(प्रारंभिक परीक्षा: पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।) |
संदर्भ
हाल ही में पर्यावरणविदों और स्थानीय निवासियों ने केंद्र सरकार से गुरुग्राम-फरीदाबाद मार्ग स्थित बंधवाड़ी लैंडफिल साइट से अरावली पर्वतमाला में निक्षालन द्रव या लीचेएट (Leachate) के अवैध रिसाव को रोकने के लिए हस्तक्षेप की मांग की है। यह रिसाव न केवल स्थानीय निवासियों के लिए स्वास्थ्य संकट पैदा कर रहा है, बल्कि अरावली के जंगलों और वन्यजीवों के लिए भी गंभीर खतरा बन गया है।
क्या है लीचेएट (Leachate)
- लीचेएट वह द्रव (liquid) होता है जो तब बनता है जब वर्षा का पानी या अन्य तरल पदार्थ कचरे के ढेर (landfill) से होकर नीचे की ओर रिसता है।
- यह तरल विभिन्न रासायनिक, जैविक और विषैले पदार्थों को अपने साथ घोल लेता है, जिससे यह अत्यधिक प्रदूषक बन जाता है।
प्रमुख घटक
- भारी धातुएँ (जैसे सीसा, पारा, क्रोमियम)
- कार्बनिक पदार्थ और रासायनिक यौगिक
- अमोनिया और नाइट्रेट
- रोगजनक सूक्ष्मजीव (pathogens)
- प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरे से उत्पन्न विषैले रसायन
स्रोत
- नगर निगमों के ठोस कचरा डंपिंग स्थल
- औद्योगिक अपशिष्ट स्थल
- इलेक्ट्रॉनिक और चिकित्सा कचरा
- निर्माण और विध्वंस स्थल
प्रभाव
- भूमिगत जल प्रदूषण: लीचेएट मिट्टी में रिसकर भूमिगत जल को जहरीला बना देता है।
- स्वास्थ्य जोखिम: इससे त्वचा रोग, श्वसन संबंधी बीमारियाँ और कैंसर जैसे दीर्घकालिक रोग हो सकते हैं।
- वन्यजीवों पर असर: लीचेएट जंगलों के जलस्रोतों में मिलकर वन्यजीवों के पीने के पानी को दूषित करता है।
- मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट: इससे कृषि योग्य भूमि बंजर होने लगती है।
पर्यावरणीय चिंताएं
- अरावली पर्वतमाला हरियाणा और राजस्थान के पर्यावरण संतुलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- लीचेएट रिसाव के कारण अरावली के जलाशयों और जैव विविधता पर खतरा मंडरा रहा है।
- पर्यावरण संरक्षण से जुड़े NGT के आदेशों की अवहेलना हो रही है।
- स्थानीय प्रशासन द्वारा ‘गारलैंड ड्रेन’ (Garland Drain) जैसी सुरक्षा व्यवस्थाएँ केवल कागजों पर सीमित हैं।
- गारलैंड ड्रेन एक खाई या चैनल होता है, जो प्रायः गोलाकार या "माला" आकार में होती है, जिसे किसी संपत्ति, खदान या अन्य क्षेत्र के चारों ओर स्थापित किया जाता है ताकि सतही जल या अपवाह को एकत्रित किया जा सके और मोड़ा जा सके।
आगे की राह
- लीचेएट ट्रीटमेंट प्लांट (LTP) को तत्काल प्रभाव से चालू किया जाए।
- पुराने कचरे के वैज्ञानिक निस्तारण की प्रक्रिया तेज की जाए।
- NGT और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा नियमित निगरानी की व्यवस्था हो।
- स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण को अनिवार्य किया जाए।
- अरावली इकोसिस्टम की सुरक्षा हेतु दीर्घकालिक संरक्षण योजना बनाई जाए।
निष्कर्ष
बंधवाड़ी लैंडफिल से निकलने वाला लीचेएट केवल स्थानीय समस्या नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय पर्यावरणीय संकट का संकेत है। जब तक वैज्ञानिक तरीके से कचरे का निस्तारण और निगरानी प्रणाली लागू नहीं की जाती, तब तक अरावली जैसी प्राकृतिक धरोहरें विषाक्त होती रहेंगी।