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जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों पर प्रतिबंध

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्ग्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ, भारत की विविधता)

संदर्भ 

उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य भर में जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया है।

हालिया आदेश के बारे में 

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जातिगत महिमामंडन पर रोक लगाने के निर्देश पर कार्रवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों, पुलिस थानों, वाहनों, साइनबोर्ड आदि पर आरोपियों की जाति का उल्लेख करने पर रोक लगा दिया है।
    • उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने 16 सितंबर को राज्य सरकार को जातिगत महिमामंडन पर अंकुश लगाने का निर्देश दिया था।
  • जाति के नाम या नारे/स्टिकर प्रदर्शित करने वाले वाहनों का केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की संबंधित धाराओं के तहत चालान भी किया जाएगा।
  • मुख्य सचिव ने सार्वजनिक स्थानों पर किसी विशेष जाति का महिमामंडन करने वाले या भौगोलिक क्षेत्रों को जाति-आधारित क्षेत्र या संपदा घोषित करने वाले साइनबोर्ड हटाने का भी आदेश दिया है।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के साथ मिलकर सी.सी.टी.एन.एस. (Crime and Criminal Tracking Network and Systems) पोर्टल पर इस्तेमाल किए गए प्रारूपों से अभियुक्तों की जाति दर्ज करने वाले फ़ील्ड को हटाने का निर्देश दिया गया है।  
  • पुलिस थानों में दर्ज केस फाइलों में अभियुक्तों की जाति का कोई उल्लेख नहीं किया जाएगा।
  • इस आदेश में मौजूदा कानूनों के तहत सख्त प्रवर्तन का निर्देश है जिसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और भारतीय दंड संहिता के प्रावधान शामिल हैं।

आदेश की आवश्यकता 

  • यह निर्णय चुनावी गतिविधियों से पहले आया है जहाँ ऐसी रैलियों का दुरूपयोग प्राय: मतदाताओं को लामबंद करने के लिए किया जाता रहा है।
  • सरकार के अनुसार जाति-केंद्रित रैलियाँ विभाजन, सामाजिक वैमनस्य एवं ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती हैं जो लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध है।
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत किए गए अपराधों के लिए ही यह छूट है।
  • राजनीतिक दलों को सलाह दी गई है कि वे विकासात्मक, समावेशी एवं मुद्दा-आधारित राजनीति पर ध्यान केंद्रित करें।

आदेश का महत्त्व 

संवैधानिक एवं विधिक परिप्रेक्ष्य

  • समानता एवं भेदभाव-रहित आचरण पर बल: अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 15 (जाति के आधार पर भेदभाव का निषेध) का समर्थन करता है।
  • निर्वाचन अखंडता: यह संविधान के अनुच्छेद 325 के अनुरूप है जो जाति/धार्मिक भेदभाव के बिना एक सामान्य मतदाता सूची का प्रावधान करता है।
  • यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का समर्थन करता है जो वोट के लिए जाति/धर्म की अपील पर रोक लगाता है।

राजनीतिक एवं प्रशासनिक परिप्रेक्ष्य

  • यह पहचान-आधारित वोट बैंक की राजनीति के बजाय मुद्दों पर आधारित प्रचार को प्रोत्साहित करता है।
  • जाति को दरकिनार करते हुए विकास, शासन एवं कल्याण पर ध्यान केंद्रित करके लोकतांत्रिक विमर्श को मजबूत करता है।
  • राज्य सरकार को समावेशी राजनीति के लिए प्रतिबद्ध होने में सहायता करता है।

सामाजिक परिप्रेक्ष्य

  • जातिगत ध्रुवीकरण को कम करने करने के साथ ही समाज में जातिगत विभाजन को बढ़ने से रोकता है।
  • उत्तर प्रदेश जैसे विविधतापूर्ण और जाति-संवेदनशील राज्य में सामाजिक सद्भाव व एकता को बढ़ावा देता है।
  • ध्रुवीकरण रैलियों के बाद प्राय: होने वाली सांप्रदायिक/जातिगत हिंसा के जोखिम का मुकाबला करता है।

 नैतिक दृष्टिकोण

  • चुनावी लाभ के लिए पहचान के शोषण (दुरूपयोग) को हतोत्साहित करके लोकतंत्र के नैतिक आधार को सुदृढ़ करता है।
  • न्याय, निष्पक्षता एवं बंधुत्व के सिद्धांतों (प्रस्तावना) के अनुरूप है।

आलोचना

  • हालिया आदेश को अनुच्छेद 19(1)(a) (वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के तहत राजनीतिक अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित करने के रूप में देखा जा सकता है।
  • उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति की गहरी पैठ को देखते हुए इसके प्रवर्तन को प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।
  • राजनीतिक दल जातिगत पहचानों को संगठित करने के अप्रत्यक्ष तरीके खोज सकते हैं।

निष्कर्ष 

यह आदेश जाति (जातिवाद) के अराजनीतिकरण, स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने और सामाजिक एकता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। हालाँकि, इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ संतुलित करने और संरचनात्मक जातिगत असमानताओं को दूर करने के साथ संरेखित करने की आवश्यकता है।

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