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कन्वर्शन थेरपी चिकित्सा की वैधता : संबंधित पहलू

(प्रारंभिक परीक्षा- अधिकारों संबंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय, स्वास्थ्य)

संदर्भ 

हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय ने भारत में स्पष्ट रूप से उस ‘कन्वर्शन थेरपी’ चिकित्सा पद्धति (लैंगिक झुकाव में परिवर्तन संबंधी चिकित्सा) पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया है, जो कथित तौर पर ‘LGBTQIA+’ समुदाय के सदस्यों के यौन अभिविन्यास (Orientation) में बदलाव का दावा करती है।

क्या है ‘कन्वर्शन थेरपी’ और किसे कहते हैं ‘LGBTQIA+’ समुदाय?

‘कन्वर्शन थेरपी’ से तात्पर्य समलैंगिक, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर्स आदि समुदाय के भावनात्मक एवं लैंगिक झुकाव में कथित तौर पर सुधार करके उनको ‘स्वाभाविक’ बनाने की चिकित्सा प्रक्रिया से है। यह पद्धति कई पश्चिमी देशों में ग़ैर-कानूनी है।

‘LGBTQIA+’ समुदाय

  • L- लेस्बियन’ (महिला समलैंगिक) उन महिलाओं को कहते हैं, जो शारीरिक और भावनात्मक रूप से महिलाओं को पसंद करती हैं। 
  • G- ‘गे’ (पुरुष समलैंगिक) उन पुरुषों को कहते हैं, जो शारीरिक और भावनात्मक रूप से पुरुषों को पसंद करते हैं।
  • B- बाइसेक्सुअल’ (उभयलिंगी) उन व्यक्तियों को कहते है, जिन्हें महिला और पुरुष दोनों पसंद होते हैं। 
  • T- ट्रांसजेंडर’ (लिंग-परिवर्तन वाले) उन व्यक्तियों को कहते हैं, जो अपने जन्म के समय के मूल लिंग में परिवर्तन कर लेते हैं, अर्थात पुरुष से महिला या महिला से पुरुष बनने वाले लोग। 
  • Q- क्वीर’ (Queer) उन व्यक्तियों को कहते हैं, जो अपनी पसंद को लेकर अनिर्णय की स्थति में होते हैं। 
  • I- ‘इंटरसेक्स’ उन व्यक्तियों को कहते हैं, जिनके शरीर दोनों लिंगों (स्त्री या पुरुष) की तय परिभाषा के अनुसार नहीं होते हैं। कभी-कभी ऐसे व्यक्तियों में दोनों के गुण भी दिखाई पड़ते हैं। 
  • A- ‘एसेक्सुअल’ (अलैंगिक) उन व्यक्तियों को कहते हैं, जिन्हें किसी से भी शारीरिक लगाव नहीं होता है।  

निर्णय का प्रभाव 

  • न्यायालय ने कन्वर्शन थेरपी को अंजाम देने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की माँग की है। इसने इस चिकित्सा पद्धति को गैरकानूनी घोषित करने के लिये मई में यूनाइटेड किंगडम के निर्णय का भी जिक्र किया।
  • इसे होमोफोबिया के खिलाफ संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। साथ ही, यह बाह्य हस्तक्षेप के माध्यम से लैंगिक आचरण (Sexuality) को बदले जा सकने की अवैज्ञानिक धारणा पर भी प्रहार है।
  • भारत को भी इस दोषपूर्ण और चिकित्सकीय रूप से निराधार प्रथा को समाप्त करने के लिये निर्णायक और सार्थक कार्रवाई करनी चाहिये।

कन्वर्शन थेरपी से हानियाँ 

  • कन्वर्शन थेरपी जैसी चिकित्सा में पीड़ितों को विभिन्न प्रकार के शारीरिक और भावनात्मक दुष्प्रयोगों का सामना करना पड़ता है, जो बहुत हानिकारक है। साथ ही, उनको शारीरिक और मानसिक पीड़ा भी झेलनी पड़ती है। 
  • लैंगिक हिंसा और भेदभाव पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, इस तरह की चिकित्सा पद्धति से गुज़रने वाले 98 प्रतिशत लोग अवसाद, चिंता, स्थायी शारीरिक क्षति और विश्वास की कमी सहित विभिन्न स्थायी समस्याओं का सामना करते हैं।
  • विज्ञान का सहारा लेकर यौन अभिविन्यास को बदलने का वादा करने वाली ऐसी सेवाएँ इस गलत धारणा को मज़बूत करती है कि समलैंगिक झुकाव (Non-Heterosexual Orientations) अप्राकृतिक या अनैतिक है।

उपाय 

  • भारत को भेदभाव के इस भयानक स्वरूप से अपने तरीके से निपटने का समय आ गया है। कम से कम पाँच राज्यों में ऐसे मामले (आत्महत्या आदि) सामने आने से यह स्पष्ट है कि बड़ी संख्या में भारतीय इस चिकित्सा पद्धति के शिकार हुए हैं। 
  • हाल के वर्षों में समलैंगिकता के प्रति कानून और दृष्टिकोण दोनों का विकास हुआ है। वर्ष 2014 में भारतीय साइकियाट्रिक सोसाइटी ने स्पष्ट किया कि समलैंगिकता कोई मानसिक बीमारी नहीं है और इसे बाहरी प्रयासों से नहीं बदला जा सकता है। वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय ने भी इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था और धारा 377 अब सहमति से समलैंगिक यौन संबंध पर लागू नहीं होती है।
  • हालाँकि, ‘मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम’ जैसे वर्तमान कानून कन्वर्शन थेरपी के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं, तथापि यह अधिनियम सहमति के बिना चिकित्सा उपचार पर प्रतिबंध लगाता है। इसके अलावा, किसी व्यक्ति का लैंगिक झुकाव उसको मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति के रूप में वर्गीकृत नहीं करता है, परंतु ऐसे लोगों को मानसिक रूप से बीमार माने जाने से यह अधिनियम LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिये अपर्याप्त है।
  • स्पष्ट है कि भारत के LGBTQIA+ समुदाय को कन्वर्शन थेरपी से होने वाले वास्तविक और स्थायी नुकसान से बचाने के लिये विशेष कानून बनाने की आवश्यकता है। इनमें उन चिकित्सकों के खिलाफ पेशेवर प्रतिबंध लगाना शामिल है जो कन्वर्शन थेरपी में संलग्न हैं। 
  • साथ ही, इस थेरपी की हानिकारक, अवैज्ञानिक और अनैतिक प्रकृति को देखते हुए नाबालिगों पर कन्वर्शन थेरपी चिकित्सा के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने की भी आवश्यकता है, जो ऐसी किसी भी प्रक्रिया के लिये सहमति दे सकने में सक्षम नहीं हैं। 
  • इसकी व्यापकता और सामाजिक स्वीकार्यता को कम करने के उद्देश्य से कन्वर्शन थेरपी के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने की भी आवश्यकता है।
  • जर्मनी, कनाडा, माल्टा, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों में इस प्रथा के खिलाफ राज्य और राष्ट्रीय स्तर के कानून पहले ही पारित किये जा चुके हैं। भारत को भी मद्रास उच्च न्यायालय के सुझावों को लागू करने की आवश्यकता है। 
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