(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य- सरकार के मंत्रालय एवं विभाग) |
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय ने 23 जून, 2025 को कर चोरी एवं वित्तीय धोखाधड़ी जैसे मामलों में जमानत हासिल करने के लिए आरोपियों द्वारा स्वेच्छा से बड़ी राशि जमा करने की पेशकश करने और बाद में उस वादे से मुकरने की बढ़ती प्रवृत्ति पर कड़ा रुख अपनाया। यह मामला तब सामने आया जब एक व्यक्ति, जिस पर 13 करोड़ रुपए से अधिक की कर चोरी का आरोप था, ने जमानत के लिए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
क्या है मुद्दा
- आरोपियों द्वारा जमानत प्राप्त करने के लिए अपनी सद्भावना (Bona fide) दिखाने के लिए बड़ी राशि जमा करने की पेशकश की जाती है। हालाँकि, जमानत मिलने के बाद वे इस राशि का भुगतान करने से इनकार कर देते हैं।
- वे या तो जमानत की शर्तों को कठिन बताकर या अपने वकीलों पर बिना अनुमति के कार्य करने का आरोप लगाकर अदालतों में छूट की मांग करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस रणनीति को न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग माना है।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियां
- जस्टिस के.वी. विश्वनाथन एवं एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ ने इस प्रवृत्ति को ‘न्यायालय के साथ खिलवाड़’ करार दिया।
- अदालतें बार-बार इस प्रकार के मामलों का सामना कर रही हैं जिससे न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।
- पीठ ने स्पष्ट किया कि ‘पक्षकारों को अदालत के आदेशों का लाभ उठाने के लिए ऐसी युक्तियों का सहारा लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है’।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी के अधिकारों के प्रति सचेत है किंतु न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
जमानत की शर्तें : संबंधित कानूनी पहलू
- भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 437 एवं 438 के तहत जमानत दी जा सकती है।
- अदालतें जमानत देते समय शर्तें लगा सकती हैं, जैसे- राशि जमा करना या नियमित उपस्थिति।
- जमानत शर्तें आरोपी के लिए कानूनी जिम्मेदारी बन जाती हैं।
- यदि कोई आरोपी उन शर्तों को पूरा नहीं करता है तो यह अदालत के आदेश का उल्लंघन है।
- शर्तों का पालन न करना न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है और कोर्ट के अधिकारों का हनन है।
इसे भी जानिए!
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 437 एवं 438 क्रमशः ‘गैर-जमानती अपराधों में जमानत’ और ‘अग्रिम जमानत’ से संबंधित हैं। धारा 437 व 438 के प्रावधान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) में क्रमशः धारा 104 एवं 105 में स्थानांतरित कर दिए गए हैं।
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चुनौतियाँ
- न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग : आरोपियों द्वारा बार-बार शर्तों से मुकरने से अदालतों का समय बर्बाद होता है और विश्वास कम होता है।
- जमानत शर्तों का पालन सुनिश्चित करना : यह सुनिश्चित करना मुश्किल है कि आरोपी अपनी पेशकश का पालन करेंगे।
- वकीलों की भूमिका : कुछ मामलों में वकील बिना क्लाइंट की सहमति के पेशकश करते हैं जिससे जटिलताएँ बढ़ती हैं।
- आर्थिक अपराधों की गंभीरता : कर चोरी एवं वित्तीय धोखाधड़ी जैसे अपराधों का अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है जिसके लिए सख्त कार्रवाई जरूरी है।
आगे की राह
- जमानत शर्तों की कड़ाई : अदालतों को जमानत शर्तों को स्पष्ट व सख्त करना चाहिए ताकि उनका पालन सुनिश्चित हो।
- निगरानी तंत्र : जमानत शर्तों के पालन के लिए प्रभावी निगरानी तंत्र विकसित किया जाना चाहिए।
- आर्थिक अपराधों पर सख्ती : कर चोरी एवं वित्तीय धोखाधड़ी जैसे मामलों में कठोर दंड व त्वरित सुनवाई पर जोर देना चाहिए।
- न्यायिक जागरूकता : अदालतों को ऐसी चालबाजियों के प्रति सतर्क रहना चाहिए और उन्हें रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी करने चाहिए।
- वकीलों की जवाबदेही : वकीलों को बिना क्लाइंट की सहमति के ऐसी पेशकश करने से बचना चाहिए।