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भारतीय दंड संहिता की धारा 309 – व्यवहार्यता

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 : विषय : भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

विगत वर्ष जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र के देशों में से भारत में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है।

1. भारत में आत्महत्या की दर 16.5 व्यक्ति प्रति 100,000 है।
2. भारत में दुनिया की तीसरी सबसे ज़्यादा महिला आत्महत्या दर (14.7) थी।

यद्यपि भारत में वर्ष 2017 में आत्महत्या को गैर आपराधिक घोषित कर दिया गया था, लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 309 अभी भी बनी हुई है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 309 :

  • जब कोई भी व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है तो उस पर धारा 309 लगती है।
  • 19 वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा लाए गए इस कानून में मुख्यतः उस समय की सोच को दर्शाया गया था, जब हत्या या खुद को मारने का प्रयास राज्य तथा धर्म के खिलाफ अपराध माना जाता था।

क्या धारा 309 को निरस्त कर दिया गया है?

  • नहीं, यह धारा भारतीय दंड संहिता में अभी भी बनी हुई है।
  • यद्यपिद मेंटल हेल्थकेयर एक्ट (MHCA), 2017, जो जुलाई 2018 में लागू हुआ, ने धारा 309 के उपयोग की गुंजाइश को काफी कम कर दिया है और आत्महत्या को केवल एक अपवाद के रूप में दंडनीय बनाने का प्रयास किया है।

1. एम.एच.सी.ए. की धारा 115 (1) कहती है: “भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत किसी व्यक्ति को ज़िम्मेदार तभी माना जाएगा यदि यह स्पष्ट हो जाता है कि वह मानसिक दबाव या तनाव में नहीं था।”

सरकार की भूमिका और ज़िम्मेदारी:

धारा 115 (2) में कहा गया है कि "यह सरकार का कर्तव्य होगा कि वह उस व्यक्ति को उचित x`देखभाल, उपचार और पुनर्वास प्रदान करे, जो गम्भीर तनाव से गुज़र रहा हो और जिसने आत्महत्या करने का प्रयास किया हो।"

धारा से सम्बंधित चिंताएँ और मुद्दे:

  • इस धारा की वजह से अक्स रव्यक्ति को अंतिम समय में, जब सबसे ज़्यादा देखभाल की आवश्यकता होती है, वांछित इलाज नहीं मिल पाता क्योंकि डॉक्टर इसे मेडिको-लीगल केस कह कर पहले पुलिस के स्पष्टीकरण की माँग करते हैं।
  • यह भी सम्भव है कि अस्पताल के भ्रष्ट अधिकारी इस स्थिति का दुरुपयोग कर सकते हैं और पुलिस को सूचित न करके मामले को "बंद" करने के लिये अतिरिक्त शुल्क ले सकते हैं; भ्रष्ट पुलिस कर्मियों के द्वारा भी इसी तरह की जबरन वसूली सम्भव है।
  • यह सब उस आघात और उत्पीड़न के अतिरिक्त है,जिससे पहले से ही कोई व्यक्ति गम्भीर रूप से व्यथित चल रहा होता है।

धारा 309 के पक्ष में तर्क:

  • ऐसे मौके आते हैं जब लोग सरकारी दफ्तरों में अपनी मांगें पूरी न होने पर जान देने की धमकी देते हैं। इन मामलों में पुलिस को अक्सर संदेह रहता है कि व्यक्ति का आत्महत्या करने का इरादा नहीं है, लेकिन इस धमकी का इस्तेमाल गलत तरीके से दबाव बनाने या सिस्टम को ब्लैकमेल करने के लिये कर रहा है। ऐसे उदाहरणों में इस धारा का उपयोग करना ज़रूरी हो जाता है।
  • यदि धारा 309 निरस्त की जाती है, तो इस तरह की परेशानी पैदा करने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई घोषित प्रावधान नहीं होगा।

उच्चतम न्यायालय और विधिआयोग के विचार:

  • वर्ष 1996 में 'ज्ञान कौर बनाम पंजाब राज्य' वाद में उच्चतम न्यायालय की एक संवैधानिक पीठ ने धारा 309 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।
  • वर्ष1971 में, विधि आयोग ने अपनी 42 वीं रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को निरस्त करने की सिफारिश की थी। भारतीय दंड संहिता(संशोधन) विधेयक, 1978 को राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया था, लेकिन इससे पहले कि यह लोकसभा द्वारा पारित किया जाता संसद भंग हो गई, और विधेयक स्वतः निरस्त हो गया।
  • 2008 में, विधि आयोग ने अपनी 210 वीं रिपोर्ट में कहा कि आत्महत्या के प्रयास के लिये मनोरोगों से जुड़ी चिकित्सा और देखभाल की ज़रूरत है, न कि सज़ा की।
  • मार्च 2011 में, उच्चतम न्यायालय ने भी संसद से धारा 309 को हटाने की व्यवहार्यता पर विचारकरने की सिफ़ारिश की।

निष्कर्ष:

भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को इस तरह से पुनः परिभाषित किया जा सकता है जहाँ इससे कानून की सहायता भी हो सके और जो लोगवास्तविक मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों से जूझ रहे हैं, उन लोगों के खिलाफ भीइस्तेमाल न हो।

प्रसिद्ध समाजशास्त्री एमिल दुर्खीम ने कहा था कि'आत्महत्याएं केवल मनोवैज्ञानिक या भावनात्मक वजहों से नहीं होतीं बल्कि सामाजिक कारणों से भी होती हैं।'

अतः सरकार एवं न्यायालयों द्वारा आत्महत्या से जुड़े सभी पक्षों को ध्यान में रखकर धारा 309 के तार्किक विनियमन की आवश्यकता है।

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