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अरावली पुनरुद्धार कार्य योजना

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारत का भूगोल, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 3: वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन और इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण व क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) 

संदर्भ 

भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला अरावली को मानवीय हस्तक्षेप, अवैध खनन एवं नगरीकरण ने गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इसी पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार ने एक व्यापक एवं समन्वित ‘अरावली पुनरुद्धार कार्य योजना’ को अंतिम रूप देने के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया। 

अरावली पुनरुद्धार कार्य योजना

  • परिचय : यह कार्ययोजना अरावली की पारिस्थितिकी समग्रता को बहाल करने के लिए विज्ञान-आधारित, समुदाय-नेतृत्व वाली एवं नीति-समर्थित रोडमैप पर आधारित है।  
  • मुख्य उद्देश्य
    • अरावली की पारिस्थितिकी समग्रता को पुनर्स्थापित करना
    • क्षेत्रीय जलवायु लचीलापन को सुदृढ़ बनाना
    • हरित आवरण में वृद्धि करना और जैव विविधता संरक्षण करना 
    • स्थानीय समुदायों की आजीविका को सशक्त बनाना
  • प्रमुख संस्थान एवं भागीदा
    • केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
    • राजस्थान, गुजरात, हरियाणा एवं दिल्ली के राज्य वन विभाग
    • GIZ-India (अंतर्राष्ट्रीय सहयोग संस्था)
    • नागरिक समाज, वैज्ञानिक समुदाय, स्थानीय पंचायतें

कार्य योजना के पाँच प्रमुख स्तंभ

पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन (Ecological Restoration)

  • देशी प्रजातियों का वृक्षारोपण
  • मृदा एवं नमी संरक्षण के उपाय
  • परित्यक्त खदानों का जल स्रोतों एवं वन्यजीव आवास के रूप में पुनः उपयोग
  • आक्रामक प्रजातियों को हटाकर स्थानिक प्रजातियों की बहाली

सामुदायिक भागीदारी (Community Participation)

  • स्थानीय ग्रामीणों, महिलाओं एवं युवाओं की सक्रिय भागीदारी
  • माय भारत स्वयंसेवक योजना, इको-क्लब एवं इको-टास्क फोर्स का उपयोग
  • पंचायत स्तर पर पौध नर्सरी की स्थापना
  • जन जागरूकता अभियानों का संचालन

नीति एवं शासन (Policy & Governance)

  • CAMPA, मनरेगा एवं अन्य योजनाओं का अभिसरण
  • ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम का उपयोग
  • राज्यों के बीच समन्वय के लिए संयुक्त मंच और वार्षिक समीक्षा तंत्र
  • GIS आधारित निगरानी प्रणाली का विकास

संपोषित आजीविका (Sustainable Livelihood)

  • पारिस्थितिकी पर्यटन (Ecotourism) को बढ़ावा
  • कृषि वानिकी, बांस आधारित उत्पादों एवं गैर-लकड़ी वनोत्पादों (NTFPs) का व्यवसायीकरण
  • प्राकृतिक ट्रैकिंग ट्रेल्स, सफारी एवं प्रकृति पार्कों का विकास

अनुसंधान एवं नवाचार (Research & Innovation)

  • रिमोट सेंसिंग एवं GIS तकनीकों का उपयोग
  • BSI (Botanical Survey of India) और ZSI (Zoological Survey of India) की निगरानी में वर्गीकरण व अनुसंधान वर्टिकल
  • पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन की वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग
  • सर्वोत्तम प्रथाओं का दस्तावेज़ीकरण और प्रसार

संभावित लाभ

  • अरावली के पारिस्थितिक स्वास्थ्य में सुधार
  • NCR क्षेत्र में वायु गुणवत्ता एवं जल संसाधनों में सुधार
  • ग्रामीण आजीविका के नए अवसर
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अनुकूलन क्षमता में वृद्धि
  • वन्यजीव आवासों का विस्तार और जैव विविधता संरक्षण

निष्कर्ष

बहु-हितधारक रणनीति एवं समग्र दृष्टिकोण के माध्यम से भारत अरावली को ‘हरी दीवार’ (Green Wall of India) के रूप में पुनः प्रतिष्ठित कर सकता है जो सतत विकास, जलवायु अनुकूलन एवं पारिस्थितिकी बहाली का एक प्रेरक उदाहरण बनेगा।

अरावली पर्वत श्रृंखला के बारे में

  • परिचय : अरावली भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला
  • उत्पत्ति : आज से लगभग 1.8 अरब वर्ष पूर्व
  • विस्तार : राजस्थान के अमरपुरा हिल्स (गुजरात सीमा के पास) से शुरू होकर हरियाणा एवं दिल्ली तक
  • लंबाई : लगभग 692 किमी.
  • उच्चतम शिखर : माउंट आबू (राजस्थान) में स्थित गुरु शिखर (ऊँचाई लगभग 1,722 मीटर)
  • भौगोलिक विशेषताएँ : यह श्रृंखला पश्चिमी राजस्थान के शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्र और पूर्वी उपजाऊ मैदानों के बीच एक प्राकृतिक जलविभाजक के रूप में कार्य करती है।
  • पारिस्थितिकीय महत्त्व : अरावली दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा एवं गुजरात में जलवायु संतुलन, वर्षा संरक्षण व भूजल पुनर्भरण में योगदान देती है।
    • यहाँ अनेक प्रकार के देशी वनस्पति और जीव-जंतु पाए जाते हैं जिनमें लेपर्ड, नीलगाय, सियार, सरीसृप, कई दुर्लभ पक्षी प्रजातियाँ आदि शामिल हैं।
  • संरक्षण के लिए पहल 
    • अरावली ग्रीन वॉल परियोजना: इसका उद्देश्य अरावली पर्वतमाला के क्षरणशील पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुद्धार करते हुए उत्तर-पश्चिम भारत में हरित आवरण को सघन बनाना और रेगिस्तान के प्रसार को रोकना है।
      • यह अफ्रीका की ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ परियोजना से प्रेरित है जिसका लक्ष्य साहेल क्षेत्र में रेगिस्तानीकरण को रोकना है।



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