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कैरेली चिप एवं संबंधित विवाद

(प्रारंभिक परीक्षा: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास)

संदर्भ

भारत में सेमीकंडक्टर एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक उल्लेखनीय पहल करते हुए केरल डिजिटल यूनिवर्सिटी ने ‘कैरेली AI चिप’ (Kairali AI Chip) का विकास किया है। हालाँकि, इस परियोजना को लेकर कुछ विवाद सामने आए हैं जिसमें पारदर्शिता की कमी और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग का आरोप है।

कैरेली चिप के बारे में

  • यह केरल की पहली सिलिकॉन-प्रमाणित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चिप है जिसे डिजिटल यूनिवर्सिटी, केरल ने विकसित किया है। 
  • यह एक शोध-आधारित शैक्षणिक परियोजना है न कि कोई व्यावसायिक उत्पाद।
  • चिप का डिज़ाइन विश्वविद्यालय के AI चिप सेंटर में तैयार किया गया है। इसका नेतृत्व प्रोफेसर एलेक्स पी. जेम्स ने किया।
  • इसे केंद्र सरकार के Chip to Startup (C2S) कार्यक्रम के तहत विकसित किया गया है।

मुख्य विशेषताएँ

  • ऊर्जा कुशलता : निम्न ऊर्जा में काम करने की उच्च क्षमता
  • अद्यतन तकनीक : स्मार्टफोन, ड्रोन, ऑटोमोबाइल, कृषि एवं सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में उपयोगी
  • ओपन-सोर्स टूल (Open-source Tools) : Efabless, Skywater एवं Google जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग
  • 130nm फैब्रिकेशन प्रोसेस द्वारा निर्माण
  • शोध एवं प्रशिक्षण का केंद्र : छात्रों को रियल-टाइम चिप डिज़ाइन का प्रशिक्षण मिला

हालिया विवाद का कारण 

सेव यूनिवर्सिटी कैंपेन कमेटी (Save University Campaign Committee: SUCC) ने इस परियोजना पर कई गंभीर प्रश्न उठाए हैं-

  • चिप डिज़ाइन एवं विकास प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी
  • परियोजना में सार्वजनिक धन के दुरुपयोग का आरोप
  • कोई पेटेंट या व्यावसायिक वैधता न होने का दावा
  • केंद्र सरकार द्वारा सेमीकंडक्टर सेक्टर में भारी निवेश करने के बावजूद केंद्र सरकार को औपचारिक जानकारी न देने की आलोचना

सेमीकंडक्टर क्षेत्र में चुनौतियाँ

  • वित्तीय संसाधनों की कमी : चिप के विकास में $1 मिलियन से $200 मिलियन तक का व्यय आता है।
  • अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं की सीमाएँ : राज्य विश्वविद्यालय होने के कारण इंफ्रास्ट्रक्चर सीमित है।
  • नवाचार बनाम व्यावसायिक मान्यता : शोध परियोजनाओं को व्यावसायिक सफलता में बदलना कठिन होता है।
  • जनसंचार एवं पारदर्शिता : ऐसे नवाचारों की सही जानकारी जनता एवं नीति-निर्माताओं तक नहीं पहुंच पाती है।

आगे की राह

  • पारदर्शिता सुनिश्चित करना : सभी शोध दस्तावेज़, डिजाइन एवं परीक्षण सार्वजनिक मंचों पर साझा किए जाएँ।
  • केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ समन्वय : इस तरह के शोध कार्यों को राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत किया जाए।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) पर जोर : शोध का पेटेंट कराकर उसके नवाचार मूल्य को सुरक्षित करना आवश्यक है।
  • शिक्षा एवं उद्योग साझेदारी : विश्वविद्यालयों को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि उत्पादों का व्यावसायिक उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
  • छात्रों का सशक्तिकरण : इस तरह के प्रोजेक्ट छात्रों को रचनात्मक अनुसंधान एवं उच्च स्तरीय प्रशिक्षण के अवसर देते हैं, जिसे जारी रखा जाना चाहिए।
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