत विद्यालयों में वंचित बच्चों को शामिल करना अनिवार्य हो गया है।
  • विशेषतः उक्त अधिनियम की धारा 12 (1) (सी) में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों तथा वंचित समूहों के बच्चों के प्रवेश के लिये ‘गैर-सहायता प्राप्त विद्यालयों’ में 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।
  • इन अधिनियमों के विपरीत,  अनुच्छेद 30 में अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार है, ताकि विभिन्न ‘धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक समुदायों’ के बच्चों को अपनी ‘संस्कृति, लिपि और भाषा’ को बनाए रखने और संरक्षित करने के अवसर प्रदान किये जा सकें।
  • वर्ष 2012 में एक संशोधन के माध्यम से धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों को आर.टी.ई. अधिनियम का पालन करने से छूट प्रदान की गई।
  • वर्ष 2014 में अनुच्छेद 15 (5) के तहत छूट की वैधता पर चर्चा करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अधिनियम को अल्पसंख्यकों के अधिकार को स्थापित करने और प्रशासित करने के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।

आयोग के अध्ययन के कारण 

  • आयोग का उद्देश्य अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर गैर-अल्पसंख्यक संस्थानों के लिये अनिवार्य दिशा-निर्देशों से छूट के प्रभाव का आकलन करना था।
  • आयोग का विचार है कि नियमों के दो अलग-अलग सेट - अनुच्छेद 21क, जो सभी बच्चों को शिक्षा के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है, अनुच्छेद 30, जो अल्पसंख्यकों को अपने स्वयं के नियमों के साथ अपने संस्थान स्थापित करने की अनुमति देता है तथा अनुच्छेद 15 (5) जो अल्पसंख्यक विद्यालयों को आर.टी.ई. से छूट देता है - बच्चों के मौलिक अधिकार और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकार के मध्य एक परस्पर विरोधी तस्वीर बना रहा है।

आयोग की रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • आयोग ने अध्ययन में पाया है कि कई बच्चे जो इन संस्थानों या विद्यालयों में नामांकित हैं, वे उन अधिकारों को प्राप्त करने में सक्षम नहीं थे, जो अन्य बच्चे प्राप्त कर रहे हैं, क्योंकि जिस संस्थान में वे पढ़ रहे हैं वे छूट प्राप्त हैं।
  • आयोग ने कहा है कि छूट के कुछ हानिकारक प्रभाव हैं - एक तरफ ज़्यादातर ईसाई मिशनरी स्कूल हैं, जो केवल एक निश्चित वर्ग के छात्रों को प्रवेश दे रहे हैं और वंचित बच्चों को सिस्टम से बाहर कर रहे हैं, इस प्रकार यह ‘कुलीनों’ का विद्यालय बन गया है।
  • इसके विपरीत, अन्य प्रकार के अल्पसंख्यक विद्यालय विशेषतः मदरसे, ‘पिछड़ेपन में पीड़ित वंचित छात्रों की बस्ती’ बन गए हैं।
  • आयोग ने कहा है कि मदरसों में जो छात्र धार्मिक अध्ययन के साथ-साथ विज्ञान जैसे पंथनिरपेक्ष पाठ्यक्रम की शिक्षा प्राप्त नहीं करते हैं, वे पिछड़ गए हैं तथा वे विद्यालय छोड़ने के पश्चात् ‘अलगाव और हीन भावना’ से ग्रस्त  हो जाते हैं।
  • रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि कुल छात्रों में से केवल 4.18 प्रतिशत को ही स्कूल से मुफ्त ड्रेस, पुस्तकें, छात्रवृत्ति आदि लाभ मिले हैं।
  • बच्चों को ‘निःशुल्क और अनिवार्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा’ सुनिश्चित करने के लिये आर.टी.ई. अधिनियम, 2009  न्यूनतम बुनियादी ढाँचे, शिक्षकों की संख्या, पुस्तकें, ड्रेस, मध्याह्न भोजन आदि से संबंधित मानदंड प्रदान करता है, जो अल्पसंख्यक विद्यालयों में छात्रों को प्राप्त नहीं हो रहे हैं।
  • आयोग के अनुसार, परामर्श के दौरान अल्पसंख्यक छात्रों और उनके माता-पिता सहित समुदाय द्वारा उठाई गई माँगों में मदरसों में आर.टी.ई. अधिनियम तथा एस.एस.ए. दोनों का विस्तार करना शामिल है, ताकि छात्रों को मुफ्त मध्याह्न भोजन, पाठ्य पुस्तकें, ड्रेस जैसी मूलभूत सुविधाओं का लाभ मिल सके।
  • आयोग ने 93वें संशोधन के पश्चात् अल्पसंख्यक दर्जा प्रमाणपत्र के लिये आवेदन करने वाले विद्यालयों की संख्या में भी वृद्धि देखी है, जिसमें कुल विद्यालयों के 85 प्रतिशत से अधिक ने वर्ष 2005-2009 और बाद में प्रमाण पत्र हासिल किया है।
  • आयोग का मानना ​​है कि ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि स्कूल पिछड़े वर्गों के लिये सीटें आरक्षित करने के कानूनी आदेश से बाहर रहना चाहते थे।
  • ‘प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चर बनाम भारत संघ, 2014’ के निर्णय के पश्चात्  आर.टी.ई. अधिनियम अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होता है।

अल्पसंख्यक विद्यालयों का अनुपात

  • आयोग ने देश में ईसाई मिशनरी विद्यालयों की संख्या ईसाइयों की आबादी के साथ-साथ अन्य अल्पसंख्यक समूहों द्वारा चलाए जा रहे विद्यालयों की संख्या के अनुपात में बहुत अधिक पाया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार ईसाई अल्पसंख्यक आबादी में 11.54 प्रतिशत हैं, लेकिन वे 72 प्रतिशत विद्यालय चलाते हैं।
  • मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी का 69.18 प्रतिशत हैं, लेकिन वे 22.75 प्रतिशत विद्यालय चलाते हैं।
  • सिख अल्पसंख्यक आबादी का 9.78 प्रतिशत है और वे 1.54 प्रतिशत विद्यालय चलाते हैं।
  • बौद्ध अल्पसंख्यक आबादी का 3.83 प्रतिशत है और वे 0.48 प्रतिशत विद्यालय चलाते हैं।
  • अंततः जैन अल्पसंख्यक आबादी का 1.9 प्रतिशत हैं और वे 1.56 प्रतिशत विद्यालय चलाते हैं।
  • यह भी ज्ञात हुआ है कि ईसाई मिशनरी विद्यालय में पढ़ने वाले 74 प्रतिशत छात्र गैर-अल्पसंख्यक हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि अल्पसंख्यक समुदायों के विद्यालयों में 62.50 प्रतिशत छात्र गैर-अल्पसंख्यक समुदायों के हैं।
  • इसके अतिरिक्त, अल्पसंख्यक विद्यालयों में कुल छात्रों में से केवल 8.76 प्रतिशत ही सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के हैं।
  • आयोग ने कहा है कि राज्य सरकारों को अल्पसंख्यक छात्रों के न्यूनतम प्रतिशत पर सख्त दिशा-निर्देश जारी करने की आवश्यकता है।
  • साथ ही, साथ रहने वाली आबादी के आकार के संबंध में एक विशेष अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा चलाए जा रहे विद्यालयों के अनुपात पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
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