New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 27 June, 3:00 PM Mid Year Mega Sale UPTO 75% Off, Valid Till : 17th June 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 22 June, 5:30 PM Mid Year Mega Sale UPTO 75% Off, Valid Till : 17th June 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 27 June, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 22 June, 5:30 PM

कार्बन अधिकार : महत्त्व, संरक्षण एवं प्रासंगिकता

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

  • राइट्स एंड रिसोर्सेज इनिशिएटिव ने ‘उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय भूमि व जंगलों में स्वदेशी लोगों, अफ्रीकी मूल के लोगों तथा स्थानीय समुदायों के कार्बन अधिकार’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कार्बन अधिकारों का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया है।
  • यह रिपोर्ट 33 देशों में कार्बन अधिकारों की स्थिति का अब तक का सबसे व्यापक कानूनी विश्लेषण प्रस्तुत करती है।

कार्बन अधिकारों के बारे में

  • परिभाषा : कार्बन अधिकार (Carbon Rights) वे कानूनी अधिकार होते हैं जो यह तय करते हैं कि किसी पारिस्थितिकी तंत्र (जैसे- वनों या अन्य प्राकृतिक क्षेत्रों) में संग्रहीत कार्बन पर किसका स्वामित्व है और इससे उत्पन्न लाभों का हकदार कौन होगा।
  • ये अधिकार विशेष रूप से ‘रीड प्लस (REDD+)’ जैसी योजनाओं में महत्वपूर्ण हैं, जिनमें कार्बन उत्सर्जन को घटाने के बदले वित्तीय लाभ प्रदान किए जाते हैं।
  • वर्तमान में कार्बन अधिकारों की कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत परिभाषा नहीं है। कार्बन अधिकार शब्द में दो मूलभूत अवधारणाएँ सम्मिलित हैं:
    • भूमि, वृक्ष, मिट्टी आदि में निहित कार्बन को संग्रहीत करने के संपत्ति अधिकार, और
    • इन संपत्ति अधिकारों के हस्तांतरण (अर्थात उत्सर्जन व्यापार योजनाओं के माध्यम से) से उत्पन्न होने वाले लाभों का अधिकार

REDD एवं REDD +

  • REDD (निर्वनीकरण एवं वन क्षरण से उत्सर्जन में कमी लाना) संयुक्त राष्ट्र की एक पहल है जिसे विकासशील देशों में वनों की क्षति एवं क्षरण में कमी लाने के उद्देश्य से प्रोत्साहित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसे वर्ष 2008 में लॉन्च किया गया।
  • REDD प्लस इस ढांचे का विस्तार करके संरक्षण एवं संधारणीय वन प्रबंधन को शामिल करता है जो टिकाऊ विकास को बढ़ावा देते हुए जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में इसके महत्व पर प्रकाश डालता है। इसे वर्ष 2010 में स्वीकार किया गया था।

कार्बन अधिकारों का महत्व

  • जलवायु परिवर्तन से निपटना : वनों में संग्रहीत कार्बन को सुरक्षित रखने से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होता है जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ महत्वपूर्ण है।
  • स्थानीय समुदायों का सशक्तिकरण : यदि कार्बन अधिकार औपचारिक रूप से स्थानीय या आदिवासी समुदायों को दिए जाएं, तो उन्हें आर्थिक लाभ के साथ-साथ अपनी भूमि व संसाधनों पर स्वामित्व की मान्यता मिलती है।
  • जैव-विविधता की सुरक्षा : जब समुदायों को जंगलों की देखभाल करने का अधिकार मिलता है तो वे पारंपरिक तरीकों से पर्यावरण की रक्षा करते हैं। इससे जैव विविधता को भी संरक्षण मिलता है।

आदिवासी समुदायों के लिए इसकी प्रासंगिकता

  • आदिवासी एवं स्थानीय समुदाय सदियों से जंगलों की रक्षा करते आए हैं किंतु उनके भूमि व कार्बन अधिकार प्राय: औपचारिक रूप से मान्यता प्राप्त नहीं होते हैं।
  • यह अधिकार मिलने से उन्हें न सिर्फ आर्थिक लाभ मिल सकता है बल्कि यह संस्कृति, पहचान एवं आजीविका की रक्षा में भी सहायक होगा।
  • इससे इन समुदायों की भूमिका को वैश्विक जलवायु समाधान में मान्यता मिलेगी।
  • जहाँ स्पष्ट अधिकार नहीं होते हैं, वहाँ कार्बन बाज़ार का लाभ प्राय: बाहरी एजेंसियाँ उठाती हैं जबकि पारंपरिक रूप से वनों की देखरेख करने वाले समुदाय पीछे रह जाते हैं।

भारत में कार्बन अधिकारों को मजबूत करने के लिए सुझाव

  • कानूनी स्पष्टता : कार्बन अधिकारों को वन अधिकार अधिनियम, 2006 और पर्यावरण कानूनों के तहत स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए।
  • सामुदायिक वन अधिकार (CFR) का पूर्ण कार्यान्वयन : सी.एफ.आर. को व्यापक रूप से लागू कर यह सुनिश्चित किया जाए कि स्थानीय समुदाय जंगलों पर सामूहिक अधिकार प्राप्त करें।
  • जनभागीदारी को बढ़ावा : स्थानीय समुदायों को कार्बन क्रेडिट कार्यक्रमों में बराबर भागीदारी का अवसर दिया जाए।
  • क्षमता निर्माण : समुदायों को प्रशिक्षण व तकनीकी सहायता प्रदान की जाए ताकि वे कार्बन प्रबंधन, निगरानी एवं लाभ वितरण में सक्रिय भागीदारी निभा सकें।
  • पारदर्शिता एवं जवाबदेही : कार्बन परियोजनाओं में पारदर्शी तंत्र सुनिश्चित हों, ताकि समुदायों को उनके हक का लाभ वास्तविकता में प्राप्त हो सके।

इसे भी जानिए!

  • वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पारंपरिक वनवासियों को वन से जुड़े अधिकार दिए गए हैं।
    • यह अधिनियम वन में रहने वाले इन समुदायों की आजीविका, आवास एवं सामाजिक-सांस्कृतिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बनाया गया था।
  • पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA) के माध्यम से आदिवासियों को स्थानीय स्तर पर वन संसाधनों के प्रबंधन में भागीदारी का अधिकार है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR