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कन-फार्म मॉडल: किसानों व उपभोक्ताओं के मध्य सीधा सम्वाद

(प्रारम्भिक व मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र-3)

चर्चा में क्यों ?

कोविड-19 के चलते देश भर में जारी लॉकडाउन के दौरान तेलंगाना में खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये की गई एक पहल काफी कारगर साबित हो रही है।

पृष्ठभूमि

इस पहल को कंज़्यूमर-फार्मर कॉम्पैक्ट (Consumer Farmer Compact-ConFarm) नाम दिया गया है। इसकी शुरुआत जून 2018 में कुछ गैर-सरकारी संगठनों द्वारा की गई थी। यह वस्तुतः किसानों और शहरी उपभोक्ताओं के साझे हितों की पूर्ति का एक मंच है। इस पहल के अंतर्गत, उपभोक्ता कृषि आवश्यकताओं के लिये किसानों का सहयोग करते हैं, बदले में किसान यह सुनिश्चित करते हैं कि उपभोक्ता बिना किसी परेशानी के खाद्यान्न प्राप्त कर सकें।

एक अभिनव प्रयोग

  • इस पहल के अंतर्गत, फसली मौसम की शुरुआत में प्रत्येक उपभोक्ता अपनी कृषि उत्पादों की ज़रूरतों के अनुसार कृषक समूह को लगभग 12,500 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से सहायता करता है, इसके बदले में फसल कटाई के समय किसानों द्वारा सीधे उपभोक्ताओं को उनके द्वारा किये गए निवेश मूल्य के अनुपात में कृषि उत्पाद प्रदान किये जाते हैं। इस पहल की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें बिचौलियों का हस्तक्षेप नहीं होता है।
  • किसानों द्वारा उपभोक्ताओं को जैविक रूप से उत्पादित बाजरा, दाल, तेल, गुड तथा अन्य आवश्यक वस्तुएँ प्रदान की जाती हैं। ये वस्तुएँ मासिक आधार पर या एक-साथ उपलब्ध कराई जाती हैं।
  • इस पहल से शीत गृह और वेयरहाउस पर होने वाले व्यय से बचा जा सकता है, जिससे लागत में कमी आती है।

महत्त्व

  • विनिमय और साझे हित की इस व्यवस्था ने गाँवों में भुखमरी की समस्या को कम करने के साथ पोषण सम्बंधी ज़रूरतों को पूरा करने में सहायता की है।
  • इस पहल में भागीदार किसान जैविक कृषि पर बल देने के साथ-साथ पारम्परिक पारिस्थितिक कृषि के तरीकों को अपनाते हैं। यह उनके लिये भोजन के विभिन्न विकल्पों तथा आहार विविधता को बढ़ावा देने में सहायक है। साथ ही, बाज़ार प्रभावों के कम हस्तक्षेप के कारण किसानों को भूमि व खाद्य उत्पादन पर नियंत्रण रखने में भी मददगार साबित होता है।
  • इस पहल ने किसानों को ऐसे उपभोक्ताओं के समूह के करीब ला दिया है जो जैविक उत्पादों हेतु अन्य वैकल्पिक तरीकों की तलाश में हैं।

निष्कर्ष

वर्तमान संकट के समय, जबकि मुक्त बाज़ार प्रणाली व वैश्विक व्यापार का भविष्य अनिश्चित है, कन-फार्म जैसे स्थानीय मंचों की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। वस्तुतः इस तरह की आपूर्ति श्रृंखलाएँ समय की ज़रूरत हैं। भविष्य में ऐसे संकट का सामना करने हेतु किसानों और उपभोक्ताओं का एक-साथ आना बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। ऐसी व्यवस्थाएँ किसी बाहरी हस्तक्षेप व दबाव के बिना कार्य कर सकती हैं, इससे किसानों की आर्थिक स्थिति के साथ-साथ उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य में सुधार भी हो सकता है; उत्पादन और विपणन के ऐसे नूतन प्रयोग महत्त्वपूर्ण हैं।

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