New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि निश्चित 

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदुषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

‘जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आई.पी.सी.सी.) द्वारा अगस्त 2021 में अपनी नवीन रिपोर्ट जारी की गई है। ‘क्लाइमेट चेंज 2021: द फिज़िकल साइंस बेसिस’ नामक इस रिपोर्ट को लगभग 200 से अधिक जलवायु विशेषज्ञों के शोध-पत्रों के आधार पर तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट में नवीन तथ्यों के आधार पर जलवायु परिवर्तन पर चिंता व्यक्त की गई है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में तत्काल बड़ी मात्रा में कटौती नहीं की गई तो इस सदी के मध्य तक वैश्विक तापन में लगभग 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है।
  • इसके अनुसार, औसत वैश्विक तापमान पहले से ही पूर्व-औद्योगिक तापमान स्तर से 1.09 डिग्री सेल्सियस अधिक है।
  • वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता वर्ष 1850 के 285 पी.पी.एम. (Parts Per Million) से बढ़कर वर्तमान में 410 पी.पी.एम. हो गई है।

जल स्तर में वृद्धि

  • एक अनुमान के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि न होने के बावजूद समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि होगी। इसका प्रमुख कारण महासागरों की वैश्विक तापन के प्रति प्रतिक्रिया का धीमे होना है।
  • विश्व में लगभग 700 मिलियन लोग तटों के किनारे रहते हैं। जनसंख्या में हो रही वृद्धि के मद्देनर तटीय शहरों के और अधिक विस्तार की संभावना है। अतः 21वीं एवं 22वीं शताब्दी में समुद्र के जल-स्तर में होने वाली संभावित वृद्धि को रोकना अत्यावश्यक है।
  • समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि मुख्यतः वैश्विक तापन की वजह से हिमनदों के पिघलने से होती है। अंटार्कटिका एवं ग्रीनलैंड में हिमनदों का पिघलना इसका प्रमुख उदाहरण है।
  • वर्ष 1901 से 2018 के मध्य औसत वैश्विक समद्र जल-स्तर में 0.2 मी० की वृद्धि हुई है। वर्ष 1901 से 1971 तक की अवधि में समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि की औसत दर 1.3 मिमी./ वर्ष थी। यह वर्ष 2006 से 2018 की अवधि में बढ़कर 3.7 मिमी. प्रतिवर्ष हो गई है।   
  • वैश्विक उत्सर्जन पर नियंत्रण की स्थिति में भी औसत वैश्विक समुद्र जल-स्तर में वर्ष 2050 तक 0.19 मी. एवं वर्ष 2100 तक 0.44 मी. वृद्धि की संभावना है।
  • यदि वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि होती है तो औसत वैश्विक समुद्र जल-स्तर में वर्ष 2050 तक 0.23 मी० एवं 2100 तक 0 .77 मी० की वृद्धि का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि का यह अनुमान वर्ष 1995 से 2014 की समयावधि में हुई वृद्धि के सापेक्ष है।

जल-स्तर की वृद्धि में अनिश्चितता

  • वैश्विक तापन के परिणामस्वरूप जल के गर्म होने से बर्फ की चट्टानें तेज़ी से अस्थिर हो सकती हैं। इस प्रक्रिया में ये चट्टानें तेज़ी से पिघल सकती हैं। इससे समुद्र के जल-स्तर में तीव्र वृद्धि होती है। इसे ‘समुद्री बर्फ चट्टान अस्थिरता’ (MICI) कहा जाता है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट के अनुसार, विश्व इस सदी में 3 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रहा है। य पेरिस समझौते में किये गए आकलन से दो गुना है।
  • तापमान में 3 डिग्री या अधिक की बढ़ोतरी होने पर समुद्र तल में होने वाली वृद्धि के संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है।

भारत पर प्रभाव

भारत के तटीय क्षेत्रों में निवास करने वाली आबादी पहले से ही समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि एवं चक्रवात जैसे संकटों का सामना कर रही है। साथ ही, आई.पी.सी.सी. की इस रिपोर्ट में इन संकटों की तीव्रता एवं बारंबारता में और अधिक वृद्धि होने की संभावना व्यक्त की गई है। इससे वर्षा एवं बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि होगी।

आगे की राह

  • समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि के अनुकूलन में तटीय विनियमन के साथ कई सख्त उपायों को शामिल किया जाना चाहिये।
  • मौसम संबंधी गंभीर घटनाओं के दौरान तटीय समुदायों को पहले से सतर्क किया जाना चाहिये तथा उनके संरक्षण एवं पुनर्वास के लिये भी प्रयास किये जाने चाहिये।
  • संवेदनशील क्षेत्रों की रक्षा के लिये प्राकृतिक एवं अन्य बाधाओं पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिये।
  • निचले इलाकों के संदर्भ में अनुकूल रणनीतियाँ बनाते हुए तट से पीछे हटने को भी एक विकल्प के तौर पर प्रयोग किया जाना चाहिये।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR