(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन एवं कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
संदर्भ
भारत सरकार ने नकली एवं घटिया बीजों की समस्या से निपटने के लिए एक नई रणनीति की घोषणा की है। यह समस्या विशेष रूप से बासमती जैसे जी.आई. (Geographical Indication) टैग वाली फसलों को प्रभावित कर रही है। सरकार की रणनीति में डिजिटल बीज ट्रेसबिलिटी प्रणाली (SATHI प्रोजेक्ट) और सीड्स एक्ट, 1966 में संशोधन शामिल है ताकि किसानों की सुरक्षा और भारत की कृषि प्रतिष्ठा बनी रहे।
जी.आई. फसल बासमती का महत्व
- निर्यात मूल्य: बासमती चावल भारत की चावल निर्यात आय का लगभग 60% योगदान देता है। यह भारत को विदेशी मुद्रा अर्जित करने में प्रमुख भूमिका निभाता है और वैश्विक बाजार में भारत की स्थिति को मजबूत करता है।
- प्रतिष्ठा का प्रतीक: जी.आई. फसलें विशिष्ट भौगोलिक एवं पारंपरिक कृषि पद्धतियों का प्रतीक हैं। बासमती, दार्जिलिंग चाय एवं अल्फांसो आम भारत की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करते हैं।
- किसानों की आजीविका: लाखों किसान जी.आई. प्रमाणित बीजों पर निर्भर हैं जिससे उन्हें बेहतर उत्पादन और उचित मूल्य मिलता है। नकली बीज सीधे उनकी आय एवं स्थिरता पर चोट करते हैं।
- सॉफ्ट पावर: जी.आई. टैग फसलें भारत की एग्री-डिप्लोमेसी (कृषि कूटनीति) को मज़बूत करती हैं और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वार्ताओं में भारत की स्थिति बेहतर बनाती हैं।
प्रमुख समस्या: नकली एवं घटिया बीज
- बीज विफलता: नकली बीज अंकुरित नहीं होते हैं या बहुत कम उत्पादन देते हैं जिससे किसान कर्ज के जाल में फँस जाते हैं।
- प्रतिष्ठा पर खतरा: घटिया बीजों से जी.आई. फसलों की गुणवत्ता प्रभावित होती है जिससे निर्यात अस्वीकृत हो सकता है और भारत की कृषि ब्रांड वैल्यू घट सकती है।
- आंकड़े: वर्ष 2024–25 में जाँचे गए 2.53 लाख नमूनों में से 32,525 बीज घटिया पाए गए। इनमें सर्वाधिक मामले पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु व मध्यप्रदेश से आए।
- अवैध बिक्री: कई विक्रेता मंत्रालय की स्वीकृति के बिना नकली लेबल लगाकर बीज बेचते हैं।
- क्षेत्रीय हॉटस्पॉट: तेलंगाना, राजस्थान, गुजरात व पश्चिम बंगाल में बीज धोखाधड़ी के सबसे ज्यादा मामले सामने आए।
सरकारी प्रयास
डिजिटल बीज ट्रेसबिलिटी (SATHI प्रोजेक्ट)
- पहला चरण (2023): 23 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया गया। इसमें बीज उत्पादन और प्रसंस्करण एजेंसियों को शामिल किया गया।
- दूसरा चरण (2025): इसमें डीलरों और किसानों तक विस्तार किया जा रहा है। अब बीज पैकेट पर QR कोड होंगे, जिन्हें स्कैन कर किसान बीज की वास्तविकता जान पाएंगे।
सीड्स एक्ट, 1966 में संशोधन
- वर्तमान स्थिति: अभी बीज प्रमाणन अनिवार्य नहीं है, जिससे निजी कंपनियां ‘ट्रुथफुली लेबल्ड’ बीज बेच सकती हैं।
- प्रस्तावित संशोधन: प्रमाणन और ट्रेसबिलिटी अनिवार्य की जाएगी तथा कंपनियों व डीलरों की जवाबदेही तय होगी।
बीज परीक्षण अवसंरचना
- भारत में वर्तमान में 178 बीज परीक्षण प्रयोगशालाएँ (STLs) हैं।
- इनमें से 10 लैब NABL-मान्यता प्राप्त और 2 लैब ISTA-मान्यता प्राप्त हैं जिससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय साख मज़बूत होती है।
भारत का बीज उद्योग
- वर्तमान मूल्य: लगभग 6.3 बिलियन डॉलर (~₹55,200 करोड़)
- अनुमानित वृद्धि: वर्ष 2028 तक 12.7 बिलियन डॉलर और 2040 तक 20 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की संभावना (10% CAGR)
- निजी क्षेत्र का प्रभाव: कपास बीज में 98% और फील्ड क्रॉप/सब्जियों में ~70% निजी कंपनियों का नियंत्रण
- सार्वजनिक-निजी साझेदारी: अधिकतर किस्में ICAR अनुसंधान से आती हैं जबकि निजी क्षेत्र उन्हें बड़े स्तर पर बाज़ार तक पहुँचाता है।
चुनौतियाँ
- प्रवर्तन में कमी: छापेमारी एवं FIR दर्ज होने के बावजूद नकली बीज का व्यापार जारी है।
- किसानों की जागरूकता की कमी: छोटे किसान प्रमाणन मानकों से अनजान रहते हैं और सस्ते नकली बीजों का शिकार हो जाते हैं।
- लॉजिस्टिक एवं डिजिटल गैप: ट्रेसबिलिटी के लिए मजबूत आपूर्ति शृंखला और IT अवसंरचना की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय साख: घटिया बीज से निर्यात अस्वीकृत हो सकता है जिससे विदेशी मुद्रा आय घटती है।
- छोटे व्यवसायों पर दबाव: सख्त नियमों से छोटे बीज कंपनियों को अनुपालन की लागत उठाना मुश्किल हो सकता है।
आगे की राह
- सार्वभौमिक डिजिटल ट्रेसबिलिटी: SATHI प्रणाली को पूरे देश में लागू किया जाए और किसानों को QR कोड स्कैनिंग की ट्रेनिंग दी जाए।
- कानूनी सुधार: सीड्स एक्ट संशोधन को शीघ्र लागू किया जाए, जिसमें सख्त दंड का प्रावधान हो।
- जागरूकता अभियान: किसानों को प्रमाणित बीज और ट्रेसबिलिटी की जानकारी दी जाए।
- कठोर दंड: नकली बीज निर्माताओं का लाइसेंस रद्द किया जाए और आपराधिक मुकदमे चलाए जाएँ।
- सार्वजनिक-निजी सहयोग: ब्लॉकचेन आधारित ट्रेसबिलिटी और अधिक मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं का विकास किया जाए।
- वैश्विक ब्रांडिंग: बासमती जैसे जी.आई. उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रामाणिकता प्रमाणपत्र के साथ बढ़ावा दिया जाए।