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कार्य का अधिकार : समय की माँग

(प्रारम्भिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान राजनीतिक प्रणाली, लोकनीति, अधिकारों सम्बंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र– 2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ

वर्तमान में विश्व की लगभग सभी अर्थव्यवस्थाएँ महामारी और तालाबंदी की दोहरी मार का सामना कर रही हैं। भारत में बेरोज़गारी में निरंतर वृद्धि हो रही है तथा नौकरियों का वादा और बेरोज़गारी की राजनीति का मुद्दा यहाँ लम्बे समय से बना हुआ है। महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या कोई नागरिक कार्य की माँग एक अधिकार के रूप में कर सकता है और क्या राज्य की ज़िम्मेदारी है कि वह आवश्यक रूप से रोज़गार प्रदान करे?

कार्य का अधिकार

कार्य के अधिकार शब्द का प्रयोग बिना किसी बाधा के आजीविका कमाने के अधिकार के संदर्भ में किया जाता है। कार्य के अधिकार की माँग अक्सर बेरोज़गारी या काम की अनुपलब्धता के चलते की जाती है।

कार्य के अधिकार की कानूनी स्थिति

  • द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात से ही कार्य का अधिकार महत्त्वपूर्ण चर्चा का विषय रहा है। मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों से सम्बंधित प्रसंविदा में भी कार्य के अधिकार को शामिल किया गया है।
  • भारत में कार्य के अधिकार को संवैधानिक मान्यता नहीं प्राप्त है परंतु मनरेगा इस दिशा में पहला महत्त्वपूर्ण कदम है। इसके तहत कार्य के अधिकार को वैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। इस योजना के अंतर्गत एक व्यक्ति काम न मिलने के आधार पर सरकार से बेरोज़गारी भत्ते की माँग कर सकता है।
  • हालाँकि अगर इस कानून में संशोधन किया जाता है या इसे वापस ले लिया जाता है तो यह अधिकार भी समाप्त हो जाएगा।

भारत में कार्य के अधिकार के कार्यान्वयन की स्थिति

  • भारत में जी.डी.पी. के अनुपात में नौकरियों में कमी देखी गई है तथा विशेष रूप से रोज़गार विहीन संवृद्धि (जॉबलेस ग्रोथ) में बढ़ोतरी हुई है। साथ ही श्रमिकों तथा कर्मचारियों को सख्त औद्योगिक कानूनों का सामना करना पड़ता है।
  • पिछले कुछ दशकों में भारत में रोज़गार तथा आजीविका के साधनों में कमी तथा रोज़गार के अन्य क्षेत्रों में विस्थापन देखा गया है। नई नौकरियाँ पैदा करने की विफलता ने रचनात्मक तरीके से कार्य करने के अधिकार की संकल्पना को कानूनी रूप से लागू करने हेतु महत्त्वपूर्ण बना दिया है।
  • भारत में सुरक्षात्मक श्रम कानून मौजूद हैं लेकिन वे अधिकांश रूप से केवल सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों को ही संरक्षित करने तक सीमित हैं। श्रमिकों के कानूनी संरक्षण की ख़राब स्थिति का मुख्य कारण श्रम कानूनों का कमज़ोर कार्यान्वयन तथा श्रमिकों में जागरूकता का अभाव है।

सुझाव

  • कार्य के अधिकार हेतु विकेंद्रीकृत शहरी रोज़गार तथा प्रशिक्षण (Decentralised Urban Employment and Training– DUET) एप्रोच को मनरेगा के साथ रोज़गार के नए अवसरों का सृजन करने के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
  • विकेंद्रीकृत शहरी रोज़गार तथा प्रशिक्षण के अंतर्गत शहरी स्थानीय निकायों द्वारा पूर्व अनुमोदित कार्यों के लिये (सरकारी संस्थानों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों की पेंटिंग, साफ-सफाई, इमारतों की मरम्मत तथा फर्नीचर आदि के निर्माण हेतु) रोज़गार के वाउचर जारी किये जा सकते हैं।
  • सम्मानजनक जीवन के लिये एक बेहतर रोज़गार का होना आवश्यक है। कार्य की बेहतर दशाएँ, कार्य के निश्चित घंटे तथा समय पर वेतन भुगतान के सम्बंध में स्पष्ट प्रावधान तथा उनका कार्यान्वयन होना चाहिये। साथ ही विवाद की स्थिति में एक विश्वसनीय निवारण तंत्र का होना आवश्यक है।
  • कार्य के अधिकार का न होना रोज़गार की अनुपलब्धता के साथ-साथ सार्वजानिक सम्पत्तियों तथा संसाधनों की गहन कमी को भी दर्शाता है। मनरेगा के तहत भी परिसम्पत्ति निर्माण की दिशा में संतोषजनक कदम नहीं उठाए गए हैं। मनरेगा को शहरी रोज़गार गारंटी के साथ समन्वय स्थापित करने के अलावा पूँजीगत निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • इस सम्बंध में थाईलैंड का उदाहरण स्मरणीय है जहाँ श्रम-गहन सार्वभौमिक बुनयादी स्वास्थ्य प्रणाली है। इससे एक ही समय में दो समस्याओं (सामाजिक बुनयादी ढाँचे का निर्माण तथा रोज़गार सृजन) को हल किया जा सकता है।
  • कार्य का अधिकार वास्तव में एक गम्भीर विचारणीय मुद्दा है लेकिन इसे व्यावहारिक रूप में लागू करने हेतु न केवल राजनीतिक इच्क्षाशक्ति की, बल्कि राजकोषीय संसाधनों की भी आवश्यकता है।

निष्कर्ष

विदित हो कि भारत की जी.डी.पी. उन देशों की तुलना में कम है जो सार्वजानिक सुविधाओं पर भारी खर्च कर रोज़गार सृजन करते हैं। भारत श्रम सुधार तथा रोज़गार सृजन की दिशा में निरंतर प्रयासरत है। हाल ही में भारत सरकार ने 44 श्रम कानूनों को 4 सहिंताओं में परिवर्तित कर बहुप्रतीक्षित श्रम सुधार की दिशा में ऐतिहासिक तथा सराहनीय कार्य किया है।

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