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असम सरकार द्वारा संरक्षित गैंडों के सींग जलाने का निर्णय  

(प्रारंभिक परीक्षा, सामान्य अध्ययन - राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 संरक्षण, पर्यावरण प्रदुषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)   

संदर्भ 

22 सितंबर को ‘विश्व राइनो दिवस’ के अवसर पर, असम सरकार ने एक सींग वाले गैंडे के लगभग 2,500 सींगों को जलाने का निर्णय लिया है। 

आवश्यकता क्यों 

  • सरकार द्वारा सींगों को जलाने का निर्णय इन सींगों की उपयोगिता के बारे में फैले मिथ्या भ्रम को समाप्त करने एवं इनके अवैध शिकार को रोकने के उद्देश्य से लिया गया है।
  • ये सींग वर्ष 1979 से 2021 के बीच असम के वन विभाग द्वारा संरक्षित किये गए थे। इसके पूर्व में बरामद किये गए सींगों का निपटान पहले ही किया जा चुका है।
  • इस प्रकार, सींगों को नष्ट करने की प्रक्रिया वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 39 (3) (सी) के अनुपालन में की जा रही है।       

क सींग वाला गैंडा 

  • एक सींग वाला गैंडा प्रायः भारत, नेपाल एवं भूटान में पाया जाता है। यह हिमालय की तलहटी में ऊँचे घास के मैदानों और जंगलों तक ही सीमित है।
  • एकल सींग नर एवं मादा दोनों पर मौजूद होता है। यह लगभग 6 वर्ष की आयु के बाद दिखना प्रारंभ होता है। इसकी लंबाई लगभग 25 सेमी० होती है।    
  • 20वीं सदी तक यह विलुप्त होने की कगार पर गए थे। वर्ष 1975 तक भारत एवं नेपाल में केवल 600 ही एक सींग वाले गैंडे बचे थे। इनके संरक्षण के लिये सरकार द्वारा किये गए प्रयासों के कारण वर्तमान में इनकी संख्या बढ़कर लगभग 3700 हो गई है।  
  • भारत में एक सींग वाले गैंडों का सर्वाधिक संकेंद्रण असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में है। वर्ष 2018 के आँकड़ों के अनुसार, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में 2413, मानस राष्ट्रीय उद्यान में 34, ओरांग राष्ट्रीय उद्यान में 101 तथा पोबितोरा वन्यजीव अभ्यारण्य में 102 एक सींग वाले गैंडे हैं।
  • आई.यू.सी.एन. द्वारा वर्ष 1975 में एक सींग वाले गैंडों को संकटापन्न (Endangered) प्रजाति की श्रेणी में रखा गया था। इसमें सुधार करते हुए इसे वर्ष 2008 में अतिसंवेदनशील (Vulnerable) सूची में शामिल किया गया है।              

गैंडों का अवैध शिकार: एक गंभीर खतरा  

  • गैंडों का अवैध शिकार इनके अस्तित्व के लिये सबसे बड़ा खतरा है। इनका शिकार मुख्यतः इनके सींगों के चिकित्सा के क्षेत्र में होने वाले उपयोग के लिये किया जाता है। यद्यपि अभी तक इन सींगों के चिकित्सा लाभ का कोई स्पष्ट प्रमाण प्राप्त नही हुआ है। पारंपरिक रूप से इन सींगों का उपयोग मिर्गी, बुखार एवं कैंसर सहित कई बीमारियों के इलाज के लिये किया जाता है। इसी कारण से इनके सींगों के व्यापार पर प्रतिबंध के बावजूद इनका अवैध व्यापार एवं शिकार अभी भी जारी है।
  • वर्ष 2013 और 2014 में गैंडों के अवैध शिकार के कई मामले सामने आए। इन दो वर्षों में अवैध शिकार की लगभग 27 घटनाएँ हुईं। यह संख्या दशक के अन्य वर्षों में हुए शिकार से कहीं ज़्यादा थीं।इसके बाद इन घटनाओं में कमी आई तथा यह 2015 में घटकर 17, 2016 में 18, 2017 में 9, 2018 में 7 तथा 2019 में 3 हो गई।
  • सरकार द्वारा गैंडों के अवैध व्यापार को रोकने के लिये निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। वर्ष 2019 में असम सरकार ने काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में अवैध शिकार और संबंधित गतिविधियों को रोकने के लियेस्पेशल राइनो प्रोटेक्शन फ़ोर्सका गठन किया तथा 10 फ़ास्ट ट्रैक न्यायालय स्थापित किये गए हैं।

िष्कर्ष 

गैंडों के सींगों का व्यापार एक गंभीर समस्या है। यह गैंडों के लिये सबसे बड़े खतरों में एक है। असम सरकार द्वारा इनके सींगों को जलाने का निर्णय वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसके अतिरिक्त, ही आम जनमानस को वन्यजीवों से बने उत्पादों को न खरीदने के लिये प्रेरित करने की आवश्यकता है। तभी इनके संरक्षण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा

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