
- कार्बन ट्रेडिंग और बाजार आधुनिक जलवायु नीति और टिकाऊ विकास का एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गए हैं।
- यह प्रणाली ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने और उद्योगों को आर्थिक रूप से प्रोत्साहित करने का एक प्रभावी साधन है।
कार्बन बाजार क्या है ?
- कार्बन बाजार एक व्यापारिक प्रणाली है, जहां कंपनियां कार्बन क्रेडिट खरीदकर अपने GHG उत्सर्जन की भरपाई करती हैं।
- ये क्रेडिट उन परियोजनाओं से प्राप्त होते हैं जो उत्सर्जन को कम करती हैं, रोकती हैं या CO2 जैसी गैसों को पृथ्वी की सतह या वनस्पति में अवशोषित करती हैं।
- एक कार्बन क्रेडिट आम तौर पर एक मीट्रिक टन CO2 या इसके समकक्ष किसी अन्य GHG उत्सर्जन की कमी के बराबर होता है।
कार्बन ट्रेडिंग के प्रकार
- उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS)
- कैप-एंड-ट्रेड सिस्टम
- बेसलाइन-एंड-क्रेडिट सिस्टम
- कार्बन टैक्स
- सीधे कर द्वारा उत्सर्जन को आर्थिक रूप से नियंत्रित करता है।
कार्बन ट्रेडिंग के प्रमुख प्रकार
1. उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (Emission Trading System – ETS)
यह एक मार्केट-बेस्ड मैकेनिज्म है, यानी इसमें कंपनियों को उत्सर्जन को कम करने के लिए व्यापार (ट्रेड) करने का विकल्प दिया जाता है। ETS का उद्देश्य है ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को नियंत्रित करना, जबकि उद्योगों पर अधिक आर्थिक बोझ न पड़े। इसमें दो मुख्य मॉडल होते हैं:
(a) कैप-एंड-ट्रेड सिस्टम (Cap-and-Trade System)
- सरकार या नियामक संस्था कंपनियों के लिए उत्सर्जन की सीमा (cap) तय करती है।
- उदाहरण: मान लीजिए किसी शहर की 10 कंपनियों को सालाना 1,00,000 टन CO₂ उत्सर्जित करने की कुल सीमा दी गई है।
- कंपनियों को इस सीमा के अनुसार क्रेडिट (Emission Allowances) दिए जाते हैं।
- यदि कोई कंपनी कम उत्सर्जन करती है, तो उसके पास अतिरिक्त क्रेडिट बचते हैं, जिन्हें वह ज्यादा उत्सर्जन करने वाली कंपनी को बेच सकती है।
- इससे कंपनियों को प्रोत्साहन मिलता है कि वे कम उत्सर्जन वाले तकनीकों को अपनाएं और पर्यावरणीय लक्ष्य पूरे हों।
विशेषताएँ:
- बाज़ार आधारित प्रोत्साहन।
- उत्सर्जन की कुल मात्रा पहले से तय (cap) होती है।
- क्रेडिट की कीमत बाज़ार में मांग-आपूर्ति से तय होती है।
(b) बेसलाइन-एंड-क्रेडिट सिस्टम (Baseline-and-Credit System)
- इस सिस्टम में कंपनी की उत्सर्जन सीमा नहीं तय होती।
- बल्कि, एक बेसलाइन या मानक उत्सर्जन स्तर तय किया जाता है।
- जो कंपनियां इस बेसलाइन से कम उत्सर्जन करती हैं, उन्हें क्रेडिट मिलता है।
- जो कंपनियां ज्यादा उत्सर्जन करती हैं, उन्हें यह क्रेडिट खरीदना पड़ता है।
विशेषताएँ:
- उत्सर्जन में कटौती करने वाली कंपनियों को पुरस्कृत करता है।
- उद्योगों को तकनीकी सुधार के लिए प्रोत्साहित करता है।
- फ्लेक्सिबिलिटी ज्यादा होती है, क्योंकि कुल “cap” तय नहीं होती।
2. कार्बन टैक्स (Carbon Tax)
- कार्बन टैक्स एक सीधा कर (Direct Tax) है।
- सरकार कंपनियों या उद्योगों पर प्रति टन CO₂ उत्सर्जन के लिए कर लगाती है।
- उदाहरण: अगर कार्बन टैक्स ₹1000 प्रति टन CO₂ है, और किसी फैक्ट्री ने 1000 टन CO₂ उत्सर्जित किया, तो उसे ₹10 लाख टैक्स देना होगा।
- इसका उद्देश्य है उत्सर्जन को आर्थिक रूप से नियंत्रित करना।
विशेषताएँ:
- उत्सर्जन कम करने का स्पष्ट आर्थिक प्रोत्साहन।
- व्यापार प्रणाली की तरह बाज़ार आधारित नहीं, बल्कि सीधे शुल्क।
- अनुमान लगाने में आसान – कंपनियां जानती हैं कि हर टन CO₂ पर कितना खर्च होगा।
ETS और Carbon Tax में मुख्य अंतर
पहलू
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कैप-एंड-ट्रेड / बेसलाइन-एंड-क्रेडिट (ETS)
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कार्बन टैक्स
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नियंत्रण
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उत्सर्जन की मात्रा (cap) या क्रेडिट से
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उत्सर्जन की कीमत से
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आर्थिक लचीलापन
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कंपनियां क्रेडिट खरीद/बेच सकती हैं
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कोई ट्रेडिंग नहीं, बस टैक्स देना है
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लागत अनुमान
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कीमत बाज़ार पर निर्भर
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कंपनियों को पता है, लागत स्थिर
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प्रोत्साहन
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कम उत्सर्जन वाले क्रेडिट बेच सकते हैं
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कम उत्सर्जन = कम टैक्स
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कार्बन ट्रेडिंग का महत्व
- विकासशील देशों का समर्थन: कार्बन बाजार विकासशील देशों को वित्तीय संसाधन जुटाकर जलवायु शमन प्रयासों में मदद करता है।
- राजस्व सृजन: वैश्विक स्तर पर, 2024 में ETS और कार्बन टैक्स से 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का राजस्व सृजन हुआ।
- उत्सर्जन में कटौती: वैश्विक कार्बन बाजार के माध्यम से बिना अतिरिक्त लागत के 2030 तक प्रति वर्ष लगभग 5 गीगाटन CO2 तक की कटौती संभव है।
कार्बन बाजार से जुड़े प्रमुख मुद्दे
- कार्बन उपनिवेशवाद: स्थानीय समुदायों और देशज लोगों के अधिकारों पर प्रभाव।
- वैश्विक मानक की कमी: पारदर्शिता और MRV (Monitoring, Reporting, Verification) में स्पष्ट दिशा-निर्देश का अभाव।
- सत्यनिष्ठा और गुणवत्ता: कार्बन क्रेडिट की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और ग्रीनवॉशिंग रोकने के लिए विनियामक निकायों और तृतीय पक्ष सत्यापन की आवश्यकता।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों के माध्यम से लेन-देन को पारदर्शी और सुरक्षित बनाना।
अनुच्छेद 6 (Article 6) और पेरिस समझौता
पारिस समझौते के अनुच्छेद 6 ने कार्बन ट्रेडिंग नियमों को COP-29 में अंतिम रूप दिया। यह देशों को अपने राष्ट्रीय योगदान (NDCs) को हासिल करने में सहयोग करने में सक्षम बनाता है। इसमें तीन प्रमुख प्रणालियां शामिल हैं:
- बाजार आधारित प्रणालियां
- अनुच्छेद 6.2: देशों के बीच द्विपक्षीय समझौते।
- अनुच्छेद 6.4: नया वैश्विक ऑफसेट बाजार (PACM)।
- गैर-बाजार आधारित प्रणाली (अनुच्छेद 6.8):
- क्षमता निर्माण, वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से शमन और अनुकूलन को बढ़ावा देती है।
महत्व:
विश्व बैंक के अनुसार, अनुच्छेद 6 के तहत कार्बन ट्रेडिंग से NDCs की लागत में 50% तक की कटौती और 2030 तक सालाना 250 बिलियन डॉलर की बचत संभव है।
अनुच्छेद 6 और क्योटो प्रोटोकॉल में अंतर:
पहलू
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क्योटो प्रोटोकॉल
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पेरिस समझौता (अनुच्छेद 6)
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भागीदारी
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सीमित (विकसित देश)
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सभी देशों को शामिल
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अनुकूलन वित्तपोषण
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CDM से अनुकूलन कोष में योगदान
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6.4 लेन-देन से 5% वैश्विक अनुकूलन कोष में
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बाजार का दायरा
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परियोजना आधारित तंत्र (CDM, JI)
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बाजार-आधारित और गैर-बाजार आधारित दोनों शामिल
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लेगेसी क्रेडिट्स
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पुराने क्रेडिट्स का उपयोग संभव
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केवल 2013 के बाद के क्रेडिट्स उपयोग किए जाते हैं
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समस्याएँ:
- मापन मानक की अपर्याप्तता
- दोहरी गणना का खतरा
- सीमित कवरेज (वैश्विक उत्सर्जन का केवल 24% ही कवर)
भारत का परिप्रेक्ष्य: कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (CCTS), 2023
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने CCTS, 2023 के तहत ऊर्जा-गहन उद्योगों के लिए GHG उत्सर्जन तीव्रता (GEI) लक्ष्य निर्धारित किए हैं।
मुख्य बिंदु:
- GEI लक्ष्य: ऊर्जा दक्षता ब्यूरो की कार्यप्रणाली अनुसार निर्धारित।
- अनुपालन: बाध्य इकाइयों को वार्षिक रूप से लक्ष्यों को पूरा करना अनिवार्य। कमी की स्थिति में ICM से कार्बन क्रेडिट प्रमाण-पत्र खरीदे जा सकते हैं।
- पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति: उल्लंघन पर CPCB द्वारा मुआवजा।
- कानूनी आधार: पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022।
CCTS चुनौतियाँ:
- उद्योगों में अनुभव की कमी
- जटिल संस्थागत फ्रेमवर्क
- कार्बन क्रेडिट की कीमत में वृद्धि
- पारदर्शिता की कमी
निष्कर्ष:
भारत में कार्बन बाजार को पारदर्शी, प्रभावी और वैश्विक स्तर पर आकर्षक बनाने के लिए आवश्यक है:-
- उत्सर्जन लक्ष्यों के लिए स्पष्ट कार्य-पद्धतियाँ ।
- मौजूदा बाजार तंत्रों का विश्लेषण ।
- व्यापारिक इकाइयों की परस्पर विनिमय क्षमता सुनिश्चित करना ।
- संस्थागत ढांचे को मजबूत करना ।