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विश्व की सबसे बड़ी परमाणु संलयन परियोजना की शुरुआत: स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ते कदम

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 3: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग तथा रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, दक्षिणी फ्रांस में विश्व की सबसे बड़ी ‘परमाणु संलयन परियोजना’ के पाँच वर्षीय असेम्बल चरण की शुरुआतकी गई है। इसमें वर्ष 2025 के अंत तक उत्पादन की आशा के साथ प्रथम बार अल्ट्रा-हॉट प्लाज़्मा (अति तप्त प्लाज़्मा) का प्रयोग किया गया है।

पृष्ठभूमि

  • विश्व की इस सबसे बड़ी परमाणु संलयन परियोजना कामूल नाम ‘अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगात्मक रिएक्टर’ (ITER) है। आई.टी.ई.आर. मूल रूप से एक अंतर्राष्ट्रीय परमाणु संलयन अनुसंधान और इंजीनियरिंग मेगा प्रोजेक्ट है, जोविश्व का सबसे बड़ा चुम्बकीय परिशोधन प्लाज़्मा भौतिकी प्रयोग होगा। इस परियोजना की अनुमानित लागत € 20 बिलियन है।
  • इस विशालकाय रिएक्टर को असेम्बल करने के लिये लाखों घटकों का उपयोग किया जाएगा। अतः इसका सम्पूर्ण वज़न लगभग 23,000 टन होगा। इस परियोजना कोअब तक के इतिहास में सबसे जटिल इंजीनियरिंग प्रयास माना जा रहा है। आई.टी.ई.आर. समूह के वरिष्ठ सदस्यों की उपस्थिति में फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन द्वारा इसका शुभारम्भ किया गया। उन्होनें इस ऊर्जा कार्यक्रम को ‘शांति के वादे’ के रूप में प्रस्तुत किया है।

परियोजना के मुख्य उद्देश्य

  • यह परियोजना उन अभिक्रियाओं को दोहराएगी जिनसे सूर्य को शक्ति व ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • यह एक प्रयोगात्मक टोकामैक (Tokamak) परमाणु संलयन रिएक्टर है। वस्तुतः टोकामैक एक ऐसा उपकरण हैजो एक विशेष प्रकार की आकृति (टोरस) में तप्त प्लाज़्मा को परिबद्ध करने के लिये शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग करता है। टोकामैक को संलयन ऊर्जा का दोहन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • इस परियोजना काउद्देश्य, संलयन शक्ति का व्यावसायिक पैमाने पर उत्पादित किये जा सकने की क्षमता का प्रदर्शन करना है।

आई.टी.ई.आर. परियोजना का महत्त्व

  • आई.टी.ई.आर. महानिदेशक के अनुसार, इस प्रकार से स्वच्छ ऊर्जा के अनन्य उपयोग को सक्षम करना इस ग्रह के लिये एक चमत्कार सिद्ध होगा। साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा के साथ संलयन, परिवहन, इमारतों और उद्योगों का विद्युत परिचालन सुगम होगा।
  • आई.टी.ई.आर. इंजीनियरों के अनुसार, उनकी विशाल परियोजना इस आकार की है जो सिद्ध करती है प्रौद्योगिकियों का वितरण किया जा सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगात्मक रिएक्टर (International Thermonuclear Experimental Reactor)

  • आई.टी.ई.आर. परियोजना की परिकल्पना जेनेवा महाशक्ति शिखर सम्मेलन के दौरान सन् 1985 के अंत में की गई थी। प्रारम्भ में यूरोपीय संघ, जापान, सोवियत संघ और अमेरिका के द्वारा इसके डिज़ाइन का प्रस्ताव किया गया। सदस्य राज्यों द्वारा वर्ष 2001 में अंतिम योजना को अनुमोदित किया गया था।
  • वर्ष 2003 में दक्षिण कोरिया, चीन और भारत इस कार्यक्रम में शामिल हुए तथा इसके दो वर्ष  बाद निर्माण स्थल का चुनाव किया गया।
  • इस परियोजना के लिये वित्तपोषण प्रत्येक सदस्य देश द्वाराकिया जा रहा है। मेज़बान सदस्य के रूप में यूरोपीय संघ द्वारा 45% का योगदान तथा अन्य सदस्यों में प्रत्येक के द्वारा लगभग 9.1% का वित्तपोषण किया जा रहा है।
  • प्रत्येक सदस्य को भिन्न-भिन्न प्रकार के घटकों व प्रणालियों का कार्य सौंपा गया है। इसमें से भारत व अमेरिका संयुक्त रूप से शीतल जल प्रणालियों के उत्पादन के प्रयासों में शामिलहैं।

आई.टी.ई.आर. की प्रक्रिया

  • परमाणु संलयन की अभिक्रिया तब होती है जब दो परमाणु संयुक्त होकर एक नया परमाणु और एक न्यूट्रॉन बनाते हैं।
  • इन परमाणुओं को तप्त प्लाज़्मा में डाल दिया जाता है, जहाँ अत्यधिक तापमान उनके प्रतिकर्षण को कम करके उन्हें आपस में संलयित होने के लिये मजबूर कर देते हैं।
  • नाभिकीय संलयन अभिक्रिया से विशाल मात्रा में ऊर्जा निकलती है, क्योंकि भारी हाइड्रोजन परमाणु आपस में संलयित हो जाते हैं। इसके लिये लगभग 150 मिलियन सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है, जोकि सूर्य के कोर के तापमान से भी 10 गुना अधिक है। ध्यातव्य है कि हाइड्रोजन के प्राकृतिक रूप से तीन समस्थानिक होते हैं:प्रोटियम, ड्यूटेरियम (भारी हाइड्रोजन) और ट्राइटियम।
  • विदित है कि सूर्य की सतह का तापमान लगभग 6,000°C है, जबकि इसके कोर का तापमान 15 मिलियन °C तक पहुँच जाता है। आई.टी.ई.आर. टोकामैक में तापमान 150 मिलियन डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाएगा।
  • हाइड्रोजन ईंधन समुद्री जल से प्राप्त होता है और इसके लिये कुछ ही ग्राम हाइड्रोजन ईंधन की आवश्यकता होती है। हालाँकि, एक विशेष आकार के निर्वात कक्ष में प्लाज़्मा को परिबद्ध करने के लिये अधिक मात्रा में चुम्बक की आवश्यकता होती है।

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परमाणु संलयन व परमाणु विखंडन की तुलना

  • किसी ईंधन के प्रति ग्राम परमाणु विखंडन से उत्पादित ऊर्जा की अपेक्षा परमाणु संलयन की अभिक्रिया में चार गुना अधिक ऊर्जा उत्पादित होती है।
  • पारम्परिक परमाणु विखंडन रिएक्टरों की तरह ही इस प्रक्रिया में भी जलवायु तापन के लिये ज़िम्मेदार कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन नहीं होता है, परंतु संलयन रिएक्टर अपेक्षाकृत काफी कम मात्रा में रेडियो-सक्रिय अपशिष्ट का उत्पादन करता है।

इस परियोजना की विशिष्टता

  • आई.टी.ई.आर. परियोजना ‘बर्निंग’ या ‘सेल्फ-हीटिंग प्लाज़्मा’ को प्राप्त करने का प्रथम प्रयास होगा। साथ ही, किसी भी पिछले प्रयास की तुलना में इसमें 10 गुना अधिक ऊष्मा उत्पन्न होने की सम्भावना है।
  • कार्यशील अवस्था में, चुम्बक और वैज्ञानिक उपकरणों को शक्ति प्रदान करने के लिये यह महत्त्वपूर्ण मात्रा में विद्युत ऊर्जा का भी उपयोग करेगा। हालाँकि, इसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर संलयन की अवधारणा को सिद्ध करना है, न कि भविष्य के वाणिज्यिक रिएक्टरों के लिये डिज़ाइन करना।
  • असेम्बल किये जा रहे घटकों में भारत द्वारा निर्मित 30 मीटर व्यास का एक क्रायोस्टैट है, जो रिएक्टर को चारों-ओर से घेरता है और आवश्यकता के अनुरूप इसे कम तापमान पर रखता है।
  • इलेक्ट्रोमैगनेट्स (विद्युत चुम्बक) में से एक, जिसे ‘सेंट्रल सॉलीनॉयड’ या केंद्रीय परिनालिका कहा जाता है, में किसी विमान वाहक को उठाने की चुम्बकीय शक्ति होगी।
  • किसी जम्बो जेट से भी भारी लगभग 3,000 टन अति चालकता युक्त चुम्बक (सुपर कंडक्टिंग मैगनेट) 200 किमी. लम्बे अतिचालक केबलों से जुड़ा होगा। इन सभी को विश्व के सबसे बड़े क्रायोजेनिक संयंत्र द्वारा -269°C पर रखा गया है।

अन्य वैश्विक प्रयास

  • टोकामैक एनर्जी के अलावा निजी क्षेत्र की कुछ कम्पनियाँ कई छोटे उपकरणों के माध्यम से परमाणु संलयन का कार्य कर रहीं हैं।
  • ऐसा विश्वास है कि इस क्षेत्र में तीव्र प्रगति सम्भव है। कार्बन-मुक्त ऊर्जा की अधिक आवश्यकता होने के साथ-साथ निजी निवेश, मॉड्यूलर डिजाइन, नई सामग्री और उन्नत प्रौद्योगिकियों के द्वारा ऐसा सम्भव है।
  • ट्राई अल्फा एनर्जी सहित अन्य परमाणु संलयन कम्पनियाँ ‘पार्टिकल एक्सेलरेटर प्रौद्योगिकी’ (Particle Accelerator Technology) का उपयोग करती हैं। ये कम्पनियाँ प्लाज़्मा को परिबद्ध करने के लिये पिघले हुए सीसे व लीथियम के वर्टेक्स का उपयोग करने वाली गूगल और जनरल फ्यूज़न के साथ कार्य कर रही हैं।

आगे की राह

संलयन एक ऐसी परमाणु अभिक्रिया है जो सूर्य और तारों को ऊर्जा प्रदान करती है। यह सुरक्षित, कार्बन उत्सर्जन से मुक्त और असीम ऊर्जा का एक सम्भावित स्रोत है। इसके बावजूद 60 वर्षों के शोध के उपरांत भी संलयन से अत्यधिक मात्रा में उत्पादित ऊर्जा के दोहन की तकनीकी चुनौतियों को दूर किया जाना बाकीहै। यह परिवर्तनकारी नवाचार जलवायु परिवर्तन सहित वैश्विक मुद्दों को हल करने और एक स्थाई कार्बन-मुक्त समाज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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