(प्रारंभिक परीक्षा: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव) |
संदर्भ
भारत जैव प्रौद्योगिकी नवाचार के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करने की अपनी खोज में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। एक ओर, बायोई3 नीति और इंडियाए.आई. मिशन जैसी पहल देश को ए.आई.-संचालित जैव विनिर्माण एवं नैतिक ए.आई. विकास में वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करती हैं, दूसरी ओर, कमजोर नियमन व सुरक्षा उपाय इस प्रगति को धीमा करते हैं।
भारत में ए.आई. संचालित जैव विनिर्माण
- भारत दशकों से जेनेरिक दवाओं एवं टीकों का वैश्विक आपूर्तिकर्ता रहा है।
- ए.आई. के उपयोग से जैव विनिर्माण में परिवर्तन आया है। इससे रोबोट, बायोसेंसर, एवं ए.आई. मॉडल उत्पादन प्रक्रियाओं को अनुकूलित कर रहे हैं।
- उदाहरण
- बायोकॉन : ए.आई.-आधारित प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स से ड्रग स्क्रीनिंग एवं बायोलॉजिक्स उत्पादन में सुधार
- स्ट्रैंड लाइफ साइंसेज : जीनोमिक्स एवं व्यक्तिगत चिकित्सा में ए.आई. का उपयोग, ड्रग डिस्कवरी और डायग्नोस्टिक्स में तेजी
- विप्रो (Wipro) व TCS जैसी IT कंपनियाँ भी ए.आई. को औषधि अनुसंधान एवं क्लीनिकल ट्रायल्स में उपयोग कर रही हैं।
AI का प्रभाव
- उत्पादन प्रक्रिया : सेंसर से प्राप्त डाटा का उपयोग कर ए.आई. तापमान, pH या कोशिका वृद्धि में बदलाव का पता लगाता है और प्रक्रिया को स्वचालित रूप से समायोजित करता है।
- डिजिटल ट्विन्स : ये ऐसे वर्चुअल मॉडल हैं जो वास्तविक संयंत्रों की नकल करते हैं और समस्याओं का पूर्वानुमान तथा समाधान करते हैं।
- परिणाम : निम्न असफल बैच, निम्न अपशिष्ट एवं उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद।
प्रमुख सरकारी पहलें
BioE3 नीति (2024)
- उद्देश्य : बायोमैन्युफैक्चरिंग हब्स, बायोफाउंड्रीज़ एवं Bio-AI हब्स की स्थापना
- नवाचार एवं अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए अनुदान व फंडिंग का प्रावधान
IndiaAI मिशन
- लक्ष्य : नैतिक, पारदर्शी एवं उत्तरदायी ए.आई. का विकास
- ‘मशीन अनलर्निंग’ एवं एल्गोरिदम पूर्वाग्रह कम करने जैसे शोध क्षेत्रों को समर्थन
नीति संबंधी चुनौतियाँ
- विधिक एवं नियामकीय ढाँचे की पुरातनता : मौजूदा नियम पारंपरिक दवा उत्पादन के लिए बने हैं, जबकि ए.आई.-आधारित प्रणालियाँ इनसे मेल नहीं खाती हैं।
- डाटा विविधता एवं विश्वसनीयता : ए.आई. मॉडल यदि केवल शहरी डाटा पर आधारित हों, तो ग्रामीण या अर्ध-शहरी क्षेत्रों में वे विफल हो सकते हैं।
- उदाहरण : बेंगलुरु में प्रशिक्षित मॉडल, शिमला की जलवायु या जल गुणवत्ता को नहीं समझ सकता।
- परिणाम : राजस्व हानि, संसाधन अपशिष्ट एवं गुणवत्ता के लिए भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
- यूरोपीय संघ का AI अधिनियम (2024) : ए.आई. उपकरणों को चार जोखिम स्तरों में वर्गीकृत करता है।
- अमेरिकी FDA दिशा निर्देश (2025) : ‘पूर्व-निर्धारित परिवर्तन नियंत्रण योजना’ जैसे प्रावधानों से सुरक्षित ए.आई. नवाचार को अनुमति मिलती है।
- भारत को भी ऐसी प्रासंगिक, जोखिम-आधारित एवं लचीली विनियामक प्रणाली की आवश्यकता है।
अन्य अनुप्रयोग
- ड्रग डिस्कवरी : ए.आई. लाखों यौगिकों की स्क्रीनिंग करता है, समय व लागत कम करता है।
- क्लिनिकल ट्रायल्स : ए.आई. से मरीज भर्ती एवं ट्रायल डिज़ाइन में सुधार।
- आपूर्ति श्रृंखला : ए.आई.-आधारित रखरखाव एवं मांग पूर्वानुमान से दवा आपूर्ति में कमी व अपशिष्ट कम होता है।
- उदाहरण:
- विप्रो : ड्रग डिस्कवरी में ए.आई.-संचालित समाधान
- TCS : ‘एडवांस्ड ड्रग डेवलपमेंट’ प्लेटफॉर्म से क्लिनिकल ट्रायल्स में सुधार
चुनौतियाँ
- डाटा गवर्नेंस : डाटासेट की विविधता और पक्षपात मुक्त होने की आवश्यकता।
- बौद्धिक संपदा : AI द्वारा विकसित अणुओं एवं प्रक्रियाओं के स्वामित्व व लाइसेंसिंग के मुद्दे।
- डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम, 2023 : बायोमैन्युफैक्चरिंग के लिए विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित नहीं करता है।
आगे की राह
- जोखिम-आधारित, अनुकूली नियामक ढांचा विकसित करना
- डाटा गुणवत्ता और मॉडल सत्यापन के लिए स्पष्ट मानक
- बुनियादी ढांचे और प्रतिभा में निवेश, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में
- नियामकों, उद्योग, अकादमिक एवं अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के बीच सहयोग
निष्कर्ष
भारत की जेनेरिक दवाओं में वैश्विक नेतृत्व की मजबूत विरासत है किंतु भविष्य उन देशों का होगा जो ए.आई. की शक्ति से सिर्फ ‘कॉपी’ नहीं, बल्कि नवाचार कर सकें। ए.आई. एवं जैव-विनिर्माण का संगम भारत के लिए वैश्विक मंच पर एक नया युग खोल सकता है, बशर्ते हमारी नीतियाँ विज्ञान के साथ कदमताल कर सकें।