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दक्षिण एशियाई क्षेत्र : एकता और समन्वय की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा; राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 ; भारत तथा इसके पड़ोसी सम्बंध, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच - उनकी संरचना, अधिदेश)

चर्चा में क्यों?

कोविड-19 महामारी के संकट से निपटने हेतु दक्षिण एशियाई क्षेत्र में एकता और समन्वय की आवश्यकता है तथा वर्तमान में, भारत द्वारा इस क्षेत्र पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

भूमिका

महामारी के समय में स्वास्थ्य और आर्थिक संकट से निपटने हेतु दक्षिण एशिया में भिन्न-भिन्न देशों द्वारा अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ थीं । भारत द्वारा इस संकट से निपटने के लिये लॉकडाउन के साथ ही आर्थिक गतिविधियों को भी सीमित रूप से शुरू किया गया है।

दक्षिण एशियाई देशों द्वारा किये गए प्रयास

बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका द्वारा भी लॉकडाउन में विस्तार करते हुए धीरे-धीरे आर्थिक गतिविधियों को शुरू किया गया। भूटान और मालदीव उच्च परीक्षण दर के कारण सामुदायिक प्रसार को रोकने तथा लम्बे समय तक लॉकडाउन के प्रभाव से भी बचे रहे। यह तथ्य सर्वविदित है कि जिन देशों ने अधिक परीक्षण किये हैं वे देश महामारी को रोकने में अधिक सफल रहे तथा अन्य क्षेत्रों की तुलना में दक्षिण एशियाई देशों में उच्च संक्रमण दर होने के बावजूद मृत्यु दर कम रही है। हालाँकि, महामारी विज्ञान अध्ययन और विश्व स्वास्थ्य संगठन की समीक्षाओं के अनुसार आँकड़ों की विश्वसनीयता को लेकर संदेह है।

भारत, पकिस्तान बांग्लादेश और मालदीव द्वारा प्रोत्साहन पैकेज दिया गया है। कुछ देशों द्वारा, जो अभी भी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, अपनी निम्न और मध्यम वर्गीय आबादी हेतु ठोस कदमों की घोषणा करना अभी बाकी है।
मार्च के अंत में भारत ने गरीबी में रहने वाले लोगों की खाद्य सुरक्षा एवं आजीविका बचाने हेतु नकद हस्तांतरण के माध्यम से एक बड़े आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी। भारत के केंद्रीय बैंक द्वारा तरलता बनाए रखने के लिये नीतिगत दरों में परिवर्तन किया गया। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर दक्षिण एशियाई देशों के सहयोग से सार्क कोविड-19 फंड बनाया गया।

दक्षिण एशिया में भारत की चुनौतियाँ

  • दक्षिण एशियाई क्षेत्र में चीन का बढ़ता आर्थिक और राजनैतिक प्रभाव तथा चीन-पाकिस्तान की बढ़ती निकटता एवं चीन के साथ अनसुलझा सीमा विवाद भारत के लिये बड़ी चुनौतियाँ हैं। ये सभी कारक भारत के समग्र सुरक्षा वातावरण को प्रभावित करते हैं।
  • दक्षिण एशिया में बढ़ते धार्मिक कट्टरवाद और संवैधानिक हस्तक्षेप तथा लोकतांत्रिक संस्थाओं के पतन के कारण इस क्षेत्र में राजनैतिक अस्थिरता का वातावरण बना रहता है।
  • दक्षिण एशिया सामाजिक रूप से अधिक जटिल है। यहाँ जातिवाद एवं सम्प्रदायवाद के अतिरिक्त भाषाई और वर्ग मतभेद जैसे कारक मौजूद हैं, जो इस क्षेत्र की आर्थिक प्रगति में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • दक्षिण एशिया में क्षेत्रीयता की धीमी गति के संरचनात्मक कारण हैं। सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से सशक्त भारत भी इस क्षेत्र में असुरक्षित महसूस करता है, जिसका मुख्य कारण भारत पाकिस्तान को बाहरी शत्रुओं के प्रवेश बिंदु के रूप में मानता है।

आगे की राह

  • इस क्षेत्र को संकीर्ण भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से परे एक समन्वित प्रतिक्रिया तंत्र निर्मित करने की दिशा में पहल करने की आवश्यकता है।
  • सार्क फंड के उपयोग को लेकर सदस्य देश अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाए हैं। इस फंड का उपयोग उचित रूप में तथा आवश्यकतानुसार किया जाना चाहिये।
  • इस क्षेत्र के संकट से प्रभावी रूप से निपटने हेतु इन देशों को सार्क के संस्थागत ढाँचे के अंतर्गत साथ आने की आवश्यकता है।
  • सार्क खाद्य बैंक (SAARC Food Bank) का प्रयोग इस क्षेत्र के खाद्य संकट से निपटने हेतु किया जा सकता है। साथ ही इस क्षेत्र की आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिये नीति निर्माण में सार्क वित्त फोरम (SAARC Finance Forum) की सहायता ली जा सकती है।
  • भारत जनसंख्या और अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने की योग्यता और क्षमता रखता है। इसलिये भारत को कूटनीतिक लचीलेपन तथा समन्वयकारी नेतृत्व के माध्यम से दक्षिण एशियाई क्षेत्र की दशा और दिशा की रूपरेखा तैयार करनी चाहिये।
  • भारत को दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते को मज़बूत करने , अंतर-क्षेत्रीय खाद्य व्यापार की बाधाओं को कम करने और क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • भारत को अपने आत्मनिर्भर भारत अभियान को राष्ट्रीय स्तर से लेकर पड़ोसी प्रथम की नीति के तहत दक्षिण एशिया में विस्तारित करना चाहिये। भारत व्यापार में इस क्षेत्र को विशेष छूट प्रदान करके अपने आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक सम्बंध मज़बूत कर सकता है।

निष्कर्ष

वर्तमान स्वास्थ्य और आर्थिक संकट से निपटने हेतु दक्षिण एशियाई क्षेत्र के नेताओं को साथ आने और सामूहिक रूप से इस चुनौती के समाधान हेतु एक महत्त्वपूर्ण अवसर के रूप में देखना चाहिये, जिससे भविष्य में यह क्षेत्र एकजुटता और समन्वय के कारण अंतर्राष्ट्रीय पटल पर अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित करेगा।

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