(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
संदर्भ
- हाल ही में बिहार के एक नेता ने घोषणा की है कि सत्ता में आने पर वे आरक्षण को 85% तक बढ़ा देंगे।
- सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है जिसमें अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ जैसी प्रणाली शुरू करने की मांग की गई है।
- महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल की मांगों को मानते हुए सरकार ने कुणबी (कुनबी) जाति प्रमाणपत्र देने का फैसला किया, जिससे मराठा ओ.बी.सी. आरक्षण के पात्र हो सकते हैं।
आरक्षण की अवधारणा
- आरक्षण एक सकारात्मक कार्रवाई (एफर्मेटिव एक्शन) की नीति है, जो सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) को सरकारी नौकरियों, शिक्षा संस्थानों व राजनीतिक प्रतिनिधित्व में विशेष अवसर प्रदान करती है।
- इसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को सुधारना और समानता सुनिश्चित करना है। आरक्षण औपचारिक समानता से आगे बढ़कर वास्तविक समानता प्रदान करता है जहाँ पिछड़े समूहों को विशेष सहायता दी जाती है।
संविधान में शामिल करने का कारण
- भारतीय संविधान में आरक्षण को शामिल करने का मुख्य कारण सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना था।
- स्वतंत्र भारत में जाति-आधारित भेदभाव और असमानता को दूर करने के लिए डॉ. बी.आर. आंबेडकर जैसे संविधान निर्माताओं ने इसे आवश्यक माना।
- संविधान सभा की बहसों में आंबेडकर ने कहा कि आरक्षण पिछड़े समुदायों को मुख्यधारा में लाने के लिए आवश्यक है किंतु इसे अल्पसंख्यक तक सीमित रखा जाना चाहिए ताकि ‘अवसर की समानता’ का अधिकार प्रभावित न हो।
- यह नीति औपनिवेशिक काल की असमानताओं को सुधारने और एक समावेशी समाज बनाने के लिए अपनाई गई।
इतिहास के पन्नों से : पूना समझौता
पूना पैक्ट (24 सितंबर, 1932) महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. आंबेडकर के बीच हुआ एक महत्वपूर्ण समझौता था। ब्रिटिश सरकार ने 1932 के कम्युनल अवॉर्ड में दलितों (डिप्रेस्ड क्लासेस) के लिए अलग निर्वाचक मंडल की घोषणा की थी, जिससे वे हिंदू समुदाय से अलग हो जाते। गांधी ने इसका विरोध किया क्योंकि वे मानते थे कि इससे हिंदू समाज का विभाजन होगा और दलितों की स्थिति अधिक खराब हो जाएगी। उन्होंने पूना जेल में अनशन शुरू किया। दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे आंबेडकर ने गांधी के साथ समझौता किया। पैक्ट के अनुसार, अलग निर्वाचक मंडल की बजाय संयुक्त निर्वाचक मंडल में दलितों के लिए आरक्षित सीटें बढ़ा दी गईं। यह पैक्ट संविधान में आरक्षण की नींव रखने वाला महत्वपूर्ण कदम था।
गांधी जी के विचार
- महात्मा गांधी आरक्षण के पक्षधर थे किंतु वे जाति-आधारित विभाजन के खिलाफ थे। वे मानते थे कि दलितों का उत्थान हिंदू समाज के सुधार से होना चाहिए, न कि अलगाव से।
- पूना पैक्ट में गांधी ने अनशन के माध्यम से एकता पर जोर दिया और हरिजनों (दलितों) के लिए मंदिर प्रवेश जैसे सुधारों की वकालत की। वे आरक्षण को अस्थायी मानते थे, जो सामाजिक न्याय के लिए जरूरी है किंतु स्थायी नहीं है।
आंबेडकर जी के विचार
- डॉ. बी.आर. आंबेडकर दलितों के लिए मजबूत सुरक्षा की मांग करते थे। वे अलग निर्वाचक मंडल चाहते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि हिंदू बहुमत दलितों को दबाएगा।
- वह आरक्षण को ऐतिहासिक अन्याय में सुधार के रूप में मानते थे और संविधान सभा में उन्होंने कहा कि पिछड़े वर्गों को विशेष प्रावधान दिए बिना समानता संभव नहीं है।
- हालांकि, वे आरक्षण को असीमित नहीं मानते थे और ‘अवसर की समानता’ को बनाए रखने पर जोर देते थे। आंबेडकर के विचारों ने संविधान में आरक्षण को मजबूत आधार दिया।
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संवैधानिक प्रावधान
- संविधान के अनुच्छेद 15 एवं 16 नागरिकों को राज्य की किसी भी कार्रवाई (शिक्षा संस्थानों में प्रवेश सहित) और सार्वजनिक रोजगार में समानता की गारंटी देते हैं।
- अनुच्छेद 15(4) एवं 16(4) राज्य को सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों, ओ.बी.सी., एस.सी. और एस.टी. के उत्थान के लिए विशेष प्रावधान बनाने की अनुमति देते हैं।
- अनुच्छेद 335 में कहा गया है कि एस.सी./एस.टी. के दावों को प्रशासनिक दक्षता के साथ संतुलित किया जाए।
- केंद्र में वर्तमान आरक्षण है: ओ.बी.सी. (27%), एस.सी. (15%), एस.टी. (7.5%) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ई.डब्ल्यू.एस.) के लिए 10%। राज्यों में यह जनसांख्यिकीय अनुसार भिन्न होता है।
सर्वोच्च न्यायालय के संबंधित निर्णय
- बालाजी बनाम कर्नाटक राज्य (1963): अदालत ने कहा कि आरक्षण ‘उचित सीमा’ में होना चाहिए और 50% से अधिक नहीं। इसे औपचारिक समानता का समर्थन माना गया, जहाँ आरक्षण को अवसर की समानता का अपवाद माना गया।
- केरल राज्य बनाम एन.एम. थॉमस (1976): सात जजों की पीठ ने वास्तविक समानता पर जोर दिया। अदालत ने कहा कि आरक्षण अवसर की समानता का अपवाद नहीं है बल्कि उसका विस्तार है। हालांकि, 50% सीमा पर बाध्यकारी फैसला नहीं दिया।
- इंद्रा साहनी मामला (1992): नौ जजों की पीठ ने ओ.बी.सी. के लिए 27% आरक्षण को वैध ठहराया। जाति को वर्ग का निर्धारक माना और 50% की सीमा दोहराई, सिवाय असाधारण परिस्थितियों के। ओ.बी.सी. में क्रीमी लेयर को बाहर करने का आदेश दिया।
- जनहित अभियान मामला (2022): बहुमत से ई.डब्ल्यू.एस. के 10% आरक्षण को वैध ठहराया। आर्थिक आधार को आरक्षण का मानदंड माना और कहा कि 50% सीमा पिछड़े वर्गों के लिए है, जबकि ई.डब्ल्यू.एस. अलग श्रेणी है।
- पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह (2024): सात जजों की पीठ में चार जजों ने एस.सी./एस.टी. में क्रीमी लेयर नीति बनाने की सलाह दी। हालांकि, केंद्र सरकार ने अगस्त 2024 में एस.सी./एस.टी. के लिए क्रीमी लेयर न लागू करने की पुष्टि की।
क्या 50% से अधिक होना चाहिए या नहीं
सर्वोच्च न्यायालय ने इंद्रा साहनी मामले में 50% की सीमा तय की किंतु असाधारण परिस्थितियों में इससे अधिक की अनुमति दी। वर्तमान में केंद्र में ई.डब्ल्यू.एस. सहित कुल 59.5% है, जबकि कुछ राज्यों जैसे तमिलनाडु में 69% है। बहस यह है कि क्या जनसंख्या अनुपात को प्रतिबिंबित करने के लिए इसे बढ़ाया जाए।
पक्ष और विपक्ष में तर्क
पक्ष में तर्क:
- पिछड़े वर्गों की जनसंख्या 50% से अधिक है (अनुमानित 52-60%), इसलिए आरक्षण को बढ़ाना न्यायपूर्ण होगा। जाति जनगणना से सटीक डाटा प्राप्त होगा।
- सरकारी नौकरियों में ओ.बी.सी., एस.सी., एस.टी. की 40-50% सीटें खाली रहती हैं, इसलिए बढ़ोतरी से कोई नुकसान नहीं।
- वास्तविक समानता के लिए ऐतिहासिक पिछड़ेपन को सुधारने की जरूरत है, जैसा थॉमस मामले में कहा गया।
- रोहिणी आयोग के अनुसार, ओ.बी.सी. में लाभ 25% उप-जातियों तक सीमित है, इसलिए बढ़ोतरी से व्यापक वितरण संभव है।
विपक्ष में तर्क:
- आंबेडकर ने कहा कि आरक्षण अल्पसंख्यक तक सीमित हो ताकि ‘अवसर की समानता’ प्रभावित न हो।
- 50% से अधिक होने से सामान्य वर्ग में असंतोष बढ़ेगा और मेरिट प्रभावित होगी।
- एस.सी./एस.टी. में क्रीमी लेयर न होने से लाभ कुछ परिवारों में केंद्रित है; बढ़ोतरी से यह समस्या बढ़ेगी।
- खाली सीटों का कारण योग्य उम्मीदवारों की कमी है, न कि कम आरक्षण; इसलिए स्किल डेवलपमेंट बेहतर विकल्प है।
आगे की राह
- आरक्षण को बढ़ाने से ‘अवसर की समानता’ का उल्लंघन हो सकता है किंतु वास्तविक समानता के लिए सकारात्मक कार्रवाई जरूरी है।
- वर्ष 2027 की जनगणना में पिछड़ी जातियों की गणना होगी, जिसके आधार पर सभी हितधारकों के साथ व्यापक चर्चा होनी चाहिए।
- रोहिणी आयोग की सिफारिशों के अनुसार ओ.बी.सी. में उप-वर्गीकरण लागू किया जाए।
- एस.सी./एस.टी. के लिए ‘दो-स्तरीय’ आरक्षण प्रणाली पर विचार किया जा सकता है, जहां अधिक पिछड़े समूहों को प्राथमिकता दी जाए।
- साथ ही, सार्वजनिक क्षेत्र की सीमित अवसरों को देखते हुए युवाओं के लिए स्किल डेवलपमेंट पर जोर दिया जाए ताकि आरक्षण से परे रोजगार सृजन हो। ये कदम सुनिश्चित करेंगे कि आरक्षण के लाभ पीढ़ी दर पीढ़ी अधिक पिछड़ों तक पहुंचें।