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अग्नि-प्राइम मिसाइल सफल परीक्षण

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास, विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएँ तथा उनके अधिदेश)

संदर्भ 

  • 25 सितंबर, 2025 को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने रेल-आधारित मोबाइल लांचर से अग्नि-प्राइम (Agni-P) मिसाइल का सफल परीक्षण किया। यह परीक्षण ओडिशा के चांदीपुर इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज से किया गया।
  • इसे कैनिस्टराइज्ड लॉन्चिंग सिस्टम से लॉन्च किया गया। इस उपलब्धि के साथ भारत अब उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है, जिनके पास रेल-आधारित लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल प्रक्षेपण क्षमता है। इससे पहले यह क्षमता केवल रूस, चीन व संभवतः उत्तर कोरिया के पास थी।
  • अनाधिकारिक तौर पर यह क्षमता अमेरिका के पास भी है।

अग्नि-पी मिसाइल के बारे में

  • अग्नि-पी को अग्नि-I के उन्नत संस्करण के रूप में विकसित किया गया है। यह द्वि-स्तरीय ठोस ईंधन (Solid Fuel) से संचालित मिसाइल है।
  • इसका परिचालन रेंज 1,000 से 2,000 किमी. है। इसका वजन लगभग 11,000 किग्रा. है।
  • यह परमाणु, हाई-एक्सप्लोसिव और थर्मोबारिक वारहेड्स ले जाने में सक्षम है। इसमें अग्नि-IV एवं अग्नि-V की आधुनिक प्रणोदन व नेविगेशन तकनीक का उपयोग किया गया है।

इसकी विशेषताएँ

  • कैनिस्टराइज्ड मिसाइल : इसे किसी भी मोबाइल प्लेटफॉर्म (जैसे- रेल आधारित) से आसानी से लॉन्च किया जा सकता है।
  • आधुनिक नेविगेशन और प्रोपल्शन तकनीक : लक्ष्य साधने की सटीकता अधिक है।
  • विविध वारहेड क्षमता : पारंपरिक एवं परमाणु दोनों प्रकार के हथियार ले जाने में सक्षम है।
  • सुरक्षा एवं लचीलापन : दुश्मन की निगरानी से बचने के लिए मोबाइल प्लेटफॉर्म पर छिपाया जा सकता है।
  • दूसरे प्रहार की क्षमता : भारत की नो फर्स्ट यूज़ नीति के अनुरूप है और यह मिसाइल परमाणु हमले के बाद जवाबी हमला सुनिश्चित करती है।

कैनिस्टराइज्ड लॉन्च सिस्टम

  • इस मॉडर्न तकनीक में मिसाइल को एक मजबूत कैनिस्टर (बड़े धातु के कंटेनर) में रखा जाता है। यह कैनिस्टर मिसाइल को सुरक्षित रखता है और आसानी से इधर-उधर ले जाने एवं लॉन्च के लिए तैयार रखता है।
  • कैनिस्टर से मिसाइल को बिना लंबी तैयारी के सीधे दागा जा सकता है। मिसाइल नमी, धूल, मौसम और बाकी विपरीत हालात में सुरक्षित रहती है। ट्रक, रेल या मोबाइल लॉन्चर पर कैनिस्टर रखकर मिसाइल को कहीं भी ले जाया जा सकता है।
  • यह पहचानना कठिन होता है कि कौन सा कैनिस्टर मिसाइल लिए हुए है और कौन नहीं। कैनिस्टर में पैक रहने से मिसाइल के बार-बार मेंटेनेन्स की जरूरत नहीं पड़ती है।

अन्य अग्नि मिसाइलों से अंतर

  • अग्नि-I: रेंज 700–1,000 किमी., पहली बार 1989 में परीक्षण हुआ। इसे 2004 में सेना में शामिल किया गया था।
  • अग्नि-II, III, IV और V: 2,000 से 5,000+ किमी तक की रेंज वाली लंबी दूरी की मिसाइलें।
  • अग्नि-पी: अग्नि-I की रेंज के साथ-साथ आधुनिक तकनीक (Agni-IV व V से ली गई) का संयोजन है। यह अधिक सटीक, हल्की एवं मोबाइल लांचर से प्रक्षेपण योग्य है।

रेल-आधारित परीक्षण का महत्व

  • मोबाइल क्षमता : रेल नेटवर्क (लगभग 70,000 किमी.) देश के किसी भी हिस्से में मिसाइल को ले जाकर लॉन्च करने में सक्षम है।
  • सुरक्षा और छिपाव : भारत के हजारों रेल सुरंगों में इन्हें छिपाया जा सकता है जिससे दुश्मन की सैटेलाइट निगरानी से बचा जा सके।
  • तेजी और लचीलापन : सड़क आधारित प्रणालियों की तुलना में रेल आधारित लॉन्चिंग ज्यादा सुगम एवं व्यापक क्षेत्र में संभव है।
  • कम लागत : पनडुब्बी आधारित बैलिस्टिक मिसाइल प्रणालियों (SLBM) की तुलना में रेल आधारित प्लेटफॉर्म सस्ता और रखरखाव में आसान है।
  • रणनीतिक महत्व : स्थिर साइलो अब आधुनिक मिसाइल तकनीक के कारण अधिक असुरक्षित हो गए हैं। ऐसे में मोबाइल लॉन्चर भारत की न्यूक्लियर डिटरेंस स्ट्रेटजी को अधिक मजबूत करते हैं।

रेल से मिसाइल परीक्षण वाले देश 

  • रूस की मोलोडेट्स: 1980 के दशक में पूर्व सोवियत संघ ने RT-23 मोलोडेट्स स्पेशल ट्रेनों से लॉन्च की थी। मोलोडेट्स भी परमाणु हथियार ले जा सकती थी। रूस ने बारगुजिन सिस्टम के साथ इसे दोबारा शुरू करने की भी योजना बनाई थी। किंतु हाइपरसोनिक मिसाइल विकास पर फोकस के लिए इस परियोजना को रोक दिया था।
  • चीन की DF-4: दिसंबर 2016 में चीन ने अपनी बैलिस्टिक मिसाइल DF-41 (CSS-X-20) के नए रेल-मोबाइल वर्जन का परीक्षण किया था। चीन की रॉकेट फोर्स ऐसे मोबाइल विकल्पों पर काम कर रही है।
  • उत्तर कोरिया: यहाँ की कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी ने 16 सितंबर, 2021 को रेल मिसाइल सिस्टम के बारे में बताया था। 
  • अमेरिका: 1950 के दशक में मिनटमैन मिसाइलों के लिए रेल आधारित प्रणाली पर अध्ययन शुरू किया था। वर्ष 1961 में इसे छोड़ दिया। जापान व दक्षिण कोरिया भी रेल के जरिए मिसाइल लॉन्चिंग की टेस्टिंग कर चुके हैं।

इसे भी जानिए!

  • भारत ने जुलाई 2025 में ड्रोन से मिसाइल फायर करने का भी सफल परीक्षण किया है। आंध्र प्रदेश के कुरनूल के नेशनल ओपन एरिया टेस्टिंग रेंज में मिसाइल की टेस्टिंग की गई। इस प्रिसिशन गाइडेड मिसाइल का नाम ULPGM-V3 है। यह ULPGM-V2 का एडवांस्ड वर्जन है।
  • ये स्मार्ट मिसाइल ड्रोन से छोड़ी जाती है और दिन-रात, किसी भी मौसम में दुश्मन के ठिकानों को सटीकता से नष्ट कर सकती है। एक बार लॉन्च करने के बाद कभी भी टारगेट को बदला जा सकता है।

DRDO के सितंबर 2025 तक किए गए प्रमुख मिसाइल परीक्षण 

  • VSHORADS (वैरी शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम): यह हाइपर सेंसेटिविटी टेस्ट 1 फरवरी को चांदीपुर से तीन परीक्षण। हाई स्पीड वाले UAVs-रोधी लक्ष्य पर सटीक प्रभाव। यह कम रेंज की वायु रक्षा प्रणाली है।
  • MRSAM (मीडियम रेंज सरफेस टु एयर मिसाइल): 3-4 अप्रैल को आर्मी वर्जन को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम आईलैंड, ओडिशा से चार परीक्षण। विभिन्न दूरी एवं ऊंचाई पर लक्ष्य इंटरसेप्शन के लिए महत्त्वपूर्ण।
  • अस्त्र BVRAAM (बियॉन्ड विजुअल रेंज एयर टु एयर मिसाइल): 11 जुलाई को सुखाई‑30MKI से हाई स्पीड वाले UAV पर दो लॉन्च। स्वदेशी RF सीकर से लैस, एयर-एयर वेपन सिस्टम।
  • ET‑LDHCM (एक्सटेंडेड ट्रेजैक्ट्री लॉन्ग ड्यूरेशन हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल): 14-16 जुलाई के बीच परीक्षण। Mach 8 की गति से 1500 किमी. तक मारक क्षमता।
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